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मंगलवार, 10 जनवरी 2012

ठूँठ गाछ


हम ठूँठ गाछ छी .
नहि द' सकए छाहड़ी छी .
आ नहि कोनो मिठगर आम ,
किएक त हम ठूँठ गाछ छी .
नहि बैन सकए छी कोयलक आशियाना ,
नहि क' सकए छी वर्षा के स्वागत ,
नहि खेलत डोल-पाती नेना ,
किएकी हम ठूँठ गाछ छी ,
माली चाहए कखन उखाड़ी दी ,
महिसक ढाही सँ तवाह छी ,
कोनो पुछ नहि आब उपवन मे ,
किएकी हम ठूँठ गाछ छी ,
{ भाग-2}
एकटा एहने ठूँठ रहै छै अपनो समाज मे ,
गरीब पड़ल अछि जेकर नाम ,
अमिरक मइर गाइर खा ओ ,
बिता देलक जीनगी तमाम ,
लिखल भेटत हमर देश गरीब अछि ,
त' की तिरंगा फाइर देबै .
वा खोजि अनंत सँ भारत माँ के .
गरीब कैह माइर देबै ,
नहि ने ,
हम मनुख छी हम एक छी ,
जुनी करू कियो कनको भेद भाव .
ह'म "अमित" अपने गरीब छी ,
मुदा राखब सब संग लगाव ,
तखने फुलायत ठूँठ गाछ . . . । ।

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