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बुधवार, 18 जनवरी 2012

गजल



निर्धन जानि कऽ छोरि गेलहुँ  माँ     
कोन अपराध हम केलहुँ माँ

केहनो छी तँ हम पुत्र अहींकेँ
सभ सनेश अहींसँ पेलहुँ माँ   

मूल्यक तराजुमे नै एना जोखू 
ममताकेँ  पियासल भेलहुँ माँ

दर-दर भटकि खाक छनै छी
दर्शन अपन नै दखेलहुँ माँ

मनु’केँ अपन सिनेह नै देलहुँ
सोंझाँ सँ दूर आब भगेलहुँ माँ

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१२)
जगदानन्द झा मनु

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