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रविवार, 25 अगस्त 2013

गजल

गजल-1.66
एक ठोप प्रेम चलते तड़पैत छी
मान तोहर चित्र नोरसँ पोछैत छी

प्रीतकेँ पकड़ब सहज नै आँखिसँ बुझू
सत हियाकेँ हाथ लेने हँकमैत छी

आइ बदलल सन लगै छै दुषित हवा
एक जोड़ा मोर तन-मन मिलबैत छी

सोन सन जीवन निशामे मातल रहय
तेँ उधारी माँगि दुख पिबैत छी

धातुकेँ सोना तँ बनबै छै आगिये
तेँ सिनेहक आगिमे तन जड़बैत छी

बहरे जदीद
2122-2122-2212
अमित मिश्र

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

मेघ राजा जल्दी आ

बाल कविता-86
मेघ राजा जल्दी आ

मेघक राजा जल्दी आ
बाल्टी भरि भरि पानि ला
सुखलै आम, मौलाएल लताम
मरल जन्तुकेँ आबि जिया
मेघक राजा जल्दी आ

शुक्रवार, 28 जून 2013

बदमाश प्रकृति

आइ भोरे अखबारमे छपल छल एकटा बात
खसल ठनका मरल जनता काँपल हमर गात
अहाँ बदमाश बनब तँ प्रकृतियो छै बदमाश
गाछ-बिरिछ जे काटब एहिना हेतै सत्यानाश
कतौ बाढ़ि आएत आ कतौ आएत भारी भुकम्प
जन शुन्य भऽ जेतै धरती भऽ जाउ सकदम्म
मीत बनाबू प्रकृतिकेँ बनबै अहाँ खुशहाल
प्रकृति बचबऽ लेल अहाँ करू हड़ताल

अमित मिश्र

बुधवार, 12 जून 2013

मीडिया


घर पहुँचिते लागल जे स्वर्गमे पहुँचि गेलौं ।सजल घर-दुआरि एना लागैत छल जे दिबाली छै ।कनियाँकेँ खुश देख लागल जे जरूर किओ नैहरसँ आएल हेतै ।हमरा देख ओ हँसैत बाजलनि "हे एकटा बात बुझलियै ।आइ तँ कमाल भऽ गेलै ।आइ आबि गेलै ।"
हमर शक मजगूत भऽ रहल छल ।बूझि गेलौ जे आब जेबी कटबे करत ।मन्हुआएल कहलियै " की आबि गेलै ?फरिछा कऽ बाजू ने ।"
ओ खुशीक सीमा पार करैत कहलनि "आइ छबो बलत्कारीक फाँसीक निर्णय आबि गेलै ।"
आब तँ हमहूँ खुश छलौं ।आखिर केतकीकेँ न्याय भेँटि गेलै ।"यै ई चमत्कार कोना भेलै ?" हमर सबालपर ओ उत्तर देलनि "ई मीडिया बला तते ने छापलकै जे सरकारकेँ मजबूर हुअऽ पड़लै ।सत्तमे अपन देशक मीडिया बड मजगूत अछि ।"
आइ हमरा मीडिया लेल सम्मान सए गुणा बढ़ि गेल ।

अमित मिश्र

बिजनेस


-बड आशा लऽ कऽ आएल छी अहाँ लऽग सम्पादक जी ।
-आशा लऽ कऽ आबू वा नै आबू ।हमरासँ अहाँक काज नै हएत ।
-एना जुनि बाजू सर ।ई तँ अहाँक धर्म अछि ।एकटा लड़कीक बलत्कार कएल गेलै आ अहाँ ओकर रिपोर्ट छापैसँ मना कऽ रहल छी ।मीडियाक ई काज नै छै ।
- हमर क्षेत्रक कोन काज अछि आ कोन नै, से हमरा नै सिखाउ ।बलत्कारी राजा भैया छथि ।हुनकर बिरोधमे छापि कऽ हमरा नोकसान नै करबेबाक अछि ।
- एहिमे नोकसानक कोन काज छै ?अहाँकेँ खबर चाही, हम दऽ रहल छी ।लिअ ।
- यौ ।हम खैरातक दोकान नै खोलने छी ।राजा भैया मारिते विज्ञापन दै छथि ।टाका दै छथि ।हुनकर बिरोधमे किए छापब ।अहाँकेँ बुझबाक चाही जे अखबारो एकटा बिजनेसे अछि ।
-हँ ।हमहीं बिसरि गेल छलौं ।बिजनेसमे लोक घटा तँ नहिये सहत ।हुअऽ दियौ आरो बलत्कार ।

अमित मिश्र

रविवार, 9 जून 2013

सियाख



"यै एकटा बात कहुँ  ।"
"की ?"
"हमर इच्छा छल जे बौआक नामकरण नवका स्टाइलमे करितौं ।"
" जेना ? फरिछाउ तँ ।"
"जेना चिन्टू, सन्टू, टिन्कू, भोलू, छोटू आदि आदि ।"
" हे अपन वेस्टर्न सऽख अपने लऽग राखू ।अपन मिथिलामे ई सियाख चलै बला नै अछि ।"
"से किए ? मैथिल वेस्टर्न ड्रेस पहिरै छथि की नै ? अंग्रेजी चलै छै की नै ?"
" बुझलौं बुझलौं ।बाजब आ ड्रेस क्षणिक होइत अछि तें आनो रीत अपना लैत छी , मुदा नाँउ तँ भरि जीवन आ मुइलाक बादो चलैत रहैत अछि ।एकरा पश्चिमीकरण नै करू ।बौआक नाँउ तँ भगवानेक नामपर राखब, उगना. . . ।"

अमित मिश्र

वंश


- मोन करैत अछि एहि बेर चारू धामक दर्शन कऽ आबितौं ।
- मोन तँ हमरो करैत अछि मुदा टाका हएत तखन ने ?
- एँ यै जकरा पट्ठा पहवान बेटा रहतै तकरा टाकाक कमी रहतै ।
- अपन बेटाक हाल कोनो अहाँसँ नुकाएल अछि ।बौआ एतबे कमाइत अछि जाहिसँ बाल बच्चाकेँ पोसि सकए ।
-एहन बेटा लऽ कऽ की हेतै जकरा एते सामर्थ नै छै जे माए-बापकेँ तीर्थाटन करबा देत ।
- यौ बेटा लऽ कऽ वंश बढ़तै ।
- एहन वंश बढ़ेलासँ कोन फायदा ? लोक बेटा जनमाबै छै जे बुढ़ारीमे सुख भेटत ।जहिया आगू वंश बढ़तै तहिया तँ अपना सब स्वर्गमे माला खटखटाबैत रहब ।एहन बेटासँ तँ बेटिये बढ़ियाँ ।कमसँ कम सेवा करबेबाक आशा तँ नै रहत ।

अमित मिश्र

राष्ट्रपति शासन



राज्य भरिमे ठामे-ठाम चुनावी पोस्टर साटल जा रहल छल ।कतेको दल प्रचारमे लागल छल ।सब उम्मीदबार अपन-अपन क्षेत्र बेराबैमे लागल छल ।जाति-पातिक ढोल पीटल जा रहल छल ।चुनावक दिन राज्य भरिक जनता अपन-अपन जातिक उम्मीदबारपर बटन दबा देलनि ।परिणाम एलै ।ककरो बहुमत नै भेटलै ।सरकार नै बनलै ।दोबारा चुनाव कराओल गेल ।सरकारक खजाना खाली भेल, मुदा रिजल्ट जस-के-तस ।अन्तमे केन्द्र सरकार कहलकै " जखन जनता जातीयता नै छोड़तै तँ हम अपन खजाना किए खाली करब ? लागऽ दहीं कड़गड़ कानून ।"
ओहि राज्यमे राष्ट्रपति शासन लागि गेल छल ।

अमित मिश्र

शुक्रवार, 7 जून 2013

वेश्या



- हे...हे...जा एना नै सट...पूजा-पाठक समान छै सब छुआ जाएत ।
- एना किए बाजैत छथि ।हमर देहमे कोनो मैला लागल छै जे छुआ जाएत ।
- तोहर कर्मे एहन छौ जे सब छुआ जेतै ।कतबो नील-टिनोपाल झाड़ि ले रहबे तँ वेश्याक वेश्ये . . . ।
-चुप. . .चुप रहू. . .जँ हम वेश्या छी तँ अहाँ की छी. . .?
- हम पुजारीन छी ।सीता छी, सावित्री छी ।
- बड़ा एलनि राधा बाली ।अहूँ वएह छी जे हम छी ।सब मौगी अपन मरद लऽग वैह रहैत अछि जे हम रहै छी ।हमरसँ तूँ छुआ जेबें ,गै हमरा वेश्या तँ तोरे सभक मरदबा बनबै छौ ।एकटा वेश्याक सप्पत छौ जो पहिने अपन मरदकेँ शुद्ध करा तखन छुआ-छूत मानिहें ।

अमित मिश्र

इनभेस्टमेन्ट



- छोटू भाइ, किए रौदमे कपड़ा बेच-बेच चाम कारी करै छऽ ।अरामसँ ठण्ढ़ामे बैस कऽ तास खेलऽ ।
- नै भाइ, तास खेलबाक फुरसत नै छै ।बाबूक दबाइ निंघटि गेलै ।घूमि-फिर कऽ किछु बेच लेब तँ दबाइ भऽ जेतै ।
- लोक तँ बुढ़ माए-बापकेँ दबाइ अनठेने रहै छै ।देरीसँ इलाज हेतै तँ जल्दी छुआछन भेंटि जेतै ।तूँ किए अगुताएल रहै छऽ ।
- नै बुझलहो भाइ ।ई इनभेस्टमेन्ट छै ।आइ हमरा सेवा करैत हमर बेटा देखतै तखने ने काल्हि ओ हमर सेवा करतै ।बुझलऽ. . . ।

अमित मिश्र

टीस



- गे बड़की सखी बड दिन बाद तोरासँ भेंट भेल ।तोहर मोन करै छौ, कने संगी-सहेलीसँ भेंट कऽ लेब ?
- हँ गे छोटकी सखी मोन तँ बड होइ छै, मुदा की करियै हमर घरबला हमरा बिनु रहिते नै छथि ।
- उहो की करथुन ।गामसँ कहियो बहरेबो नै ने केलनि ।
- छोड़ ई सब ।ई बता जे एते सोना किए पहिरने छें ? बुझल नै छौ जमाना कते खराप छै ?
- हमर घर बला दुबाइमे कमाइ छै ।कह, सोना नै पहिरबै तँ कि तोरा सन पीत्तर पहिरबै ।
- तोसर साज-श्रृंगार तँ व्यर्थ छो सखी ।हम पीत्तरो पहिरै छी तँ सदिखन पतिक पिआर भेटैत अछि हमरा, मुदा तूँ कतबो बनि-ठनि ले पतिक पिआरसँ दूरे रहबें, तड़पैत . . . ।
छोटकी सखीकेँ लागलै जे करेजमे असहनिय टीस उठि गेलै ।किओ दूखाइत घावपर नोन रगड़ि देलकै ।

अमित मिश्र

ड्रामा



- रौ झगड़ूआ तोरा माँथपर सींघ जनमल हौ की ?
- से किए रौ घोघबा ?
- तोरा घरसँ हरदम हल्ले होइत रहै हौ ।लागैत हौ जे आब ककरो कपार फूटिये जेतौ ।
- नै बझलहीं ।हम-तूँ ठहरलौं मूरख, अनपढ़ ।तें लोक अपना आरकेँ छोट बुझै हौ ।
- लेकिन ऐसँ ई ड्रामकेँ कोन समबन्ध है ।
- अरे, आइ-काल्हि पढ़लो-लिखलकेँ घरमे एनाहिते नवाह जैसन झगड़ा होइ है ।तेँ हमहूँ झगड़ा बला फुसियाही ड्रामा करै छी जैसँ लोक हमरो शिकछित बुझै ।

अमित मिश्र

तरकारीबाली


- तरकारी लिअ ।हरियर, ताजा . . . ।
- गै पालक कोना छौ ?
- नै बेसी पचासे लगा देब ।
- पचास, बाप रे बाप. . .बड बेसी छौ . . . अच्छे ई खाइमे केहन लागै छै ?हम नै खेने छी ।
- नीके लागैत हेतै ।तीत तँ नहिये हेतै ।
- हेतै ?मने तूँहूँ नै खेने छहीं ।तोरा तँ अपन खेतेमे छौ तखन. . .
- एते ने मँहगाइ हइ जे एकरा खाइत ममता लागैत हइ ।बेच देबै तँ दू टाका कमा लेब, खेलासँ तँ किछु नै भेटतै ।
हम सोचमे पड़ि गेलौं ।जखन खेत बलाकेँ अपन उपजा खाइमे कोढ़ फटै छै तँ आम जनताक हाल केहन हेतै ?

अमित मिश्र

शिक्षाक दूत



अधवयसु सासु चुल्हिमे जाड़न लगबैत बाजल " यै कनियाँ, एना बनि-ठनि कऽ बौएनाइ ठीक नै अछि ।कने लाज-धाख कएल करू ।"
चौकीपर बैसल पुतौह नऽहपर अलता लगबैत उत्तर देलक " हम सजै छी तैसँ अहाँकेँ किए कोढ़ फटैए ?अपना लूरि नै छन्हि तँ दोसरकेँ दूसै छथि ।"
" यै एहिमे लूरि आ दूसै बला कोन बात छै ? अहाँ गामक पुतौह छी ।एना जँ करबै तँ लोक की कहत, दूसबै करत नै ? "
" अहाँ मोने हम पाँच हाथ घोघ तानि बाटपर चली जाहीसँ ठामे-ठाम ठोकर लागत आ हम खसि पड़ब ।अहाँ चाहिते छी जे हम मजाक बनि जाइ ।"
" हम से नै कहलौं ।कने दाबि-पीच कऽ रहू बस, और किछु नै ।"
" यै हम मास्टरनी छियै ।नेनाक आदर्श छीयै ।जँ हमहीं दबल रहब तँ नेना कोना उठि सकत ?नवका जमानाक शिक्षाक दूत छी, नवके जकाँ रहऽ पड़तै ।कतबो अहाँ जरि कऽ धुँआइत रहू, अहाँ जकाँ फाटल-चिटल पहिर चुल्हि नै ने फूकब ।"
सासु एक टक देखिते सोचि रहल छलीह जे एहन शिक्षाक दूतसँ समाजक उत्थान हेतै वा पतन ?

अमित मिश्र

गुरुवार, 6 जून 2013

मातृभूमि

- बाबा. . .ई बैग सब किए पैक कऽ रहल छी ?कतौ जाएबाक अछि की ?
- हँ बौआ, गाम जाएब ।
- गाम . . .!गाम जा कऽ की करब ? एको क्षण नीक लागत ओत ?
- नीक किएक ने लागत ? हौ . . .हमर नेनपन ओतै बीतल अछि ।
- एहि दुआरे जे ओतऽ ए॰सी॰, फ्रीज, कार किछु नै छै ।45 वर्षसँ बाहर छी घरो टूटि कऽ ढनमना गेल हेतै ।
- कोनो बात नै ।गामक शीतल हवा ए॰सी॰, फ्रीजक कान काटतै ।नै हेतै तँ कोनो गाछ तऽर खोपड़ी ठाढ़ कऽ लेबै ।
- तैयो बाबा शहर लऽग गाम पासङगो बराबर नै छै ।मरि जाएब ओतऽ जा कऽ ।
- चिन्ता जुनि कर बाउ ।ओ हमर मातृभूमि अछि ।ओतऽ मरबो करब तँ सीधे स्वर्गे जाएब ।जाए दे. . . ।
बाबा चलि गेलथि मातृभूमिक दर्शन लेल ।

अमित मिश्र

बुधवार, 5 जून 2013

सुरक्षित


- हौ गुलटन भाइ, एना स्वतंत्र भऽ किए घुमै छऽ ?
- से किए हौ? देश परतंत्र भऽ गेलै वा कर्फ्यू लागल छै?
- नै हौ एहन बात नै छै ।असलमे तोरापर हत्यक आरोप छऽ ।कखनो पुलिस पकड़ि लठियाबैत लऽ जेतऽ ।
- केहन गप करै छऽ ।एहन किछु नै हेतै ।उपर धरि सब टेबूलपर दक्षिणा दऽ आएल छियै ।दस टा हत्या आरो कऽ देबै तखनो सुरक्षित छी, सुरक्षित . . . बुझलऽ ने ?
गुलटेन भाइ नम्हर-नम्हर डेग बढ़बैत, पानक पीक थुकैत, ठहक्का मारैत चलि गेलाह ।

अमित मिश्र

साक्षर


- रौ बिदेसरा, काल्हि सब बापुत आबि जैहें ।
- से किएक मालिक ?
- काल्हि बाबूक बरखी छै ।भोज-भात हेतै ।पात तँ तुँही सब उठेबहीं ने ?
- हम किए उठेबै? अपनेसँ उठा लेब अहाँ ।
- रौ, तोहर बापे-बाबा करैत एलौ ।छोट जातिक तँ ई काजे छै ।
- मालिक, अहाँ ककरा छोट कहैत छी ?बाप-बाबा कऽ एलाह हम सब नै करब ।
- एना जुनि बाज ।काज तँ पूजा होइत छौ ।कर्म कर ।
- यौ मालिक, आब हमहूँ सब बुझि गेलियै जे कोन काज हमर हितमे अछि ।आब हमहूँ सब साक्षर भऽ गेलियै ।डाकडर-इन्जिनियर बनि टाका छापब ।पात नै उठाएब ।

अमित मिश्र

पियक्कर



ओ पियक्कर छलै ।भरि दिन पिबिते रहै ।सदिखन तलमलाइत रहै ।कतेको बेर नालीमे खसल, सड़कपर ओंघराएल भेटलै ।मुँहक दुर्गन्धक चलते लोक ओकरासँ दूर रहै ।घर-परिवारसँ जलखैयो नै भेटै ओकरा ।लोक ओकरा गरियाबैत रहै, शरापैत रहै ।मुदा आइ. . . . . . . ।
आइ अपन साहस देखेलकै ओ ।भरल बजारमे नवालीक लड़कीक इज्जत बचेलकै, मुदा मारल गेलै ।खूने-खूनाम भऽ गेलै माँझ चौबटियापर ।छटपाइत मरि गेलै ।आब समाजक कमजोरहा, हिजड़ा सब ओकर बड़ाइ करै छै, मुदा ओ लड़की भगवानसँ माँगि रहल छै जे एहने पियक्कर भऽ जाइ ई दुनियाँ ।

अमित मिश्र

भगवानक रूप


हम ऑफिस जाइ लेल निकलिते रही कि एकटा भीखमंगा आबि गेल ।शुभ-शुभ बात बाजैत भीखक माँग केलक ।हम कनियाँकेँ सोर केलियै आ किछु बचल-खुचल रोटी-तरकारी दऽ दै लेल कहलियै ।ओ घरमे गेली आ हमरा लेल बनाओल गेल भात-दालि, तरूआ-पापड़, चटनी थारीमे साजि भीखमंगाकेँ दऽ देलनि ।भीखमंगा परसन लऽ लऽ कऽ खेलक ।ओकरा गेलाक बाद पता चलल जे सबटा भोजन खतम भऽ गेलै ।हम कनियाँपर तमसाए लागलियै तँ ओ कहलनि "नै बुझलियै, अतिथि भागवानक रूप होइ छै तेँ ओकरा बासी कोना कऽ दितियै ।"
हम तामसे आँखि गुड़ेड़ैत कहलियै "ओ भीखमंगा छल भगवान नै ।ओनाहितो स्त्री लेल पति परमेश्वर होइ छै ।
ओ मुस्कैत कहलनि " भगवानक कोनो रूप होइ छै, ओ तँ कोनो रूप धऽ आबि सकै छथि ।दोसर जे पति धरतीपर परमेश्वर छथि, मुइलाक बाद तँ भगवाने मोक्ष देथिन आ ओ भगवान भीखमंगे होइथ ?
हम बिना किछु बाजने भूखले ऑफिस चलि गेलौं ।

अमित मिश्र

बुधवार, 29 मई 2013

बुढ़ारी

- प्रणाम टी॰टी॰ बाबू, हम राम बाजै छी ।
- खुश रहू ।की हाल-चाल ?
- ठीक अछि ।कने एकटा प्रयागक टीकट कन्फॉर्म करबा दिअ ने ।
- भऽ जेतै, मुदा एकाएक कोन काज पड़ि गेल?
- हमरा काज नै अछि ।ओ बौआ काका मास करऽ जेथिन तेँ चाही ।
- बौआ झा मास कऽ की करथिन ? जुआनीमे एक्को टा साधुकें जलखइ नै करेलनि आब भण्डारा कऽ की हेतनि ?
- नै बुझलियै आब बुढ़ारी आबि गेलै ने ।जुआनीमे अपनाकें बलगर बुझलखिन, मुदा मनुखक कमजोरी तँ बुढ़ारियेमे पता चलै छै । पुरनका शेर आब बिलाइ बनि गेल छै ।

अमित मिश्र