मैथिलीपुत्र ब्लॉग पर अपनेक स्वागत अछि। मैथिलीपुत्र ब्लॉग मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित अछि। अपन कोनो तरहक रचना / सुझाव jagdanandjha@gmail.com पर पठा सकैत छी। एहि ब्लॉग के subscribe करब नहि बिसरब, जाहिसँ समस्त आलेख पोस्ट होएबाक जानकारी अपने लोकनि के भेटैत रहत।

शुक्रवार, 7 जून 2013

वेश्या



- हे...हे...जा एना नै सट...पूजा-पाठक समान छै सब छुआ जाएत ।
- एना किए बाजैत छथि ।हमर देहमे कोनो मैला लागल छै जे छुआ जाएत ।
- तोहर कर्मे एहन छौ जे सब छुआ जेतै ।कतबो नील-टिनोपाल झाड़ि ले रहबे तँ वेश्याक वेश्ये . . . ।
-चुप. . .चुप रहू. . .जँ हम वेश्या छी तँ अहाँ की छी. . .?
- हम पुजारीन छी ।सीता छी, सावित्री छी ।
- बड़ा एलनि राधा बाली ।अहूँ वएह छी जे हम छी ।सब मौगी अपन मरद लऽग वैह रहैत अछि जे हम रहै छी ।हमरसँ तूँ छुआ जेबें ,गै हमरा वेश्या तँ तोरे सभक मरदबा बनबै छौ ।एकटा वेश्याक सप्पत छौ जो पहिने अपन मरदकेँ शुद्ध करा तखन छुआ-छूत मानिहें ।

अमित मिश्र

1 टिप्पणी:

  1. अपनेक ई विहनि कथा सत्यक दर्शन कराबैत अछि, विहनि अर्थात बिया/seed आ बिया जतेक सत्य रहत गाछ ओतेक पैघ बनत , कथाकेँ सन्दर्भमे लोकक करेजापर बेसी प्रभाब डालत | ... बहुत नीक. बधाइ ! एनाहिते नीक नीक कथा भेटति रहे तकर शुभकामना ...

    जवाब देंहटाएं