की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

श्यामल सुमन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
श्यामल सुमन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 23 मई 2012

रंग श्यामल रंग मे

गीत लिखलहुँ आयतक जे, भावना के सँग मे
ताहि कारण अछि सुमन के, रंग श्यामल रंग मे

जे एखन तक भोगि चुकलहुँ, गीत आ कविता लिखल
किछु समाजिक व्यंग्य दोहा, किछ गज़ल के ढंग मे

याद आबय खूब एखनहुँ, कष्ट नेनपन के सोझाँ
नौकरी तऽ नीक भेटल, पर फँसल छी जंग मे

छोट सन जिनगी कोनाकय, हो सफल नित सोचलहुँ
ज्ञान अर्जन करैत जिनगीक, डेग सबटा उमंग मे


सोचिकय चललहुँ जेहेन, परिणाम तेहेन नहि भेटल
हार नहि मानब पुनः, कोशिश करब नवरंग
मे

शुक्रवार, 18 मई 2012

गजल

मन सुरभित छल आस मिलन के, प्यास नयन मे तृषित नयन के
बाजल हिरदय धक धक धक धक, सुनितहिं धुन पायल छन छन के


दशा पूर्व के पहिल मिलन सँ, कहब कठिन ई सब जानय छी
साल एक, पल एक लगय छल, बढ़ल कुतुहल छन छन मन के


कोना बात शुरू करबय हम, सोचि सोचिकय मन थाकल छल
भेटल छल हमरा नहि तखनहुँ, समाधान की, एहि उलझन के


बाहर हँसी ठहाका सभहक, सुनैत छलहुँ बस हम कोहबर सँ
चित चंचल मुदा सोचलहुँ बाँचल, चारि दिना एखनहुँ बन्धन के


धीर धरू अपने सँ कहिकय, कहुना अप्पन मोन बुझेलहुँ
वाक-हरण बस आँखि बजय छल, हाथ पकड़लहुँ जखन सुमन के

गुरुवार, 10 मई 2012

कलाकन्द भऽ गेलहुँ (बाल-गीत)

धिया-पुता देखिकय आनन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

केहेन सहज मुख पर मुस्कान छै
छन मे झगड़ा छनहि मिलान छै
तीरथ बेरागन  व्यर्थ करय छी 

सद्यः धिया-पुता सोझाँ भगवान छै
हँसी खुशी देखिकय बुलन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

बनि कियो इन्जन रेल चलाबय
कियो फूँक मारय पीपही
बजाबय
बिनु पैसा के हँसि हँसि घूमय
छन कलकत्ता दिल्ली पहुँचाबय
लागय बच्चा सँगे जुगलबन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

कियो जोर खसलय कियो जोर हँसलय
कियो ठेलि देलकय कहुना
सम्हरलय
देखलहुँ निश्छल रूप मनोहर
सुमन अपन सब कष्ट बिसरलय
मोन साफ भेल शकरकन्द भऽ गेलहुँ
लड्डू नहि जिलेबी कलाकन्द भऽ गेलहुँ

बुधवार, 9 मई 2012

गजल

मीठगर बोली हम जनय छी
तैयो तीतगर बात करय छी

जौं साहित्य समाजक दर्पण
पाँती मे दर्पण देखबय छी

मिथिला के गुणगान बहुत भेल
जे आजुक हालात, कहय छी

भजन बहुत मिथिला मे लिखल
अछि पाथर, भगवान देखय छी

रोटी पहिने या सुन्दरता
सभहक सोझाँ प्रश्न रखय छी

भूख, अशिक्षा, बेकारी सँग
साल साल हम बाढ़ि भोगय छी

सुमन लिखत श्रृंगारक कविता
पहिने हालत केँ बदलय छी

मंगलवार, 8 मई 2012

गजल

व्यर्थ कियै दालान बनाबी
घर केँ तोड़ि मकान बनाबी

टाका अछि तऽ आदर भेटत
द्वारो पर दोकान बनाबी

आगाँ पाछाँ लोक घूमत जौं
सज्जन केँ नादान बनाबी

बच्चा सब केँ हास्टल भेजू
कुक्कुर केँ सन्तान बनाबी

जीवन देलक आस लगाऽ जे
मातु पिता निम्झान बनाबी

सबटा सुख हमरे लग आबय
एहेन कियै अरमान बनाबी

हमहुँ जीबी लोकक संग मे
दुनिया सुमन महान बनाबी

सोमवार, 7 मई 2012

गजल

भेट जाय भगवान किंचित्, की भेटत इन्सान यौ 
मुँह सँ जे लोक अप्पन, मोन सँ बेईमान यौ

एक दोसर बात पर, विश्वास कोना, के करत
छोड़ि दियऽ बात आनक, प्रश्न मे सन्तान यौ

बल जाबत छल, कमेलहुँ, धन अरजलहुँ पुत्र लय
आय बनिकय छी उपेक्षित, अपने घर मेहमान यौ

काज आजुक जेहेन हम्मर, भाग्य निर्धारित तेहेन
सूत्र जीवन के बिसरिकय, कोन ठाँ अछि ध्यान यौ

नीति जेहेन, तेहने नीयत, वो नियति छी काल्हि के
जीबू अपनहुँ, लोक जीबय, ई सुमन अरमान यौ

रविवार, 6 मई 2012

गजल

कतय पुरनका  गाम हेरायल
किंचित् हमरो नाम हेरायल

प्रेम-सहज, सद्भाव, समर्पण
सचमुच ई परिणाम हेरायल

बुधियरका सब गेल 
शहर मे
हुनको छन्हि आराम हेरायल

शहर सँ टाका
, गामक खेती
सब छूटल,
अंजाम हेरायल

सुख-दुख मे जे छल सहयोगी
हृदय-भाव, सत्काम हेरायल

मान करय छल छोट, पैघ के
लागय एखन लगाम हेरायल

सुमन सहोदर भाग्य सँ
भेटल
पुनि ताकू अछि राम हेरायल

शनिवार, 5 मई 2012

गजल-मैथिल मिथिला नाज हमर

भेद भाव बिनु सबकय जोड़ू, बाँचत तखन समाज हमर
सबकियो मिलिकय बाजू सगरे, चाही मिथिला राज हमर

राज बहुत पहिने सँ मिथिला, छिना गेल अछि साजिश मे
जाबत ओ सम्मान भेटत नहि, बाँचत कोना लाज हमर

विविध विषय के ज्ञानी मैथिल, दुनिया मे भेटत सगरे 
मुँह बन्द
राखब कहिया तक, के सुनतय आवाज हमर

आजादी के बादो सब दिन, भेल उपेक्षा सरकारी
बहल विकासक गंगा प्रायः, बाँचल खाली काज हमर

सज्जनता श्रृंगार सुमन छी, दिल्ली बुझलक कमजोरी
जागू मिथिलावासी आबो, मैथिल मिथिला नाज हमर

शुक्रवार, 4 मई 2012

गजल

किछु कुबेर के चक्रव्यूह मे, कानूनन मजबूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी

छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के

कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी

काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर

साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी

एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ

एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी

बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय 

नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी

गजल

धीया-पुता दुख नहि बूझय, हँसी मुँह पर साटय छी
खरचा एक पुराबय खातिर, दोसर खरचा काटय छी

आजुक युग मे कम्प्यूटर बिनु, नवतुरिया सब की पढ़तय
मुदा माँग पर, टाका नहि तेँ, बच्चा सब केँ डाँटय छी

बनल बसूला सम्बन्धी-जन, बाजय मीठगर बोली यौ
दुख मे रहितहुँ पर विवेक सँ, सभहक हिस्सा बाँटय छी

अपन हृदय मे भाव जेहेन छल, बुझलहुँ छै तेहने दुनिया
चीन्हा गेल अछि अप्पन-अदना, हुनके सबकेँ छाँटय छी

सुमन संगिनी जीवन भेटल, रूप मनोहर काया संग
दुख भीजल तऽ चोकर आमक, रूप देखिकय फाटय छी

गुरुवार, 3 मई 2012

गजल

किछु कुबेर के चक्रव्यूह मे, कानूनन मजबूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर छी

छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी के

कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर छी

काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास हमर

साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर सिन्दूर छी

एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग आवाज दियौ

एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल घूर छी

बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया बाँचि सकय 

नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर छी

मंगलवार, 1 मई 2012

संस्कार सन्तान मे


स्वजन मृत्यु पर कानैत बाजैत, गेल छलहुँ शमशान मे
आनल जायब एहिना हमहुँ, आयल अचानक ध्यान मे


बाजी सब कियो राम नाम संग, सभहक गाति एहने होइछै
बाहर आबिते फूसि फटक्कर, केलहुँ शुरू दलान मे


बात सदरिखन की लऽ एलहुँ, की लऽ जायब दुनिया सँ
मुदा सहोदर सँ झगड़ा नित, जुड़ल स्वार्थ सम्मान मे


भाग्य लिखल जे हेबे करतय, काज करय के काज की
बाजू एतबे चिकरि चिकरि कय, खेलू ताश मचान मे


सुमन मनुक्खक जीवन भेटल, घटना छी अनमोल यौ
सफल तखन पल पल जीवन के, संस्कार सन्तान मे

रविवार, 22 अप्रैल 2012

कियो हमर संगी बनू

चलू ताकय छी मिलि भगवान, कियो हमर संगी बनू।
कतऽ भेटला छी फुसिये हरान, कियो हमर संगी बनू।।

कियो कहय कण-कण मे, कियो कहय मन मे।
कियो कहय गंगा मे, कियो पवन मे।
नहि भेटल कुनु पहचान, कियो हमर संगी बनू।।

सुमरय छी दुख मे, बिसरय छी सुख मे।
पूजा के भाव कतय, नामे टा मुख मे।
छथि भक्तो बहुत अनजान, कियो हमर संगी बनू।।

करू लोक सेवा, तखन भेटत मेवा।
लोक-हित काज करू, लोके छी देवा।
सुमन कत्तेक बनब नादान, कियो हमर संगी बनू।।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

गजल

रहबय कोहबर कत्तेक दिन
बनिकय अजगर कत्तेक दिन

शादी तऽ एक संस्कार छी
जीबय असगर कत्तेक दिन

बिना काज के मान घटत नित
फूसिये दीदगर कत्तेक दिन

बैसल देहक काज कोन छै
एहने मोटगर कत्तेक दिन

आबहुँ जागू सुमन आलसी
खेबय नोनगर कत्तेक दिन

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

गजल

गलती बारम्बार करू
अधलाहा सँ प्यार करू

दुर्गुण सँ के दूर जगत मे
निज-दुर्गुण स्वीकार करू

दाम समय के सब सँ बेसी
सदिखन किछु व्यापार करू

अपने नीचा, मोन पालकी
एहि पर कने विचार करू

बल भेटत स्थायी, पढ़िकय
ज्ञानो पर अधिकार करू

भाग्य बनत कर्मे टा फल सँ
आलस केँ धिक्कार करू

प्रेमक बाहर किछु नहि भेटत
प्रीति सुमन-श्रृंगार करू

रविवार, 15 अप्रैल 2012

गजल

रीति बिगड़ि गेल जानय छी
चलू बैसिकय केँ कानय छी

असगरुआ जौं
नहि नीक लागय
आओर लोक केँ आनय छी

समाधान आ कारण हमहीं
बात कियै नहि मानय छी

पैघ लोक के बात, सोचबय
के के एखन गुदानय छी

आस व्यर्थ छी बिना प्रयासक
फुसिये गप केँ तानय छी

नीक आओर अधलाह लोक केँ
कियै एक सँग सानय छी

लऽ कऽ चालनि सुमन हाथ मे
नीक लोक केँ छानय छी

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

गजल

मोन कियै सिंहासन पर
घर मे आफत राशन पर

काज करय मे दाँती लागय
तामस झाड़ी बासन पर

लाज करू जे पाहुन जेकाँ
खाय छी कोना आसन पर

खोज-खबर नहि धिया-पुता के
बात सुनाबी शासन पर

बिना कमेने किछु नहि भेटत
जीयब खाली भाषण पर

कहू सोचिकय कहिया सुधरब
जखन उमरि निर्वासन पर

सुमन समय पर काज करू
आ सोचू निज अनुशासन पर

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

गजल

अप्पन अप्पन काज बिसरलहुँ
सच पूछू तऽ लाज बिसरलहुँ

सिखलहुँ लूरि जीबय के जतय
कियै ओहेन समाज बिसरलहुँ

छूटल अरिपन, सोहर सब किछु
लागल एहेन रिवाज बिसरलहुँ

सासुर मे छल खूब रईसी
घर मे नखरा-नाज बिसरलहुँ

मन गाबय छल गीत मिलन के
सुर के सँग मे साज बिसरलहुँ

संस्कार के बात करी नित
जीबय के अन्दाज बिसरलहुँ

चुप रहलहुँ अन्याय देखिकय
सुमन हृदय आवाज बिसरलहुँ

रविवार, 1 अप्रैल 2012

तखने जीयब शान सँ

समय के सँग मे डेग बढ़ाबी तखने जीयब शान सँ
किछु ऊपर सँ रोज कमाबी तखने जीयब शान सँ

काका, काकी, पिसा, पिसी रिश्ता भेल पुरान यौ
कहुना हुनका दूर भगाबी तखने जीयब शान सँ

सठिया गेला बूढ़ लोक सब हुनका बातक मोल की
हुनको नवका पाठ पढ़ाबी तखने जीयब शान सँ

सासुर अप्पन कनिया, बच्चा एतबे टा पर ध्यान दियऽ
बाकी सब सँ पिण्ड छोड़ाबी तखने जीयब शान सँ

मातु-पिता के चश्मा टूटल कपड़ा छय सेहो फाटल
कनिया लय नित सोन गढ़ाबी तखने जीयब शान सँ

पिछड़ल लोक बसल मिथिला मे धिया-पुता सँ कहियो
अंगरेजी मे रीति सिखाबी तखने जीयब शान सँ

सुमन दहेजक निन्दा करियो बस बेटी वियाह मे
बेटा बेर मे खूब गनाबी तखने जीयब शान सँ

बुधवार, 28 मार्च 2012

ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी

बहुत दूर, पर गाम देखय छी
भेल बहुत बदनाम देखय छी

काली-पूजा, फगुआ छूटल
दारू के परिणाम देखय छी

बापक कान्ह कोदारि सदरिखन
बेटा केर आराम देखय छी

कष्ट झुकय मे नवतुरिया केँ
ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी

अपनापन के बात निपत्ता
घर घर मे संग्राम देखय छी

धन के अर्जन घूसखोरी सँ
हुनके बड़का नाम देखय छी

सुमन सुधारक आशा टूटल
तखनहि केवल राम देखय छी