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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

गजल

अप्पन अप्पन काज बिसरलहुँ
सच पूछू तऽ लाज बिसरलहुँ

सिखलहुँ लूरि जीबय के जतय
कियै ओहेन समाज बिसरलहुँ

छूटल अरिपन, सोहर सब किछु
लागल एहेन रिवाज बिसरलहुँ

सासुर मे छल खूब रईसी
घर मे नखरा-नाज बिसरलहुँ

मन गाबय छल गीत मिलन के
सुर के सँग मे साज बिसरलहुँ

संस्कार के बात करी नित
जीबय के अन्दाज बिसरलहुँ

चुप रहलहुँ अन्याय देखिकय
सुमन हृदय आवाज बिसरलहुँ

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