आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें
छोरी देने छी जहन, हम सब अप्पन खेत कें
आयी फेर याद ..............................
माय के कोना बिसरलौं , की भेले इ की कहू
चली परल छी लय पिपासा, छोरी अप्पन भेष कें
भाई छुटल , मित्र छुटल, छुटि गेल सब याद सब
हम तरपी क रही गेलौं, बस हाथ धेने केस कें
आयी फेर याद आयल ........................
नया जमाना आबी गेलय, पाई टा भगवन छई
जाकरा देखू एके रस्ता , पायी के इन्सान छई
सखी छुटल मीत छुटल, रुसी गेल सबटा कोना
आब त बिसरी रहल छी, नेंपन के खेल कें
आयी......................................
गाम पर पीपर तर में , खेलाइत रहिये कोना कहू
रोज एतय परदेश में छी , दिन खुजिते रोज बहु
मोन कनाल अंखि कनाल, देखि के कोना सहू
सोचिते सबटा मिटा मितायल, सपना अपने देखि कें
आयी .....................................
संस्कार सेहो बिसरलौं , चललौं पश्चिम के बाट पर
मिथिला बस कल्पैत रहली, उएह टूटलहिया खाट पर
अंत में मिथिले टा पूछती , राखू नै एकरा ताख पर
सुनु आनंद के बात मिता, घर नै बनाबू बालू आ रेत कें
आयी फेरो .................................
रचनाकार
आनंद झा 'परदेशी'
(रचनाकार आनंद झा एकरा कतौ हमरा स बिना पूछने नै उपयोग करी )
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