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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

रोटीक स्वाद

आई दस बर्खक  बाद कियोक पाहून छोटकी काकीक अँगना एलैंह  | पहुनो परख गरीबक घर अँगना किएक एता | छोटकी काकी ओनाहितो गरीब मसोमात एहनठाम कि सेबासत्कार भेटक उम्मीद | 
पाहुनो केँ तँ   हुनकर बहिनक बेटा | ओकरा ओ बारह बर्ख पहीले देखने रहथि आ आब ओ सत्रह बर्खक पाँच हाथक जबान भए  गेल अछि |
आबिते अपन मौसी केँ पएर छू कए  गोर लगलक |
"केँ बौआ चिन्हलहुँ नहि ?"
"मौसी ! हम लोटन, अहाँक बहीन मालती केँ बेटा |"
मौसी (छोटकी काकी) दुनू हाथे स्नेह सँ लोटन केँ माथ पकैर अपन  करेजा सँ सटा -" चिन्हबौ कोना, मूडने में  पाँच बर्खक अवस्था में जे देखलीयै से देखने देखने, आई कोना ई गरीब मौसीक इआद  आबि गेलौ |"
लोटन - "मौसी मधुबनी में हमर परीक्षाक सेंटर परल छल आई परीक्षा खत्म भेल  तँ  मोन में भेल मौसीक घर सौराठ  तँ  एहिठाम सँ कनिके दूर छैक भेट कए  आबि "
मौसी -" जुग- जुग जीबअ नेन्ना, एहि दुखिया मौसीक इआद  तँ  रहलै | आ मालती केहन ? ओझाजी केहन ?"
लोटन -"सब कियो एकदम फस्ट किलास, दनादन, ओ सब आब छोरु पहिले किछ नास्ता कराऊ, मधुबनी सँ सौराठ पएरे अबैत-अबैत बड्ड भूख लागि गेल |"
सुनिते मातर मौसीक छाती में धक सँ उठल, ओ मने- मन सोचए लगलि - नेन्ना केँ की खुवाऊ ? घर में किछो नहि अपने तँ    माँगि बेसए क गुजरा कए  लै छी एकर नास्ता भोजनक  व्यवस्था कतए सँ होएत | " 
हुनक सोच केँ बिचे में तोरैत लोटन फेर सँ बाजल -" मौसी जल्दी बड्ड भूख लागल |"
अपना केँ सम्हारैत मौसी -"हाँ एखने हम भात, दालि, भुजिया, तरुआ, नीक सँ बना कए  नेन्ना केँ दै छी, अहाँ कनी बैसू |" इ कहैत मौसी भंसा घर दिस बिदा भेली, जहन की हुनका बुझल जे घर में किछ नहि अछि |
मुदा हुनका पाँछा-पाँछा लोटन सेहो आबि -" नहि मौसी एतेक काल हम नहि रुकब पाँच बजे मधुबनी सँ बाबूबरहीक अन्तीम बस छै आ चारि एखने बाजि गेलै |"
मौसी अपन घरक हालत देखि लोटनक गप्पक उतर नहि दए  सोचय लगलि - "आह ! मजबूरी नेन्ना केँ रूकैयो लेल नहि कैह सकै छी |" 
एतबा में लोटन भंसा घरक बर्तन सब केँ देखि बाजल -" एहि बर्तन सब में सँ जे किछ अछि दए दिए |'
"हे राम !"- मौसीक मन कनाल, बर्तन में किछ रहैक तहन नहि | आगु  हुनक मूह बंद भए गेलैंह, बकोर लगले केँ लगले रहलनि | बड्ड सहास सँ गप्प केँ समटैत बजली -"नहि बौआ किछ नहि छौ, हम एखने बिना देरी केने बनाबै छी |"    
लोटन -"नहि नहि मौसी बनाबै केँ नहि छै, बस छुटि जाएत |" एतबे में लोटनक नजैर टीनही ढकना सँ झाँपल कोनो समान पर परल | आगु जा ढकना उठा -"हे मौसी ई की ?"
मौसी अबाक, कि बजति, पहील बेर नेन्ना आएल आ ओकरा खूददीक रोटी खुआउ ओहो राइते केँ बनल | राति में एकटा खूददीक रोटी बनेने रहथि, आधा खा आधा ढकनी सँ झाँपि राइख देने रहथि |  
लोटन ओहि रोटी केँ दाँत सँ काटि कए  खाइत आगाँ बाजल -" एतेक नीक रोटी तँ  हम कहीयो खेन्हें नहि छलहुँ, मए  तँ  खाली छाल्ही भात, दूध-भात, दूध-रोटी, खुआ-खुआ कए  मोन घोर क  दैए | आहा एतेक स्वाद  तँ  पहील बेर भेट रहल अछि |"
मौसी लोटनक गप्प आ ओकर खएक तेजी देख बजली - "रुक-रुक कनी आचारो तँ  आनि देबअ दए |" ई कहि मौसी अचार ताकै लेल एम्हर -उम्हर ताकै लगली मुदा अचार कतौ रहै तहन तँ  भेटै |
लोटन -"रहअ दीयौ, एतेक नीक इ मोटका रोटी रहै अचार केँ कोन काज | रोटी तँ  खतम भए गेल | मौसी बकर-बकर ओकर मूह तकैत रहली | 
लोटन -" अच्छा आब हम जाई छी, घर देख लेलीयै फेर मधुबनी एलहुँ  तँ  अहाँ लग जरुर आएब, मुदा हाँ एहने नीकगर मोटका रोटी बनेने रहब " इ कहैत मौसी केँ गोर लागि लोटन गोली जकाँ बाहर आबि गेल | मुदा बाहर एला बाद मौसीक दयनीय  हालत देखि  ओकर दुनू आँखि सँ  नोरक धार बहैत रहै |      

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जगदानन्द झा 'मनु'

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