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शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

गजल

नहि हमरा सागक तोडन चाही
नहि हमरा पातक छोडन चाही 

नव मिथिला निर्माणक बल लेने 
शुभ मिथिला राजक जोडन चाही 

सूपक भाँटा सन डोलति लोकक 
मोनक बदलति नै मोरन चाही 

बिनु जानक भय केने छोरै नहि 
घर घर बिषबिश्षी घोडन चाहि 

हक हमरा  एखन अप्पन चाही
सभटा तीमन नहि फोडन चाही  

(वर्ण-१३, मात्रा- नअ नअटा दीर्घ सभ पाँतिमे)

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