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गुरुवार, 31 मई 2012

गजल


दिल में घाऊ भरल मुदा महफ़िल अछि सजल !!
दगावाज प्रीतम के राज खुजल हम गाएब गजल !! -शेर

एकटा राज के भेद आई खुईल जेतए
जीते जी जिनगी सं ओ आई मुईल जेतए

मानैत छलहूँ जेकरा प्राण ओ छल आन
पर्दा उठैत नून जिका ओ घुईल जेतए

फरेबक जाल बुनैय में ओ छै होसियार
कवछ जोगार में ओ आई तुईल जेतए

बैच नै सकैय ओ आई हमरा नजैर सं
सभटा होसियारी ओ आई भुईल जेतए

पतिवर्ता नारी कोना कैएलक मुह कारी
भेद राज खुलैत ओ आई झुईल जेतए
..........वर्ण-१६..............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


बूझलक नेता ई जनता पाकल अछि
आम जनता त ' सदिखन भागल अछि

बचल छै गाम में बूढ़ पुरान आ बच्चा
कबिलाहा सभ प्रदेश में पागल अछि

खेत बनल छै परती घर सुनसान
सूतैत पिच पर सभ अभागल अछि

पिया विरह में वौराएल नब कनियाँ
कनि कनि सगरो देह सुखायल अछि

जागू जनता जनार्दन आबो हक जानू
भगाबू ओकरा जे नेता बिकायल अछि

(वर्ण-१५ )
जगदानन्द झा 'मनु'

बुधवार, 30 मई 2012

गजल

माए बाप बेटी के जतन सं राखै छै सहेज
ह्रिदय टुक्रा दान करैय में फाटै छै करेज

ख़ुशी के नोर बह्बैत बाप करै छै कन्यादान
दुलहा के चाही टाका रुपैया मागै छै दहेज़

दुलहा बनल याचक बाप बनल पैकारी
की सब चाही दहेज़ ओ सूनाबै छै दस्तावेज

बाप बेचीं घर घरारी दैय छै मोटर गाड़ी
बर मागै सोफासेट बाप तनै छै गोदरेज

दहेजक आईग में जईर कs मरैय बेट्टी
की जाने लोक एकरा कोना करै छै परहेज
--------वर्ण-१७---------------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


जाति पाति पर आब हम नहि लड़ब यौ
हम मैथिलपुत्र मिल क' आगु बढ़ब यौ

अप्पन  माटि पानि पर आब जीयब हम
प्राण  अप्पन छोरब वचन नै तोरब यौ

बाहर बहुत छैक दूध मलाई राखल
मडुआ रोटी नून लेल सभटा छोरब यौ

खून पसीना सँ अप्पन धरती पटाएब
मेहनत सँ सोना उपजा कय रहब यौ

बिसरल मान सम्मान फेर सँ जगाएब
दुनिआक नक्सा में 'मनु' फेर सँ उठब यौ

वर्ण-१६
जगदानन्द झा 'मनु'

रुबाइ

पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 

बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 

एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत 

खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 

                       ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

मंगलवार, 29 मई 2012

रुबाइ



पियक्कड़ के कहैय कियो खराब एही जमाना में
ओ खुद नुका कs पिबैय शराब एही ताडिखाना में
घुटुर घुटुर पीवगेल भरल गिलास शराब
छोडीगेल एक राज की किताब एही ताडिखाना में

---प्रभात राय भट्ट -----

रुबाइ



गम गम गमकै छै महफ़िल सजल छै गुलाब
छल छल छलकै छै गिलास में भरल छै शराब
एक घूंट में कियो पीगेल उठाके बोतल समूचा
मातल पियक्कड़ कहैत छै गंगाजल छै शराब

---प्रभात राय भट्ट -----



सोमवार, 28 मई 2012

गजल @ प्रभात राय भट्ट


ई धरती ई  गगन रहतै जहिया धरि 
अप्पन प्रेम अमर रहतै तहिया धरि

कहियो तँ  ई  दुनियाँ  बुझतै प्रेमक मोल
प्रेमक दुश्मन जग रहतै कहिया धरि

बाँझ परतीमे खिलतै नव प्रेमक फूल
प्रेमक फूल सजल रहतै बगिया धरि

कुहू कुहू कुहकतै कोयल चितवनमे
जीवनक उत्कर्ष रहतै सिनेहिया धरि 

प्रीतम "प्रभात" संग नयन लड़ल मोर
भोरसँ  दुपहरिया साँझसँ  रतिया धरि 

..........वर्ण-१६...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल


पी कs शराब जे बनैय नबाब
झूठ जिन्गी के ओ करैय बचाब

पी क शराब जे देखाबै नखरा
जमाना ओकरा कहैय खराब

नीसा सं मातल ओ ताडिखाना में
लडैत पडैत पिबैय शराब

ओ खोजैय प्रीतम के बोतल में
बोतल शराब लगैय गुलाब

---प्रभात राय भट्ट -------


रुबाइ

भेटल नहि सिनेह तेँ शराबे पीलौं

दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 

के कहैत अछि शराब छैक खराब ‘मनु’

बिन हुनक रहितौं शराबे सँ हम जीलौं

                        ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रुबाइ

ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै

घुँघरू खन-खना-खन खनकैत किएक छै

दुनू भीतरसँ छैक एक्केसन  खाली 

दुनू अपन गप्प नहि बुझैत किएक छै

                      ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मन’

गजल

चान सँ सुन्नर सजनी हमर एहेन  नै  केखनो सोचलौं हम
भाग में लिखलाहा छल हमर जे अहाँ केँ  अपन  बनेलौं हम
 
एक चान अछि धरती केँ  ऊपर जेकरा सभ  कियो देखते छी
दोसर हमर हृदय में बसल पाँज में जकरा भरलौं हम
 
अहाँ छी सुन्नर हे मनमोहनी तन मन सभ निश्छल अहाँ केँ
एहि सादगी पर मरि मीटलौं अहीँक पूजा करै लगलौं हम
 
आँखि मुनि आ खोलि हम  सामने हमर अहाँ रहै छी सदिखन
सुन्नर छबी निहारैत अहाँ केँ अहीँक लौलसा में रहलौं हम
 
चन्ना ताराक संग जेना छैक सुख दुख पल-पल जीबन भरि
रहि जीबन भरि 'मनु' सुगँधाक जीबन अहाँ केँ सोपलौं हम 
 
(वर्ण- २४)  
जगदानन्द झा 'मनु'
 

रविवार, 27 मई 2012

बचल रहय परिवार

बात कहय मे नीक छल, बेटा गेल विदेश।
मुदा सत्य ई बात छी, असगर बहुत कलेश।।

विश्व-ग्राम केर व्यूह मे, टूटि रहल परिवार।
बिसरि गेल धीया-पुता, दादी केर दुलार।।

हेरा गेल अछि भावना, आपस के विश्वास।
भाव बसूला के बनल, भोगि रहल संत्रास।।

शिक्षित केलहुँ कष्ट मे, पूजि पूजि भगवान।
जखन जरूरत भेल तऽ, दूर भेल सन्तान।।

शिक्षित नहि करबय अगर, लोक कहत छी पाप।
मुदा एखन सन्तान लय, मातु-पिता अभिशाप।।

लागय अछि जिनगी एखन, बनल एक अनुबन्ध।
सभहक घर मे देखियौ, टूटि रहल सम्बन्ध।।

बेसी टाका की करब, करियौ सुमन विचार।
सुन्दर एहि सँ बात की, बचल रहय परिवार।।

गजल



 

आई फेर पुछैय लोक हमरा अहाँ किएक उदास छि
आ हम पूछलएन हुनका सं अहाँ किएक नीरास छि

जातपातक भेदभाव कोना उत्तपन भेल मधेश में
ताहि चिंतन में हम डुबल छि अहाँ किएक नीरास छि

थरुहट अबध मिथिला भोजपुरा नै चाही मधेश के
मधेशी के चाही स्वतंत्र मधेश अहाँ किएक नीरास छि

अखंड मधेश केर विखंडन में शाषक अछि लागल
हेतै क्रूरशाषक के अवसान अहाँ किएक नीरास छि

सहिदक सपना मधेश एक प्रदेश बनबे करतै
निरंकुश शाषक मुईल जेतै अहाँ किएक नीरास छि
............वर्ण-२१..............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 26 मई 2012

गजल

ओ निसाँ शराब में कतए चाहि जे पिबैक लेल 
बहाँना माहुर  में कतए चाहि जे चिखैक लेल   
 
सगरो बहल अछि धाड आब शराबक देखू
लाबू कतय सँ सूई-ताग ई धाड सिबैक लेल
 
बचल किए आब शराबे टूटल करेज लेल
बहुतो छै  जीबन में एकर बादो जिबैक लेल 
 
जँ डगमगएल डेग शराबे किएक थामलौं   
बाँकी अछि एकर बादो बहुत सिखैक लेल
 
बहाँना बहुत अछि दुनियाँ में एखनो जिबै के
आबू मनु देखू बहुत किछ अछि पिबैक लेल  
 
वर्ण- १८
जगदानन्द झा 'मनु'

रुबाइ

पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 

बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह

जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल

तँ पिबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह

                              ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 

गुरुवार, 24 मई 2012

नाकाम

हर दम दुःख अपन भुलाबै चाहलौं

एकरा आन सँ हमेशा बचाबै चाहलौं

वोहे किस्सा हमरा दिस बढ़ि रहल अछि अखनिधरि

वोहे आगि सीना में धधकि रहल अछि अखनिधरि

वोहे व्यर्थ के चुभन अछि छाती में अखनिधरि

वोहे बेकार इच्छा हमर बनल अछि अखनिधरि

दुःख बढैत गेल मुदा इलाज नहि भए सकल

हमर बेचैन हालात के आराम कहाँ भेटल

मोन दुनिया के हर दर्द के अपना त' लेलक

व्याकुल आत्मा के उन्मादक ढंग नहि भेटल

हमर कल्पना के बिखरल क्रम अछि वहै

हमर बुझैत अहसास के स्तिथि अछि वहै

वोहे बेजान इरादा आ वोहे बेरंग सवाल

वोहे बेकार खींचातानि आर बेचैन ख्याल

आह ! ई रोजक कश्मकश्क के अंजाम

हमहुं नाकाम, हमर  कोशिशो नाकाम !!!!!!!!!!!!!

रुबाइ

पीब नै शराब तँ हम जी कोना क

फाटल करेजकेँ हम सी कोना क

सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक

सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना क

                    ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मन’

मानु ने मानु.....

मानु ने मानु,
नव चेतना स दूर,
हम मैथिल मजबूर,
सभ्य होबाक मुखौटा लगौने,
स्वयं अपन रीढ़क हड्डी तोरै छि,
जागलो में किछ नई बुझै छि,
युवा छि,
पर साहस कहाँ ?
स्वाभिमान बनेबाक
सामर्थ्य कहाँ ?
समय संग चलैक,
दृष्टी कहाँ ?
प्रतिकार करैक,
तर्क कहाँ ?
मानु ने मानु,
अहाँक अधोगतिक,
बिज पहिनहि रोपल गेल अई,
दहेजक   बिष पैन स,
अहाँक नहौल गेल,
अहाँ महैक गेल छि,
भिनैक गेल छि,
प्रखर संस्कृति स लुढैक गेल छि,
आनक पुरुसार्थ पर,
ठाढ़ होबाक कोशिस,
अपाहिजे त बनाओत,
क्रमशः  और,
निस्तेज निर्बल होइत जैब,
प्रागतिक भ्रम में फँसल,
स्वयं  स हारैत,
कोन रेस में भगैत छि,
ठहरू  !
थोरेक सोचु ,
अहाँ स्वयं के कतेक सम्मान करै छि,

बुधवार, 23 मई 2012

रंग श्यामल रंग मे

गीत लिखलहुँ आयतक जे, भावना के सँग मे
ताहि कारण अछि सुमन के, रंग श्यामल रंग मे

जे एखन तक भोगि चुकलहुँ, गीत आ कविता लिखल
किछु समाजिक व्यंग्य दोहा, किछ गज़ल के ढंग मे

याद आबय खूब एखनहुँ, कष्ट नेनपन के सोझाँ
नौकरी तऽ नीक भेटल, पर फँसल छी जंग मे

छोट सन जिनगी कोनाकय, हो सफल नित सोचलहुँ
ज्ञान अर्जन करैत जिनगीक, डेग सबटा उमंग मे


सोचिकय चललहुँ जेहेन, परिणाम तेहेन नहि भेटल
हार नहि मानब पुनः, कोशिश करब नवरंग
मे

रुबाइ

आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पी दि
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़ब दि
के कहैत अछि निसाँ शराबमे बड़ अछि 
कनी अपन प्रेमक निसाँमे जीबय दिअ 

                        ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रुबाइ

हम पीलौं तँ लोक कहलक शराबी अछि 

कहू एतअ के नहि बहसल कबाबी अछि

बुझलौं अहाँ सभ   दुनियाक ठेकेदार 

हमरो  आँखिसँ देखू की खराबी अछि  

                   ✍🏻  जगदानन्द झा ‘मनु’

 

रुबाइ


कखनो तँ हम अहाँ केँ मोन पडिते हैब
यादिक दीप बनि करेज मे जरिते हैब
बनि सकलहुँ नै हम फूल अहाँक कहियो यै
मुदा काँट बनि नस नस मे तँ गडिते हैब

रविवार, 20 मई 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

 



गजल

भ्रम में किएक रखने छि सत्य तथ्य बताबु यौ
नै बनत मधेश तं सरकार छोइड आबू यौ

दिवा स्वप्न में भ्रमित छि जनता केर भ्रमौने छि
मातृभूमि रक्षा हेतु चिर निंद्रा सं जागु यौ

माए मधेश के छाती पर चलल हर फार
खण्ड खण्ड कोना भेल मधेश किछ तं सुनाबू यौ

आब कियो सपूत नै देत वलिदान अहि ठाम
कोना भेल नीलाम मधेश कारन देखाबू यौ

सहिद्क आत्मा के सुनलौ नै चितकार कियो
नहीं भेटल कुनु अधिकार आब नै लडाबू यौ

मधेशी गर्दन पर चलल स्वार्थक तलवार
आब अप्पन संविधान अप्पने लिख बनाबू यौ
............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 19 मई 2012

गजल आ गीत मे अंतर की छै?

गजल आ गीत मे अंतर की छै?

गजल आ गीत मे अंतर की छै? मात्र एक अक्षर के । गीत आ गजल दूनू गाओल जाइ छै । जँ ध्वनीक तुक {राइम्स } सभ पाँति मे मिलैत रहत त' गीत वा गजल दूनू सुनै मेँ बेशी नीक लागै छै । मुदा गीत मे राइम्स नहियो हेतै त' चलतै मुदा गजल मेँ प्राय: पाँति संख्याँ 1 ,2,आ तकरा वाद 4 ,6 , 8 , 10 . . . मे हेवाक चाही । गीत मे कतेको पाँति के बाद फेर सँ मुखरा दोहराओल जाइ छै मुदा गजल मे प्राय: तुकान्त वाला पाँति बाद कहल जाइ छै । गजल कम सँ कम 10 टा पाँतिक होइ छै जकरा 2-2 पाँति के रूप मे बाँटि क शेर कहल जाइ छै । । जहिना गीतक शास्त्र व्याकरण होइ छै{सा रे ग . . .} तहिना गजलक व्याकरण होइ छै । जहिना शास्त्रीय गायण मे राग होइ छै तहिना गजल मे बहर होइ छै । जहिना गीत कोनो ने कोनो ताल . राग . मे होइ छै तहिना गजल कोनो ने कोनो बहर मे होइ छै । । आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की?

नवका गायक त' गीतक टाँग -हाथ तोड़ि क' गाबै छथि । दू तीन टा शब्द के एकै साथ जोड़ि क' गाबैत छथि बूझू जे फेविकाँल सँ साटि देने होइ । जहिना गीत मे कोनो तरहक चिन्हक {कोमा ,फूल स्टाँप , आदि} के मोजरे नै दै छथि । ओहिना
गजल मे कोना पाँति मे कोनो चिन्ह{. , ? आदि} नै देल जाइ छै ।मात्र अपन नामक आगू पिछू {" "} चिन्ह लगा सकै छी । 
आब एना किए कैएल जाइ छै से नै पूछू ? अपने सोचू ने गीते जकाँ गजलो के त' गाओल जाइ छै ।
आ आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की?

har ekta mitr gjalak bare me puchhlani t ham kahaliyani

गजलक मे आबै वला किछु शब्द के देखू ।

1} शेर- शेर दू पाँतिक होइत अछि आ अपना आप मे सदिखन पूर्ण भाव दै अछि आ आन पाँति सँ स्वतंत्र रहैत अछि ।

2} गजल- कम सँ कम पाँच टा शेरके जँ किछु तुकान्तक सँग एक ठाम राखल जाए त' ओ गजल बनै छै । एकटा गजल मे एकै रंग तुकान्त हेवाक चाही ।

3} रदीफ- गजल पहिल शेर के अंतीम सँ देखू जँ कोनो एहन शब्द जे शेरक दूनु पाँति मे काँमन होइ त' ओकरा गजलक रदीफ कहबै ।

आइ चलू संगे प्रेम गीत गेबै प्रिय
एकटा प्रेमक महल बनेबै प्रिय

एहि शेर मे "प्रिय "दुनू पाँति मे अछि तेँए एकर रदीफ भेल" प्रिय" । 
आब गजलक सब शेरक दोसर पाँति मे इ रदीफ रहबाक चाही इ अनिवार्य अछि ।

4} काफिया - काफिया मने मोटा मोटी तुकान्त{राइम्स} बूझू । जँ बाजै मे एकै रंग ध्वनी बूझना जाइ यै त' ओ भेल काफिया । काफियाक तुक ओहि शब्दक अंतीम सँ पता लागै छै । जे तुकान्त गजलक पहिल पाँति मे अछि सेह आन सब पाँति मे हेवाक चाही । मतलब जे गजलक पहिल शेरक दुनू पाँति मे आ आन शेरक दोसर पाँति मेँ ।

काफिया-
जेना - जेबै . खेबै . नहेबै { ऐ मे "एबै" तुकान्त भेल 
गमला . राधा . चेरा . केरा {एहि मे तुकान्त "आ" भेल}

हेतै , खेबै . झेलै {ऐ मे तुकान्त"ऐ" भेल}

रोटी , हाथी . रेती{ऐ मे "ई" भेल} 

झोरी . बोरी {ऐ मे"ओरी" भेल} 
एनाहिते और सब मे काफिया {तुकान्त }बनत ।

गजल पहिल शेर मे रदीफ आ काफिया क्रमश: पाँतिक अंतीम सँ अनिवार्य रूप सँ हेबाक चाही । आ आन शेरक दोस पाँति मे सेहो रदीफ आ काफिया क्रमश: अंतीम सँ हेएत ।

5} मतला- गजल पहिल शेर जेकर दूनू पाँति मे रदीफ आ काफिया क्रमश: अंतीम सँ होइ एकरा मतला कहल जेतै ।

चाँद देखलौ त' सितारा की देखब
अन्हारक रूप दोबारा की देखब

प्रेमक सागर मे बड नीक लागै
डुब' चाहै छी त' किनारा की देखब

एहि मे पहिल शेरक दुनू पाँति मे काँमन "की देखब" अछि तेँए इ एहि गजलक रदीफ भेल आ रदीफक पहिले देखू , दूनू पाँति मे "सितारा "आ "दोबारा " छै एकर तुकान्त भेल "आरा" तेँए इ भेल काफिया । आब दोसर शेरक दोसर पाँति मे देखू । रदीफ "की देखब" आ तुकान्त "आरा " के संग शब्द "किनारा " अछि । । आब एहि गजलक सब शेरक दोसर पाँति मे अंत सँ रदीफ "की देखब "
आ काफिया "आरा"
तुकान्तक संग हेबाक चाही । 

तुकान्तक पाता शब्दक अंत सँ चलै छै ।

6} मकता-- गजल अंतीम शेर जै मे शाइर अपन नामक प्रयोग करै छथि ओहि गजलक मकता कहल जाइ छै ।

मेघक डरे चान नै बहरायल
नै औता "अमित" नजारा की देखब

इ भेल मकता ।
शाइर अपन सब शेर मे अपन एकै टा नामक प्रयोग करैथ । जेना हम पहिल गजल सँ"अमित" लिखै छी त' आब कतौ "मिश्र " नै लिख सकै छी ।

वेश त' एते देखू आ लिखू । और कनेटा बात छुटल अछि जे अहाँ सब जानैत छी । वर्ण वला बात । त ' आब लिखू किछ नीक गजल 

किछु दिन पूर्व हमरे सन एकटा बिन पढ़ल लिखल गीतकार सँ भेट भेल ।हमरे जकाँ हुनको रचना लोकक माँथ पर द निकैल जाइ छलै । खैर ओ हमरा बतेलनि जे गीत लिखैत बेर जँ वर्ण गानि क लिखब त' गाबै मे सुविधा हेतै । आ ओ वर्ण गानब सिखेलनि । तै पर हम कहलयनि जे एना वर्ण गानि क' हम सब "गजल "लिखै छी
आ तेकर नाम दै छी
"सरल वार्णिक बहर" 

आ एकर वर्ण एना गानल जाइत अछि ।
हिन्दी वर्णमाला के जतेक वर्ण अछि{अ .आ सँ ल' क' य , र . . . धरि} के एकटा वर्ण मानै छी ।
जतेक हलन्त रहै अछि तकरा मोजर नै दै छी अर्थात शुन्य{0} मानै छी ।
संयुक्ताक्षरमे संयुक्त अक्षर के एक {1} मानै छी ।
जेना की " भक्त" एहि मे 2 टा वर्ण भेल । एकटा "भ"आ एकटा "क्त" ।

एकर बाद एकटा शेर कहलौँ ।

भाग्य मे जे लिखल अछि तेँ विरह मे मरै छी
आशा केने छी कहियो त' मान नोरक धरबै

एहि शेरक दुनू पाँति मे 17 वर्ण अछि । एहि बहर मे जँ गजल लिखब त' सब पाँति मे पहिल पाँति एते वर्ण हेबाक चाही ।

ओ गीतकार कहलनि जे अहाँके वर्ण गान' आबै यै तेँए अहाँ नीक गीतकार बनब आ हमहूँ आब गजल लिखब । । गीत आ गजल मे एते समानता अछि त' आब कहू गीत आ गजल मे अंतर की ?

शुक्रवार, 18 मई 2012

गजल

मन सुरभित छल आस मिलन के, प्यास नयन मे तृषित नयन के
बाजल हिरदय धक धक धक धक, सुनितहिं धुन पायल छन छन के


दशा पूर्व के पहिल मिलन सँ, कहब कठिन ई सब जानय छी
साल एक, पल एक लगय छल, बढ़ल कुतुहल छन छन मन के


कोना बात शुरू करबय हम, सोचि सोचिकय मन थाकल छल
भेटल छल हमरा नहि तखनहुँ, समाधान की, एहि उलझन के


बाहर हँसी ठहाका सभहक, सुनैत छलहुँ बस हम कोहबर सँ
चित चंचल मुदा सोचलहुँ बाँचल, चारि दिना एखनहुँ बन्धन के


धीर धरू अपने सँ कहिकय, कहुना अप्पन मोन बुझेलहुँ
वाक-हरण बस आँखि बजय छल, हाथ पकड़लहुँ जखन सुमन के

गुरुवार, 17 मई 2012

एक करोड़क दहेज



संजना आ संजयकेँ ब्याहक तैयारीमे जोर-सोरसँ संजनाक  बाबूजी  आ हुनक सभ परिबार तन-मन-धनसँ लागल संजना आ संजय दुनू  एक्के संगे मेडिकलमे पढ़ै छल ओहि बिच दुनूमे पिआर भेलै आ आब सभक बिचारसँ ब्याह भए  रहल छैक । चूकी संजयकेँ  पिताजी अप्पन  ऑफिसक काजसँ युएसए गेल रहथि आ एहि ठाम हुनक सभटा काज हुनक छोट भेए  अर्थात संजयकेँ कक्का कएलनि
आब  काइल्ह ब्याह तँ  आइ  गाम एलथि  गाम परहक सभ तैयारी देख ओ प्रशन्न भेला बाते बातमे हुनका ज्ञात भेलनि जे कन्यागत दिससँ पंद्रह लाख रुपैया दहेज सेहो संजयकेँ  कक्का ठीक  केने छथि आ कन्यागत देबैक लेल सेहो मानि गेल छथि मानितथिन  किएक नहि उच्च कुल-खनदान, वर डॉक्टर,वरक बाबू बड्डका डॉक्टर, गाममे सए  बीघा खेत, बेनीपट्टीमे शहरक बीचो-बिच चारि बीघाक घड़ाड़ी 
मुदा  संजयक बाबूकेँ ई बातसँ किएक नहि जानि खुशी  नहि भेलन्हि  ओ तुरंत ड्रायबरकेँ  कहि गाड़ी निकलबा कन्यागत ओहिठाम पहुँचलाह काइल्ह ब्याह आ आइ  वरक बाबू उपस्थीत, मोनक संकाकेँ  नुकबैत कन्यागत दिससँ कन्याँक बाबू सहीत सभ दासोदास उपस्थीत पानि, चाह शरबत, नास्ता, पंखा सभ  प्रस्तुत कएल गेल संजयक बाबू ओहि  सभकेँ  नकारैत दू टूक बात संजनाक बाबूसँ बजलाह,  " समधि कनी हमरा अपनेसँ एकांतमे गप्प करैक अछि "
हुनक  संकेत पाबि सभ गोते ओहि ठामसँ हटि गेलाह, मुदा सभक मोनमे अंदेसा भरल, कतेको गोटा दलानक कोंटासँ सुनैक चेष्टामे सेहो सभकेँ गेला बाद संजयक बाबू संजनाक बाबूसँ,  "समधि ! हम तँ  एखने दू घंटा पहिने युएसएसँ एलहुँ क्षमा करब पहिने समाय नहि निकालि पएलहुँ, मुदा ई की सुनलहुँ अपने पन्द्रह लाख रुपैया दहेजमे दए  रहल छी "
संजनाक बाबू  दुनू  हाथ जोरने,  "हाँ समधि जतेक अपनेक सभक मांग रहनि हम अबस्य पूरा करबनि "
संजयक बाबू,  "जखन मांगेक गप्प छैक तँ  हमरा एक करोड़  रुपैया चाही "
सुनिते संजनाक बाबूक आँखिक आँगा अन्हार भए  गेलनि, आ आनो जे सुनलक सेहो दांते आँगुर कटलक संजनाक बाबू पुर्बबत दुनू हाथ जोड़ने,  "एहेन बात नहि कहु समधि पंद्रह लाख जोड़ैमे तँ  असमर्थ छलहुँ आ ई एक करोड़ तँ  हम अपनों बीका कए  नहि आनि सकै छी |"
कहैत निचा झुकलनि शाइद संजयक बाबूक पएर छुबैक चेष्टामे मुदा निचा झुकैसँ पहिले संजयक बाबू हुनका उठा अपन करेजासँ लगा,  "ई की पाप दए  रहल छी, पएर तँ  हमरा अपनेक पकरबा चाही जे अपने अपन बेटी दए रहल छी  आ रहल पाइ  तँ  हमरा एक्को रुपैया नहि चाही भगबानक कृपासँ हुनक देल सभ किछु अछि रहल एक करोड़क बात तकरा क्षमा करब ओ छ्नीक ठीठोली छल, जखन मांगने पंद्रह लाख भेटत तँ  एक करोड़ किएक नहि जे आगू  कोनो काजो नहि कर परेए आ की अपनेक बेटी आ हमर पुतौह एक करोड़सँ कमकेँ छथि हा हा हा .... ।“ 
एका एक चारू कात नोराएल आँखिसँ ड़बड़बेल खुशीक ठहाका पसरए लागल   
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जगदानन्द झा 'मनु'