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बुधवार, 30 मई 2012

रुबाइ

पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 

बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 

एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत 

खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 

                       ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

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