काइल्ह सौं काग क्रूरे भीतक कगनी पर
आशो निराश भ'बैसल हुनक करनी पर
करिया काग देखि सोचीक लगेये डॉर
अनहोनी नै भ' जाय कागक कथनी पर
झहरे नोर झर- झर अछि किछु फुरै नै
जा क' क्यो त' सगुन ऊचारहू कहनी पर
बरखो बितल लागेय हुनकर एनाई
बताहि छी आयेल छला धनरोपनी पर
आई जौं कागा कहब अहाँ हुनक उदेश
सोना मेरहायेब लोल अहाँ बजनी पर
सरल वार्णिक बहर वर्ण --१६
(रूबी झा )
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