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बुधवार, 23 मई 2012
रुबाइ
कखनो तँ हम अहाँ केँ मोन पडिते हैब
यादिक दीप बनि करेज मे जरिते हैब
बनि सकलहुँ नै हम फूल अहाँक कहियो यै
मुदा काँट बनि नस नस मे तँ गडिते हैब
1 टिप्पणी:
Arvind
23 मई 2012 को 11:54 am बजे
बहुत सुन्दर.
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बहुत सुन्दर.
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