हे कृष्ण फेर अवतार एकबेर लिअ
पापी कुकरमी सभकेँ आबि घेर लिअ
धरती इ अहाँक डूबि रहल अधर्ममे
जतरा आबि एक बेर अपन फेर लिअ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हे कृष्ण फेर अवतार एकबेर लिअ
पापी कुकरमी सभकेँ आबि घेर लिअ
धरती इ अहाँक डूबि रहल अधर्ममे
जतरा आबि एक बेर अपन फेर लिअ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
१
सब होएत
भवसागर पार
कृष्ण नामसँ
२
कृपा सदति
बना कय राखब
हे भगवान
३
वृंदावनके
कन-कनमे कृष्ण
वास करैत
४
नंदगाममे
सबतरि देवता
गोपीभेषमे
५
निधिवनमे
गोपाल गोपी संग
रास रचैत
६
धर्मक संगे
सगरो छथि कृष्ण
कुरूक्षेत्रमे
७
नारीमे सारी
की सारीमे नारी छै
जानथि कृष्ण
८
मथुरा एलौं
कृष्णमय भेलहुँ
अहीँक कृपा
९
राखब कृपा
सबपर माधव
सुनूँ विनती
१०
बसि जाउ हे
हमर राधा रानी
मन मनमे
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हाइकू मुलत: जापानी काव्य विधा छैक। हाइकूकेँ जन्म, पालनपोषण आ विकास जापानमे, जापानी संस्कृती आ जापानी माटि पानिमे सनि कय भेल छैक। सत्रहवीं शताब्दीक मध्यमे हाइकूकेँ एकटा स्वतंत्र काव्य विधाकेँ रुपमे स्थापित करैमे मात्सुओ बाशो केर सराहनीय काजकेँ सदति यादि राखल जाएत। हाइकू अपन लोक प्रियता आओर सहजता केर कारण जापानसँ निकलि आन-आन भाषा होइत आइ मैथिलीमे सेहो खूब लिखाएल जा रहल अछि।
हाइकू एकटा वार्णिक छंद रचना छैक, जे कुल तिन पाँतिमे लिखल जाइ छै। एकर वार्णिक संरचना छैक पाँच-सात-पाँच, अर्थात एकर पहिल आ तेसर पाँतिमें पाँच-पाँच टा आखर (अक्षर) आ दोसर पाँतिमे सातटा आखर होइत छै। हाइकूमे तुकबंदी वा कोनो विशेष छंदक पालन नहि होइत छैक। आ नहि विराम चिन्हक प्रयोग कएल जाइत छैक। हाइकू लिखैक लेल शब्द चयनमे विशेष ध्यान देबाक चाही। पूर्वमे हाइकू केर मुख्य विषय प्रकृति आ मौसम रहलै मुदा आब एहेन गप नहि रहि गेलैए, आब मानव प्रवृति, ईश्वर महिमा सहित आन आन विषय क्षेत्रमे एकर निरन्तर विस्तार भय रहल छैक।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
अनलौं करेजा अपन ई स्वीकार करु
हमरासँ एना अहाँ नै बेपार करु
गरदनि उठा कनिक हमरा नहि देखबै
हम आब एतेक कोना सिंगार करु
सस्ता महग बाढ़ि रौदी सगरो भरल
सोइच गरीबक अहाँ किछु सरकार करु
हरलौं कते युगसँ तन मन धन बनि अपन
ऐ आतमा पर हमर नहि अधिकार करु
झूठक बटोरल अहाँकेँ बहुमत रहल
‘मनु’ नहि सड़ल बाँटि जनता बेमार करु
(बहरे सगीर, मात्राक्रम - 2212-2122-2212)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हमहूँ खेत आइ बोटीकेँ रोपलौं
पोसै लेल पेट झूठक हर जोतलौं
कारी कोटसँ कोटमे निसाफ ककरा
टाका पाबि आँखि बान्हि दफा जोखलौं
✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’
तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा
तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा
तोहर प्राण गेल बुझि नहि जीवैत ‘मनु’
बिन काठीए जरलौं नहि हम बेवफा
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
तारीमे कतए मद जे चाही जीबै लेल
माहुरमे कुन जीवन चाही जे चीखै लेल
बाँकी नै तारीएटा टूटल मनकेँ लेल
जीवनमे एकर बादो बड़ छै पीबै लेल
सिस्टममे फाटल छै मेघसँ धरती धरि कोढ़
एतै कतयसँ दरजी ई सिस्टम सीबै लेल
जीतब हारब सदिखन लगले छै जीवन संग
फेरसँ उठि कोशिश नमहर हेतै जीतै लेल
खेती मोनसँ करबै ‘मनु’ जीवनकेँ तैयार
कर्मक बीया सगरो बहुते अछि छीटै लेल
(बहरे विदेह, मात्राक्रम- 2222-2222-222-21 सभ पाँतिमे)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’