की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

जगदानन्द झा 'मनु' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जगदानन्द झा 'मनु' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 18 जनवरी 2025

जगदानन्द झा ‘मनु’ केर हाइकू (कड़ी- २)

सब होएत

भवसागर पार

कृष्ण नामसँ

 

कृपा सदति

बना कय राखब

हे भगवान

 

वृंदावनके

कन-कनमे कृष्ण

वास करैत

 

नंदगाममे

सबतरि देवता

गोपीभेषमे

 

निधिवनमे

गोपाल गोपी संग

रास रचैत

 

 

धर्मक संगे

सगरो छथि कृष्ण

कुरूक्षेत्रमे

 

नारीमे सारी

की सारीमे नारी छै

जानथि कृष्ण

 

मथुरा एलौं

कृष्णमय भेलहुँ

अहीँक कृपा

 

राखब कृपा

सबपर माधव

सुनूँ विनती

 

१०

बसि जाउ हे

हमर राधा रानी

मन मनमे 

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

हाइकू की छैक वा हाइकू कोना लिखल जाइ छैक ? (कड़ी-१)


हाइकू

हाइकू मुलत: जापानी काव्य विधा रहितो अपन लोक प्रियता आओर सहजता केर कारण आन आन भाषा होइत आब मैथिलीमे सेहो खूब लिखाएल जा रहल अछि।

हाइकू एकटा वार्णिक छंद रचना छैक, जे कुल तिन पाँतिमे लिखल जाइ छै। एकर वार्णिक संरचना छैक पाँच-सात-पाँच, अर्थात एंकर पहिल आ तेसर पाँतिमें पाँच-पाँच टा आखर (अक्षर) आ दोसर पाँतिमे सातटा आखर होइत छै। हाइकूमे तुकबंदी वा कोनो विशेष छंदक पालन नहि होइत छैक। आ नहि विराम चिन्हक प्रयोग कएल जाइत छैक। हाइकू लिखैक लेल शब्द चयनमे विशेष ध्यान देबाक चाही।

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’



गुरुवार, 9 जनवरी 2025

गजल

अनलौं करेजा अपन स्वीकार करु

हमरासँ एना   अहाँ नै   बेपार करु

  

गरदनि उठा कनिक हमरा नहि देखबै

हम आब एतेक कोना सिंगार करु

 

सस्ता महग बाढ़ि रौदी सगरो भरल

सोइच गरीबक अहाँ किछु सरकार करु

 

हरलौं कते युगसँ तन मन धन बनि अपन

ऐ आतमा  पर हमर नहि अधिकार करु

 

झूठक बटोरल अहाँकेँ बहुमत रहल

‘मनु’ नहि सड़ल बाँटि जनता बेमार करु

 

(बहरे सगीर, मात्राक्रम - 2212-2122-2212)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

गजल

प्रेममे हुनकर जहर चिखने जाइ छी 
सब बुझैए  हम निशा केने जाइ छी
 
जे मजूरक पैँख  पेलौं उपहारमे
प्राण बुझि संगे सगर नेने जाइ छी
 
रोशनाई नै कलममे  बड़ अछि कहब
चीर छाती सोणितसँ लिखने जाइ छी
 
मानतै के देख मुँह पर मुस्की हमर
की करेजाकेँ अहाँ खुनने जाइ छी 
 
बहुत लागल जीवनक ठोकर चारुदिस
सुमरि ‘मनु’केँ चोट सब सहने जाइ छी
 
(बहरे जदीद, मात्राक्रम- 2122-2122-2212)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रविवार, 8 दिसंबर 2024

रुबाइ

आइ हमहूँ खेत बोटीकेँ रोपलौं

पेट पोसै लेल झूठक हर जोतलौं

कारी कोटसँ कोटमे निसाफ ककरा

आँखि बान्हि टाका टक दफ़ा जोखलौं

                ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


बुधवार, 4 दिसंबर 2024

रुबाइ

नेहमे  एतेक  लीबैत किएक छी

दुनिया पुछलनि हम जीवैत किएक छी 

ई बुझला उत्तर ‘मनु’ अहूँ जुनि पूछू 

दिन राति एतेक पीबैत किएक छी 

                  ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

गजल

तारीमे कतए मद जे चाही जीबै लेल

माहुरमे कुन जीवन चाही जे चीखै लेल 

 

बाँकी नै तारीएटा टूटल मनकेँ लेल

जीवनमे एकर बादो बड़ छै पीबै लेल

  

सिस्टममे फाटल छै मेघसँ धरती धरि कोढ़

एतै कतयसँ दरजी सिस्टम सीबै लेल

 

जीतब हारब सदिखन लगले छै जीवन संग

फेरसँ उठि कोशिश नमहर हेतै जीतै लेल

 

खेती मोनसँ करबै ‘मनु’ जीवनकेँ तैयार

कर्मक बीया सगरो बहुते अछि छीटै लेल

 

(बहरे विदेह, मात्राक्रम- 2222-2222-222-21 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

रुबाइ

मुँह पर दरद आबि जेए  मरद नै

हर बहैत जे  बसि जेए  बरद नै 

जिम्मेदारी घरक  गेल विदेशमे 

‘मनु’ केना बुझलक जेए  दरद नै

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’