तैयार छै लुटय लेल बेटीवाला त लुटेबे करतै
बिन दहेज ने उटतै दोली त रकम जुटेबे करतै
प्रेम रस में डुबल मोन आ जुरल हाथ
बिच में एतै दहेज त जुरल हाथ छोरेबे करतै
फोकटो में जे ने छै विवाहक लायाक दुल्हा
खरीदार भेटटै त ऒहो दुल्हा बिकेबे करतै
पनी सँ लबलबायाल भरल छै जे पोखैर
अकाल रौदी एतै त भरल पोखैर सुखेबे करतै
चोर के हाथ ज देबै समानक रखवालि
मैका भेततै त चोर समान चोरेबे करतै
जँ भरल गिलास छै पैन सँ
ऒहि मे भरबै पैन त पैन नीचां हरेबे करतै
जँ दहेज के लालच में हाथ धरी बैसतै बाप
बेटाक जरतै मोन त ऒ चक्कर चलेबे करतै
पर्दा के पाछु जे भ रहल छै दहेजक खेल
पर्दा नै उठतै त खेलबार खेल खेलेबे करतै
माय केर कौखि सँ हटायल जा रहल बेटीक भ्रुन
दहेक ने रुकतै त माय बेटीक भ्रुन हटेबे करतै
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बुधवार, 28 दिसंबर 2011
• 'गजल'
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गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
• 'गजल'
छोडी दियौ हाथ देखिऔ केम्हर जाइ छै
ईजोत में सदिखन मुदा अन्हारो में खाइ छै
अपना सँ छूरा के हाथ भागै छै
जोरै छै हाथ ऒम्हर जेम्हर देखैत पाइ छै
एतेक भरी खदहा कोरने अछि ई हाथ
कोसीस केलौ भरय के मुदा नै भराइ छै
तंग अछि लोक जै नेता सं
देख हाथ मे नोट ऒकरे पाछू पराइ छै
ईजोत में सदिखन मुदा अन्हारो में खाइ छै
अपना सँ छूरा के हाथ भागै छै
जोरै छै हाथ ऒम्हर जेम्हर देखैत पाइ छै
एतेक भरी खदहा कोरने अछि ई हाथ
कोसीस केलौ भरय के मुदा नै भराइ छै
तंग अछि लोक जै नेता सं
देख हाथ मे नोट ऒकरे पाछू पराइ छै
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गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
'बैचैन मोन'
बुइझ नै पेलौ
कोना बितल बचपन
कोना आइल लडकपन
कतेक मजा छल नादानी में
अंन्दाज नै छल
एतेक दुख भेटट जवानी में
आय जखन समय
गैची मांछ जेना
हाथ सँ फिसैल गेल
तहन बुझलौ जे
पावय आ हराव केर अही खेल में
जीनगी तय बेकारे गुजैर गेल
कोना बितल बचपन
कोना आइल लडकपन
कतेक मजा छल नादानी में
अंन्दाज नै छल
एतेक दुख भेटट जवानी में
आय जखन समय
गैची मांछ जेना
हाथ सँ फिसैल गेल
तहन बुझलौ जे
पावय आ हराव केर अही खेल में
जीनगी तय बेकारे गुजैर गेल
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कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
गजल'
उम्र दुल्हा केर घटल जा रहल अछि
दहेजक झोडी फटल जा रहल अछि
बानहल बांध भरोसा केर बाप पर
दहेजक बाडि मे बांध टुटल जा रहल अछि
चीन्ता सतावे दुल्हा के कहीं रही नै जै कुमार
जनगना में लडकी जे कमल जा रहल अछि
मजबुर बेटा कहलक बाप सं छोरु लालच दहेजक
जवानी व्यर्थ में बितल जा रहल अछि
पाकी गेल किछु केस मुदा बांकि छल मुँछ
आब त मुछो पकल जा रहल अछि
दहेजक झोडी फटल जा रहल अछि
बानहल बांध भरोसा केर बाप पर
दहेजक बाडि मे बांध टुटल जा रहल अछि
चीन्ता सतावे दुल्हा के कहीं रही नै जै कुमार
जनगना में लडकी जे कमल जा रहल अछि
मजबुर बेटा कहलक बाप सं छोरु लालच दहेजक
जवानी व्यर्थ में बितल जा रहल अछि
पाकी गेल किछु केस मुदा बांकि छल मुँछ
आब त मुछो पकल जा रहल अछि
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गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
• 'गजल'
सजबै अहाँ एना त दिन में चान उगि जेतै
देखी अहाँ के हमर करेजा में उफान उठि जेतै
अहाँक झलक पावक लेल बैसै छि जे दलान पर
लोक कहीं बुझि गेलै त ऒ दलान छुटि जेतै
मोन हमर बहुत चंचल ताहि पर ई यौवन
एना जे नैना चलेवै त हमर ईमान झुकी जेतै
हमर जान जुरल जा रहल या अहाँक जान सँ
ज अहाँ आब रोकबै त इ नादान रुठि जेतै
देखी अहाँ के हमर करेजा में उफान उठि जेतै
अहाँक झलक पावक लेल बैसै छि जे दलान पर
लोक कहीं बुझि गेलै त ऒ दलान छुटि जेतै
मोन हमर बहुत चंचल ताहि पर ई यौवन
एना जे नैना चलेवै त हमर ईमान झुकी जेतै
हमर जान जुरल जा रहल या अहाँक जान सँ
ज अहाँ आब रोकबै त इ नादान रुठि जेतै
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गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
• 'गजल'
अहाँक चौवनीया मुस्की केलक घायल
मोन हरौलक अहाँक छमछमायत पायल
केलक एहेन जादु अहाँक नैना के तीर यै
देखलौव बहुत मुद कियो दोसर नै भायल
कतय चुरौलौ अहाँ हमर मोन यै
कने कहु कतय अछि हमर मोन हरायल
आँखि सँ चुरा क नुकौलौ करेजा मे
फसल एना ककरो घिचनौ ने बहरायल
मोन हरौलक अहाँक छमछमायत पायल
केलक एहेन जादु अहाँक नैना के तीर यै
देखलौव बहुत मुद कियो दोसर नै भायल
कतय चुरौलौ अहाँ हमर मोन यै
कने कहु कतय अछि हमर मोन हरायल
आँखि सँ चुरा क नुकौलौ करेजा मे
फसल एना ककरो घिचनौ ने बहरायल
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गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
नवकी बहुरीया
शहर सँ एलि नवकी बहुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पहिरने जिंस ताहि पर टँप्स गजवे
घुमे सौसे चौक चौबटिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
जेहने ढीठ तेहने निर्लज
टुकुर टुकुर देख हाँसे बुढिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
के जान आर के अन्जान
लागे जेना सब हुनक संगतुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
कतेक करब गुनगान हुनक
मुँह मे राखैत हैदखन पुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
बुढ सास सँ काज कराबैथ
ठोकने रहैत दिनो के केवरिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पहिरने जिंस ताहि पर टँप्स गजवे
घुमे सौसे चौक चौबटिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
जेहने ढीठ तेहने निर्लज
टुकुर टुकुर देख हाँसे बुढिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
के जान आर के अन्जान
लागे जेना सब हुनक संगतुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
कतेक करब गुनगान हुनक
मुँह मे राखैत हैदखन पुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
बुढ सास सँ काज कराबैथ
ठोकने रहैत दिनो के केवरिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
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कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
• 'गजल'
जिनगी की कहु एहेन अंजान बाट मे चलल जा रहल अछि
भोर ठीक सों भेल नहि मुदा सांझ ढलल जा रहल अछि
मोजर त खूब लागल छल गाछ मे
टुकला ठीक सों भेल नही मुदा मोजर झरल जा रहल अछि
कियो अन्न बिन तरपै अछि त कियो पानी बिन
ककरो पानी भेटल नई मुदा ककरो गिलास मे मदिरा भरल जा रहल अछि
ककरो चूल्हा अन्न बिन बुझायल अछि
महगा बेचे के चक्कर मे ककरो कोठी मे अन्न सरल जा रहल अछि
बाहारक लगाल आगी देखी सब कियो बुझायात
के बुझायेत मोनक आगी जे बिन धधरे जरल जा रहल अछि
कियो मरि के जिब रहल अछि
कियो जी के जेना मरल जा रहल अछि
भोर ठीक सों भेल नहि मुदा सांझ ढलल जा रहल अछि
मोजर त खूब लागल छल गाछ मे
टुकला ठीक सों भेल नही मुदा मोजर झरल जा रहल अछि
कियो अन्न बिन तरपै अछि त कियो पानी बिन
ककरो पानी भेटल नई मुदा ककरो गिलास मे मदिरा भरल जा रहल अछि
ककरो चूल्हा अन्न बिन बुझायल अछि
महगा बेचे के चक्कर मे ककरो कोठी मे अन्न सरल जा रहल अछि
बाहारक लगाल आगी देखी सब कियो बुझायात
के बुझायेत मोनक आगी जे बिन धधरे जरल जा रहल अछि
कियो मरि के जिब रहल अछि
कियो जी के जेना मरल जा रहल अछि
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गजल,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
'कलेश"
करेजा मे घूसल एहेन कलेश
पल मे बदैल गेल सुन्दर रुप आ भेश
एहेन बज्र खसौलक विधाता
तौर देलक जिनगी केर डोर
ईजोतो मे सिर्फ अन्हार अछि
संतोष धरब ककरा पर
रोकने नै रुकै या आखिक नोर
हे सखी पहिने आबि
रांगल जिनगी केर रांगै छलौ
करम हमर फूटल
अपन सँ संग छूटल
अहुँ किया फेरै छी मुँह
कनेक खूशी देबय मे किया लागै या अबुह
जी के जेना रोज मरै छी
ककरा देखायब ई नोर
रोज आँचर मे धरै छी
ई नोर नै निकलैत अछी सिर्फ,
अपन दुखमयी जिनगी आ दशा पर
बल्कि किछू लोकक अवहेलना आ कुदशा पर
शूभ काज सँ राखल जाय या हमरा दुर
किछू लोकक मोन अछि कतेक क्रुर
हे सखी हमहु अही जेना नारी छी
मुदा भेद अछी सिर्फ एतवा
लोक कहैत अछी हमरा विधवा
पल मे बदैल गेल सुन्दर रुप आ भेश
एहेन बज्र खसौलक विधाता
तौर देलक जिनगी केर डोर
ईजोतो मे सिर्फ अन्हार अछि
संतोष धरब ककरा पर
रोकने नै रुकै या आखिक नोर
हे सखी पहिने आबि
रांगल जिनगी केर रांगै छलौ
करम हमर फूटल
अपन सँ संग छूटल
अहुँ किया फेरै छी मुँह
कनेक खूशी देबय मे किया लागै या अबुह
जी के जेना रोज मरै छी
ककरा देखायब ई नोर
रोज आँचर मे धरै छी
ई नोर नै निकलैत अछी सिर्फ,
अपन दुखमयी जिनगी आ दशा पर
बल्कि किछू लोकक अवहेलना आ कुदशा पर
शूभ काज सँ राखल जाय या हमरा दुर
किछू लोकक मोन अछि कतेक क्रुर
हे सखी हमहु अही जेना नारी छी
मुदा भेद अछी सिर्फ एतवा
लोक कहैत अछी हमरा विधवा
लेबल:
कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’
'गजल'
जिनगी किया एना तंग लागै या
रांगल त छि मुदा बेरंग लागै या
बचपन बितेलौ रेत, मे जवानी खेत मे
कोना कततै बुढापा ऐकता जंग लागै या
जे दोस्त बनि दूस्मन भेल छल दूर
बेचारा भेल लाचार आब त ऒहो संग लागै या
मोजर नहि केलौ जकरा कहीयो
भैल शक्ति क्षिन्न आब ऒहो दबंग लागै या
रांगल त छि मुदा बेरंग लागै या
बचपन बितेलौ रेत, मे जवानी खेत मे
कोना कततै बुढापा ऐकता जंग लागै या
जे दोस्त बनि दूस्मन भेल छल दूर
बेचारा भेल लाचार आब त ऒहो संग लागै या
मोजर नहि केलौ जकरा कहीयो
भैल शक्ति क्षिन्न आब ऒहो दबंग लागै या
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