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रविवार, 25 मार्च 2012

हमर भारत महान अछि .


हमर  भारत महान अछि देश भरिमे बस यएहे  एक गान अछि हमर  भारत महान अछि .
गणतंत्र बनल  भारत जखन तखन   जनता मुस्कऐल छल आब तंत्र बचल  केवल भारत
तखन  जनताकेँ सुधि ल छल गणकेँ बिसरि गेल  नेता
बस कुर्सी टा  हुनक  जान अछि हमर  भारत महान अछि .
भूखल  जनता   भूखल  देश
दू टूक कलेव  पर होइत द्वेष
मुदा धारण क रखने  सात्विक वेश
ऽ गेल  फोकला भारत देश
मुदा  झोरा पसारि क नेता  
बूझि रहल  अपन मान अछि हमर  भारत महान अछि .
ढ़ि लिखि क आ  भविष्य
बेकार देखा दैत अछि  बेकारक खरीद बिक्रीसँ
ईमान बिका होइत अछि 

किछु सिक्काक वास्ते
हिनक गद्दारी केनाइ काज अछि
हमर भारत महान अछि .

कुर्सीक चक्करमे नेता
भूल - भुलैया घूमि रहल
कोन दल क बल नीक अछि
ध्यान लगा कऽ सूँघि रहल
दल - बदलू नेता सँ
आब जनता परेशान अछि
हमर भारत महान अछि .

दल बदलि कऽ तैयो नेता
जखन चुनाव हारि गेल
तँ ओइ दलक नेता सभ द्वारा
हुनका राज्यपाल बनाएल गेल
जनताक अछि ककरा फिक्र
बस कुर्सी हुनक जहान अछि
हमर भारत महान अछि .

आइ नै जानि राजनीतिमे
केहेन खिचड़ी पाकि रहल
भारतक जनता चुपचाप
निष्ठुर क़ानूनकेँ सहि रहल
एतऽ नेता - नेताक झोरामे
एक एक हवाला कांड अछि
हमर भारत महान अछि . 

 

गुरुवार, 22 मार्च 2012

बेटी पराया धन

कए साल स सुनइत आइब रहल छी,
बेटि त पराया धन होइत अछि ,
जकरा हम सहेजइ छी, संभारइ छी ,
अपन जान स बेसी मानैत छी ,
और फेर चैल जाइत अछि वो एक दिन,
अपन तथाकथित स्वामीक लग|

मुदा एक बात के उत्तर देता कियो हमरा ,
भला किएक कियो अपन धन के ,
वापस लय में सेहो धन माँगइत अछि ,
या फेर अपन धन के अनैहते ,
जर्बैत अछि या घर स निकाइल बाहर करइत अछि |

यदि नय त किएक दहेज के आइग में ,
जरइत अछि हजारो बेटि,
या दर दर ठोकर खाय के लेल मजबूर अछि ,
अपन बाबु के वो राजदुलारी ,
दोष नियत के अछि या अय समाज़ के ,
की यशोदा सेहो आन बुझलक ,
और देवकी सेहो नय अपनेलक |
निशांत झा

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

इ जमीन अछि गांव के

इ जमीन अछि गांव के
गौर से देखु एकरा और प्यार से निहाइर लिय
आराम से बैसु अतए पल दू पल बिता लिय
सुध कनी ल लिय अतए पर एकटा हरियर घाव के
कि इ जमीन अछि गांव के , हं इ जमीन अछि गांव के ......

कुल कुनबा और कुटुम के अर्थ बेमानी भेल
दादा क्का हरा गेल सब बिसैर गेल बडकी मैयाँ
गांव भइर में रिश्ता के केहेन डोर में छल बान्हल
जाति के भेद रिशता के तराजू छल साधल
याद अछि अखन तक धीमर के इनार के छांह के .....
कि इ जमीन अछि गांव के , हं इ जमीन अछि गांव के ......

आपस के संबंध के चौंतार पर बैएस क
छल सब चौरा बहुते रौब स किछु अऐंठ क
छल नै पैसा बहुत और नय अधिक सामान छल
पर हमर ओही गांव में सबके बहुत सम्मान छल
मांइग क कपडा बनल बरयति के दादा के ...
कि इ जमीन अछि गांव के , हं इ जमीन अछि गांव के ......

गांव के जखन स शहर में आन जान भ गेल
गांव के सब मनुख आब खाना खाना भ गेल
सई बीघा ke मालिक गांव के अपने त छल
पगार के चक्कर मे छेदी शहर में अछि हरा गेल
बात करय के अछि हमरा ओय दौर के ठराव के ...
कि इ जमीन अछि गांव के , हं इ जमीन अछि गांव के ......

रविवार, 8 जनवरी 2012

कविता-सियासत एक मंडी


//१//

जिवन कए अंतिम साँझ पर, कहैत अछि आब काज करब
लूट मचाबैत छल जए काईल्ह तक ,कहैत अछि आब दान करब |
वोट जुटाबै कए लोभ में, इ कि की कs सकैत अछि
दलितक मोन कए बहलाबै लेल ,कहैत अछि उत्थान करब |

//२//

कखनो ओकर कखनो एकर इ संग पकैर लैत अछि
हवा किम्हर बहैत अछि ओ इ जैन लेत अछि
जकरा काईल्ह तक ओ हिकारत के नजैर सँ देखैत छल
सब किछु बिसरा कs तकरा , इ अपन मैन लैत अछि

//३//

सियासत एक मंडी अछि ,अतए इमान बिकाईत अछि
एक मनुख नहि बाँकी, सब सैतान भरल अछि
अतए ओहे सिंकन्दर अछि, जकरा में लाज होबै नहि बाकि
नहि दरिद्र हुए जे धन सँ , भले नजैर सँ खसैत अछि

कविताक रचना कार-निशांत झा


कविता -लाचारी

नै जानि किएक हमर डेग
ओय माँ के देख कs रुइक गेल
ओतय तs ओकर नन्किरवा
भूख सँ कनैत जा रहल छल
नन्किरवा कए भूख कए अनुभव कय कs
माय कए नोर सेहो लाल रंग
पकैर लेने छल
ओकर अध्खुजल छाती में
दूध सुखा गेल छल
ओतय किछु हवसी सैतान
माँ के गुम्हैर रहल छल
ओ ओए माँ में
औरत के खोइज रहल छल
अपन आँखि सँ जेना
निमंत्रण दय रहल छल
ओए लाचारी कए
मजबूर माँ दुबिधा कए
सागर में डूबैत
बच्चा कए भूखक वास्ते
कोनो काज करै कए
लेल तैयार छल
समाज कए एहेन व्यथा
कए देख कs हमरा घिरना
भय गेल अपने सँ
हमरा लागल जेना
इ समाज हमरे तs नाम अछि.

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

श्रम निष्ठा


2सोचलौ हम एक दिन संसार में सैर करू
अपन कल्पना के लहर पर धीरे - धीरे हेलअ लागु
तखने विचार आयल मोन में कल्पना स उपर उठू
अपने चलइते चलइते धरती पर पैर राखु

जखन धरलौ पग हम पृथ्वी पर
किछु अहसाश भेल अहन
ज़िंदगी के चाइर दिन
और , तयो जीवन कहेन ?

अतए नजइर उठेलौ त पेलौं
कृषक श्रम दान क रहल छल
कानी हाथ रुकइ नै छल
एहन मेहनत करैत छल .

आँइख धँसल छलय भीतर
भूखआयल पेट पिचइक रहल छल
पसीना के कंचन बूंद सँ
तन हुनक चमैक रहल छल .

देख क हुनक इ हालत
एक आघात भेल ऐना मोन पर
जीवन पाललक जग के जे
रक्त देखैत ओकर तन पर

किछु पग और चल्लौ आगा
एगो आलीशान भवन ठार छल
श्रमिक के शोषण कैर कैर क
अपना के गर्वित समइझ रहल छल .

कहलक गर्व स ओ ऐना
इ सब हमर कर्म के फल अछि
कयलक ज़िंदगी भइर श्रम ओ
लेकिन तयो निष्फल अछि .

तखन पुछ्लाऊ हम ओकरा स
सुन तोहर कर्म कहेन छऊ
हंइस क बजल ओ ऐना
सबता धन के आइड़ में छुपेल अछि .

सोचलौ हम धन कहेन अछि
जे सब किछु छुपा लैत अछि
पाप के पुण्य और
पुण्य के पाप बना देत अछि .

सोचइत सोचइत गाम क दिश बढ़ल कदम
कि लोग के कहेन अछि भरम
एक दिन अहिना फेर ओहे दिश पग बैढ़ चलल
जतय कृषक और भवन छल मिलल .

देखलौ ओतय हम -----
कृषक मग्न भ काज क रहल छल
पसीना के पोइछ वो हर जोइत रहल छल
दृष्टि गेल भवन पर त बुझ्लाऊ
कि मात्र एकटा खंडहर ओतय ठार छल .

ओ देख क हमरा
ओकर बात के बुझाय में आयल
कि कर्म के अनुसार
आय तू इ फल पेलें
हमरा मुँह स ओय समय
यइ शब्द निकइल गेल
नय ओझ्रयब इ भ्रम - जाल में
नय त इंसान त अतए छलल गेल .