मिथलांचल में ओना तऽ बाबा सब के बहुत आदर- सत्कार कैल जायत अछि, हम एहने एक प्रभाकर बाबा के हंसी भरल घटना सुना रहल छी, |
प्रभाकर बाबा भाल्पट्टी गाम के रहनिहार छिया, इ झार-फुक सेहो करेत छथि ताहि लक् ई बहुत बिख्यात भऽ गेला, |
प्रभाकर बाबा एक दिन कोनो कारन बस बम्बई सऽ हवाई जहाज में आबि रहल छला, हुनका बगल में एक सुंदर कनियाँ के शीट छल कनियाँ सेहो आबि क हुनका बगल में बैसी गेलैन, |
सुंदर कनियाँ जहाज में सफर करैत काल प्रभाकर बाबा सऽ कहलखिन बाबा आहा हमरा पर एक कृपा कऽ सकेत छी ? |
प्रभाकर बाबा सुंदर कनियाँ कहलखिन आहा कहू तऽ सही हम आहा के कि मदद करू ? |
कनियाँ बजली बाबा हम नै एक बहुमूल्य चीज़ “लिपिस्टिक” खरिद्लो हन् लेकिन ओ कस्टम के लिमिट के ऊपर भ गेल हन्, |
हमरा डर या जे कस्टम वला ओकरा जब्त नै कऽ लिये, आहा जे “लिपिस्टिक” के अपना चोंगा के अंदर नुका कऽ ल चलितो ! |
प्रभाकर बाबा बजला ओना तऽ आहाक मदद करे में हमरा खुशी मिलतै, मगर आहाके कही दी जे हम झूठ नहीं बाजे छी ! |
बाबा जी आहॅक मासूम मुह के वजह स आहाके कियो पकरत नहीं, त झूठ बाजे के सवाले नहीं उठत ! |
प्रभाकर बाबा कहलैथ ठीक या आहाक जे विचार . |
जखन हवाई जहाज आकाश स निचा उतरल त सब कस्टम स जय लागल, कनियाँ बाबा के आगा जय देलखिन और अपने पीछा-पीछा बीदा भ गेली |
कस्टम के ऑफीसर सब सवारी के जेना पुछलक ओनाही प्रभाकर बाबा स सेहो पुछलक, बाबा जी आहा गैरकानुनी तरीका स किछु छुपेलो हन् त नहीं? |
प्रभाकर बाबा बजला हमरा कापर सऽ निचा ड़ाऽर (कमर) तक किछु गैरकानुनी तौर किछु नहीं छुपेलो हन् . |
ऑफीसर के इ प्रभाकर बाबा जबाब किछु अजीब सन् लगले, ताहि दुआरे फेर स पुछलक, और ड़ाऽर सऽ निचा जमीन तक आहा गैरकानुनी तौर पर किछु नुकेलो हाँ कि ? |
प्रभाकर बाबा बजला हां एक छोट सुंदर चीज छुपेलो हन्.... जेकर इस्तेमाल औरते टाऽ करैत अछि...लेकिन हमरा |
पास जे या ओकर इस्तेमाल अखन तक नहीं भेल हन् बुझलो कस्टम बाबु ! |
जोर सऽ ठहाका
लगाबैत ऑफीसर कहलक, ठीक या बाबा
जी आहा जा सकेऽ छी, ....दोसर
आगा आबु ! ***** अजय ठाकुर (मोहन जी) |
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सोमवार, 25 जून 2012
प्रभाकर बाबा और सुंदर कनियाँ
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अजय ठाकुर (मोहन जी),
बीहनि कथा
शुक्रवार, 20 जनवरी 2012
भक्त और भगवान - अजय ठाकुर (मोहन जी)
भक्त और भगवान के गज़ब रिश्ता अछि ई युग में |
पूजा पाठ के बदला घर दुआर मँगे अछि कलयुग में |
मंदिर में घंटा बजोता बहुत जोर स देखाबा के लेल |
पीठ पाछु सभहक गर्दन कटे छथि ई कलयुग में |
भगवान के पता छैन हरिदम हम साथ नहीं देबैन |
धरती पर तै माय-बाप के भेजला ई कलयुग में |
गुमान कम नहीं होयत अछि चुटपुजिय पंडितो के |
कॉज होय त टाँका मुह फोली क मंगता कलयुग में |
भक्त और भगवान के गज़ब रिश्ता अछि ई युग में |
पूजा पाठ के बदला घर दुआर मँगे अछि कलयुग में |
मंगलवार, 3 जनवरी 2012
चंचल लड़की जेना माँ - अजय ठाकुर (मोहन जी)
मरुआ रोटी पर पोरों साग जँका होय अछी माँ |
याद आबे या चौका बासन, जाँरनक चुल्हा जेना माँ |
चिअरै के आवाज़ में गुंजल राधा मोहन हरी हरी |
मुर्गा के आवाज़ सॅ खुलैतं घर कुंडा जेना माँ |
कनियाँ,बेटी,बहिन,परोशी थोरबे-थोरबे सबमे छथि |
दिन भैर जॉत् में चलैत मुशैर होय जेना माँ |
बैँट क चेहरा , माथा आँखी नै जनलो कते गले |
फॅटल पुरान गुदरी में एक चंचल लड़की जेना माँ |
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अजय ठाकुर (मोहन जी)
सोमवार, 2 जनवरी 2012
गज़ल - अजय ठाकुर (मोहन जी)
मुश्किल स भरल या रस्ता देखु, |
समय स दुश्मनी के अशर देखु |
हुनका याद में राईत भैर जगलो हम, |
सुतल छथि ओ घर में बेखबर देखु |
दर्द पलक के निचा उभैर रहलैन, |
नदी में उठल कने लहर त देखु |
के जाने छथि कैल रही या नै रही, |
आए छी त कने हम्हरो दिश देखु |
होश के बात करेत छलो उम्र भरी, |
"मोहन जी" बेहोश छथि एक नैजैर देखु |
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गजल
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