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शनिवार, 31 मार्च 2012

मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU" --Doar Drishya

मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU" --Doar Drishya: नाटक: "जागु" दृश्य:दोसर ,   (सोइरिक दृश्य ) (नारायणक प्रवेश ) नारायण:: (लक्ष्मी सँ )...नीके छी ने ? (बच्चा कें कोरा मे उठा लैत छथि )....लक्...

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"---Ank-1, Drishya-1

मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"---Ank-1, Drishya-1: अंक प्रथम:    दृश्य:प्रथम      समय: राइत (दलानक दृश्य , अषाड़क अन्हरिया राइत, लालटेन जरैत, दलान पर चिंतित मुद्रा मे नारायण टहलैत| नेपथ्य ...

मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"----Patra Parichay

मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"----Patra Parichay: नाटक:  "जागु" पात्र परिचय : १. नारायण : एक गृहस्थ , उम्र ४५ वर्ष २. लक्ष्मी:नारायण के पत्नी , उम्र ४० वर्ष ३.लाल काकी:नारायण के माए, उम्र ...

भूत - वर्तमान ( कविता )

लाल कक्का पहिने कहय छलथि -
हमर बच्चा अंग्रेजी म बडड चरफर अछि
मैथिली नहिं आबेति छन्हि त की हेतेय
आई काल्हि त अंग्रेजीए सभ किछु छई
कतौ कुनु ठाम कमा खठा के जी लेतेय
आशिक राज -
ई सोचि ओ अपना बच्चा के
मिथिला के संस्कार नहिं देलेनि
ई देखि दाँतय आँगुर
कटलौंपरिणाम देखु की भेलेनि
बच्चा अंग्रेजी पढ़ला के बाद कहय छथि -
गाम म जायब त माटि लागि जायत
शहर म रहिके कलम खोसबाक
चाही माँ बाप क अनला स इज्जत पर पड़त
इज्जत क लेल कुकुर पोषबाक चाही
आब कक्का कहि रहल छथि -
मैथिली मिथिला के मर्म नहिं
जनलौंसजा ओकरे ई भेटि रहल अछि
साँस चलेति अछि तैं जीबय छी
नहिं पुछु जिनगी कोना कटि रहल अछि
समाप्त
आशिक’राज ’

बाल गजल

एकटा एहन नेनाक मनक बात लिखबाक प्रयास केने छी जिनक माँ आब एहि दुनियाँ मे नहि अछि । अहाँ सब पढ़ू आ कहू जे केहन अछि आ की एकरा बाल गजल क'हज जा सकै यै की नहि ?
आइ तारा केर नगरी सँ एथिन माँ ,
अपन कोरा झट द' हमरा उठेथिन माँ ,
खेलबै माँ संग आ रूसबै हँसबै ,
पकड़ि आँङुर गाम-घर मे बुलेथिन माँ ,
थाकि जेबै जखन , भोजन करा हमरा ,
गाबि लोड़ी आँचरक त'र सुतेथिन माँ ,
राम कक्का के परू छैक मरखहिया ,
सुरज के बकरी सँ हमरा बचेथिन माँ ,
हमर संगी संग माँ के घुमै सर्कस ,
आबि घर हमरो सिनेमा ल' जेथिन माँ ,
कत' सँ एलै मेघ कारी इ , अंबर मे ,
"अमित" मन डेराइ यै कखन एथिन माँ . . . । ।
फाइलातुन-फाइलातुन-मफाईलुन
2122-2122-1222
बहरे-कलीब
अमित मिश्र

ढेपमारा गोसाईं



मोबाईलक अलार्मक घर-घरी सुनि कऽ मिश्राजीक निन्न टूटि गेलैन्हि। ओ मोबाईल दिस तकलाह आ अलार्म बन्न करैत फेर सुतबाक उपक्रम करऽ लागलाह। आ की कनियाँक कडगर आवाज कान मे ढुकलैन्हि- "यौ किया अनठा कऽ पडल छी? साढे पाँच बजै छै। उठू, नै तँ बच्चा सभ केँ इसकूल लेल के तैयार करओतैक। हम नस्ता बनाबै लेल जा रहल छी। भरि दिन तँ अहाँ आफिस मे कुर्सी तोडबे करै छी, कनी घरो पर धेआन दियौ।" मिश्राजी बिना कोनो विरोध केने पोस माननिहार माल जाल जकाँ चुपचाप बिछाओन सँ उतरि बाथरूम मे ढुकि गेलाह। निवृत भेलाक बाद बच्चा सब केँ उठाबऽ लगलाह। बच्चा सब हुनकर कुशल नेतृत्व मे इसकूल जयबा लेल तैयार हुए लागल। एकाएक बडका बेटा राजू बाजल- "पापा अहाँ हमर कापी आनलहुँ?" मिश्राजी- "नै, बिसरि गेलहुँ। काल्हि आफिस मे बड्ड काज छल।" राजू बाजल- "अहाँ तीन दिन सँ बिसरि रहल छी। रोज आफिसक काजक लाथे हमर कापी नै आबि रहल अछि। अहाँ केँ हमर काज मोन नै रहैए।" ओम्हर सँ कनियाँक स्वर भनसाघर सँ बहराएल- "इ तँ हिनकर पुरान आ पेटेण्ट बहाना अछि। घरक कोनो काज मे हिनकर कोनो अभिरूचि नै छैन्हि। आइ हम अपने तोहर कापी आनि देबह।" कहुना बच्चा सब केँ तैयार करा मिश्राजी बस-स्टाप धरि बच्चा सब केँ छोडि डेरा अएलाह तँ कनियाँ एकटा नमहर लिस्ट हाथ मे थमा देलखिन्ह। सब्जी, आटा, दूध आ आन वस्तु सबहक लिस्ट। मिश्राजी बजलाह- "कनी दम धरऽ दियऽ। हम बडद जकाँ भरि दिन लागल रहै छी, तइयो अहाँ सब केँ हमरे सँ सिकाईत रहैए।" कनियाँ कहलखिन्ह- "बियाहि कऽ अहाँ आनलहुँ आ सिकाईत करै लए भाडा पर लोक ताकी हम?" बेचारे मिश्राजी चुपचाप बाजार दिस ससरि गेलाह। बाट मे बाबूजीक फोन मोबाईल पर एलेन्हि- "हौ, मकानक देबाल नोनिया गेलैक। रंग करबाबै लए पाई कहिया पठेबहक?" मिश्राजी बिहुँसैत बजलाह- "अगिला मास पाई पठा सकब।" पिताजी खिसियाईत कहलखिन्ह- "कतेको मास सँ तौं अगिला मासक गप कहै छह। इ अगिला मास कहियो आओत की नै।" मिश्राजी केँ अपन गामक सीमान परहक ढेपमारा गोसाईं मोन पडि गेलैन्हि, जकरा पर सब कियो आबैत जाईत एकटा ढेपा फेंकि दैत छलै। हुनका बुझाइ लगलैन्हि जे ओ ढेपमारा गोसाईं भऽ चुकल छथि।
दस बजे मिश्राजी आफिस पहुँचलाह। कनी काल मे आफिसर अपना कक्ष मे बजा कऽ पूछलखिन्ह- "काल्हि एकटा अर्जेण्ट फाईल नोटिंग लए देने छलहुँ आ अहाँ बिना काज केने भागि गेलहुँ।" मिश्राजी- "सर, बिसरि गेलियै। एखन कऽ दैत छी।" आफिसर- "नित यैह बहाना रहैए। किछो यादि रहैए अहाँ केँ?" मिश्राजी सोचऽ लागलाह- "इहो नै छोडलक। कुर्सी पर बैसल अछि तँ हुकूमत देखबैए।" आफिसर हुनका चुप देखि कहलैथ- "की कोनो नब बहाना सोचै छी की? जाउ काज कऽ कऽ दियऽ।" मिश्राजी- "सर, कहलौं ने बिसरि गेल रही। तुरत कऽ दैत छी।" आफिसर- "अच्छा, रोज तँ यैह बहाना रहैए। किछो मोन रहैए की नै? अपन नाम तँ मोन हैत ने। की नाम अछि अहाँक श्रीमान विनय मिश्राजी।" मिश्राजीक मूँह सँ हरसट्ठे निकलल- "ढेपमारा गोसाईं।"

गीत:-

लचक लचक लचकै छौ गोरी तोहर पतरी कमरिया
ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया //२
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया //२ मुखड़ा

चमक चमक चमकैय छौ गोरी तोहर अंग अंग
सभक मोन में भरल उमंग देखैला तोहर रूपरंग
ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया
रूप लगैय छौ चन्द्रमा सन देह लगैय छौ सिनुरिया //२

सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
लाल लाल मोर लहंगा पर चमकैय छै सितारा
देख मोर पातर कमर मोन तोहर भेलौं किया आवारा //२

अजब गजब छौ चाल तोहर गोरिया गोर गोर गाल
कारी बादल सन केश तोहर ठोर छौ लाले लाल
चमकैय छे तू जेना चमकैय गगन में सितारा
देख के तोहर रूपक ज्योति मोन भेलैय हमर आवारा //२

मस्त मस्त नैयना मोर गोर गोर गाल
जोवनक मस्ती चढ़ल हमर ठोर लाले लाल
चमकैय छै मोर रूप जेना चमकैय अगहन के ओस
देख के मोर चढ़ल जुवानी उडीगेलय सभक होस //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 29 मार्च 2012


गजल@प्रभात राय भट्ट


               गजल

फुलक डाएरह सुखल सुखल फुल अछी मुर्झाएल
वितल वसंत आएल पतझर देख पंछी पड़ाएल 


भोग विलासक अभिलाषी प्राणी तोहर नै कुनु ठेगाना 
आई एतय काल्हि जएबे जतय फुल अछी रसाएल


अपने सुख में आन्हर प्राणी की जाने ओ आनक दुःख 
दुःख सुख कें संगी प्रीतम दुःख में छोड़ी अछी पड़ाएल 


कांटक गाछ पर खीलल अछी मनमोहक कुमुदिनी 
कांट बिच रहितो कुमुदनी सदिखन अछी मुश्काएल 


बुझल नहीं पियास जकर अछी स्वार्थी महत्वकांक्षा 
होएत अछी तृप्त जे प्रेम में सदिखन अछी गुहाएल


अबिते रहैत छैक जीवन में अनेको उताड चढ़ाव 
सुख में संग दुःख में प्रीतम किएक अछी पड़ाएल
...........वर्ण-२१...................
रचनाकार:-प्रभात राय भ

बुधवार, 28 मार्च 2012

ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी

बहुत दूर, पर गाम देखय छी
भेल बहुत बदनाम देखय छी

काली-पूजा, फगुआ छूटल
दारू के परिणाम देखय छी

बापक कान्ह कोदारि सदरिखन
बेटा केर आराम देखय छी

कष्ट झुकय मे नवतुरिया केँ
ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी

अपनापन के बात निपत्ता
घर घर मे संग्राम देखय छी

धन के अर्जन घूसखोरी सँ
हुनके बड़का नाम देखय छी

सुमन सुधारक आशा टूटल
तखनहि केवल राम देखय छी

बाल-गजल


हेरौ बौआ तूँ ऐना रुसल छेँ किए
दूध-भात लेल तूँ बैसल छेँ किए

मुँहमें खूएब आ कोरा बैसाएब
गए कें दूध लेल अरल छेँ किए

किन देब गेन लाल आ घुरकुन्ना
छोर ने जिद्दपन डटल छेँ किए

आबो दहुन बाबा के देठुन पेंरा
पेंरा सन नीक कि नठल छेँ किए

कहबै नाना कें देथुन धेनु गैया
आबो बरेडी पर चढ़ल छेँ किए

वर्ण-१३

रूबी झा

बाल-गजल

चम चम चम चम तारा चमके
बौआ कए हाथक तरुआ गमके

कारी बकरी,नब उज्जर महिष
लाल बाछी किए दौर-दौर बमके

बौआक घोरा सय-सय कए देखू
काका कें घोरा पिद्दी कतेक कमके

बाबी कें साडी मए कें लहंगा बहे
बौआ कें गघरी त कतेक झमके

बौआ हमर आब गुमशुम किए
किएक नै ठुमुक-ठुमुक ठुमके
(सरल वार्णिक, वर्ण-१३ )
***जगदानन्द झा 'मनु'

मंगलवार, 27 मार्च 2012

मैथिलि--काव्य: Kavita--Maithili

मैथिलि--काव्य: Kavita--Maithili: भोरूकवा मे सुति उठल छलौं तखने छोटकुन बाजि उठल-- 'आब मैथिली रानी समर्थ भेली पाबि संविधान मे स्थान मैथिली रानी धन्य भेली | ' कोयल...

गजल


मोनक आस सदिखन बनि कऽ टूटैत अछि।
किछु एना कऽ जिनगी हमर बीतैत अछि।

मेघक घेर मे भेलै सुरूजो मलिन,
ऐ पर खुश भऽ देखू मेघ गरजैत अछि।

हम कोना कऽ बिसरब मधुर मिलनक घडी,
रहि-रहि यादि आबै, मोन तडपैत अछि।

देखै छी कते प्रलाप बिन मतलबक,
चुप अछि ठोढ, बाजै लेल कुहरैत अछि।

मुट्ठी मे धरै छी आगि दिन-राति हम,
जिद मे अपन, "ओम"क हाथ झरकैत अछि।
(बहरे-कबीर)

सोमवार, 26 मार्च 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल

बसल मोन ओ श्वास जकाँ
गरल कोंढ ओ फाँस जकाँ

हम बुझी मजरल आम
ठार ओ तs भेला बाँस जकाँ

बनि एता बयार शीतल
बहल ओ जेठ मास जकाँ

गमकैत एता ओ सुगन्धे
आएल ओ तेल झाँस जेकाँ

सुनबा चाहि ध्वनि मधुर
बाजल ओ स्वर टाँश जकाँ

प्रेमक आश थोर भs गेल,
भs गेल सबटा नास जकाँ

(सरल वार्णिक वहर, वर्ण-१० )
रुबी झा

गजल

कनि मनमे बसा तँ लिअ

प्रेमक लय लगा तँ लिअ

 

हम जन्मेसँ छी टुगर

नै हमरा कना तँ लिअ 

 

सदिखन छी अहाँ हमर 

ई हमरो जता तँ लिअ 

 

बीते राति नै दिवस 

आ जीवन बचा तँ लिअ 

 

कोना जीब बिन अहाँ

प्राणेश्वर बना तँ लिअ

 

अछि ई नोर  विरहके

संयोगक सजा तँ लिअ

 

‘मनु’केँ छी अहाँ सदति

ई सभकेँ बता  तँ लिअ

(मात्राक्रम : 2221-212)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

गजल@प्रभात राय भट्ट


अप्पन आन सभ लेल अहाँ चिन्हार बनल छि
आS हमरा लेल किएक अनचिन्हार बनल छि

अहाँ एकौ घड़ी हमरा विनु नहीं रहैत छलौं
आई किएक हम अहाँ लेल बेकार बनल छि

कोना बिसरल गेल ओ प्रेमक पल प्रीतम
हमरा बिसारि आन केर गलहार बनल छि

हमर प्रीत में की खोट जे देलौं हृदय में चोट
अहाँक प्रीत में आईयो हम लाचार बनल छि

दिल में हमरा प्रेम जगा किया देलौं अहाँ दगा
दगा नै देब कही कs किएक गद्दार बनल छि

..................वर्ण:-१८............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

रविवार, 25 मार्च 2012

गजल

रूबी झाजिक गजल बहरे-रमल में----

घोघ हुनकर उतरि गेलै
चान सूरज पसरि गेलै


आँखि काजर भरल हुनकर,
मेघ करिया उमरि गेलै


देखि दाँतक चमक हुनकर
शीप मोती पसरि गेलै

फूल लोढे गेलि बारी
गाछ सबटा झहरि गेलै

गौर पूजै गेलि सीता
राम ऊपर नजरि गेलै

धनुष नै टूटैत देखै
प्राण सभ कें हहरि गेलै

हाथ मालाफूल लेने
भूप सभटा उतरि गेलै


ठार सीता राम निरखति
पुष्प माला ससरि गेलै


(मत्रक्रम 2122,2122, सभ पांति में )
रूबी झा

हमर भारत महान अछि .


हमर  भारत महान अछि देश भरिमे बस यएहे  एक गान अछि हमर  भारत महान अछि .
गणतंत्र बनल  भारत जखन तखन   जनता मुस्कऐल छल आब तंत्र बचल  केवल भारत
तखन  जनताकेँ सुधि ल छल गणकेँ बिसरि गेल  नेता
बस कुर्सी टा  हुनक  जान अछि हमर  भारत महान अछि .
भूखल  जनता   भूखल  देश
दू टूक कलेव  पर होइत द्वेष
मुदा धारण क रखने  सात्विक वेश
ऽ गेल  फोकला भारत देश
मुदा  झोरा पसारि क नेता  
बूझि रहल  अपन मान अछि हमर  भारत महान अछि .
ढ़ि लिखि क आ  भविष्य
बेकार देखा दैत अछि  बेकारक खरीद बिक्रीसँ
ईमान बिका होइत अछि 

किछु सिक्काक वास्ते
हिनक गद्दारी केनाइ काज अछि
हमर भारत महान अछि .

कुर्सीक चक्करमे नेता
भूल - भुलैया घूमि रहल
कोन दल क बल नीक अछि
ध्यान लगा कऽ सूँघि रहल
दल - बदलू नेता सँ
आब जनता परेशान अछि
हमर भारत महान अछि .

दल बदलि कऽ तैयो नेता
जखन चुनाव हारि गेल
तँ ओइ दलक नेता सभ द्वारा
हुनका राज्यपाल बनाएल गेल
जनताक अछि ककरा फिक्र
बस कुर्सी हुनक जहान अछि
हमर भारत महान अछि .

आइ नै जानि राजनीतिमे
केहेन खिचड़ी पाकि रहल
भारतक जनता चुपचाप
निष्ठुर क़ानूनकेँ सहि रहल
एतऽ नेता - नेताक झोरामे
एक एक हवाला कांड अछि
हमर भारत महान अछि . 

 

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल
अनचिन्हार सं जहिया चिन्ह्जान बढल
तहिया सं हमरा नव पहिचान भेटल

विनु भाऊ बिकैत छलहूँ हम बाजार में
आई अनमोल रत्न मान सम्मान भेटल

काल्हि तक हमरा लेल छल अनचिन्हार
आई हमरा लेल ओ हमर जान बनल

अन्हरिया राईत में चलैत छलहूँ हम
विनु ज्योति कहाँ कतौ प्रकाशमान भेटल

प्रभात केर अतृप्त तृष्णा ओतए मेटल
जतए अनचिन्हार सन विद्द्वान भेटल
.............वर्ण:-१६.................
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 24 मार्च 2012

गजल

धाख सबटा बिसरि गेलै
घोघ हुनकर उतरि गेलै

झूठ कोना कें नुकायत
जखन सोंझा बजरि गेलै

सय बचायब बचत कोना
लाज सबटा ससरि गेलै

ओ छलै फेसन सँ डूबल
काज सबटा पसरि गेलै

भेल नेता नींद में सब
देश सगरो रगरि गेलै

(बहरे-रमल,
SISS दु-दु बेर सभ पांति में )
***जगदानन्द झा 'मनु'

पोथी समालोचना- "बहुरूपिया प्रदेश मे"

बहुरूपिया रचना मे
गजल मे हम रूचि राखैत छी। संगहि मैथिली मे थोड बहुत गजल सेहो लिखै छी आ गजलक पोथी सब पढबाक इच्छा रहै ए। मैथिली मे बहुत कम गजल संग्रह अछि आ ओहो सुलभ नै होइत रहै ए। एहन परिस्थिति मे हमरा श्री अरविन्द ठाकुरजीक सद्यः प्रकाशित मैथिली गजल संग्रह "बहुरूपिया प्रदेश मे" पढबाक अवसर भेंटल आ हम एहि पोथी केँ आद्योपान्त पढलहुँ।

सबसे पहिने हम श्री अरविन्द ठाकुरजी केँ मैथिली गजलक पोथी लिखबाक लेल बधाई दैत छियैन्हि। मैथिली गजलक उत्थान लेल प्रत्येक डेग हमरा महत्वपूर्ण लागै ए। पोथीक गेट अप बड्ड सुन्नर अछि। टाईप आ कागतक कोटि सेहो उत्तम अछि। पोथीक भूमिका गजलकार अपने लिखने छथि आ ओहि मे गजल आ एहि संग्रहक सम्बन्ध मे बहुत रास गप सब कहने छथि। जेना पृष्ठ संख्या सातक दोसर पारा मे गजलकार कहैत छथि जे "मैथिलीक मिजाजक सीमा (इ मैथिलीक नहि, हमर अपन सीमा भऽ सकैत अछि) केँ देखैत गजलक व्याकरण (रदीफ, काफिया, मिसरा, मतला, मकता आदि)क स्थापित मापदंडक कसबट्टी पर हमर सभ गजल खरा उतरत तकर दाबी तऽ नहिए टा अछि बल्कि हम तँ इ सकारय चाहै छी जे--------------------------------- हमर सीमाक कारणेँ प्रस्तुत गजल मे कएक जगह सुधि पाठक लोकनि केँ त्रुटि भेटि सकैत छनि।" एहि पाराक अन्त मे ओ कहै छथि जे बहरक दोख किछु शेर मे भेटि सकैत अछि। हम गजलकारक सराहना करैत छी जे ओ भूमिका मे अपने कएक ठाम बहरक आ आन दोख हएब स्वीकार कएने छथि। पोथी केँ आद्योपान्त पढला पर हमरा इ नै बुझाएल जे एहि संग्रहक गजल सब कोन-कोन बहर मे लिखल गेल अछि। अरबीक कोनो टा बहर मे कोनो गजल नहिए अछि, मैथिली मे आइ-काल्हि प्रयुक्त होइ बला सरल वार्णिक बहर मे सेहो कोनो गजल नै अछि। गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे इ लिखबाक चाही छल जे कोन बहर मे गजल लिखल गेल अछि। जँ इ "आजाद-गजल"क संग्रह थीक, तँ हुनका एहि बातक उल्लेख करबाक चाही छल। भूमिकाक उपरोक्त पाराक शुरू मे गजलकार कहै छथि जे मैथिलीक मिजाज केँ देखैत एहि मे उर्दू-हिन्दी गजलक मिजाजक नकल करबाक प्रयास कएल जाइत तँ एकरा बुधियारी नहिए टा कहल जायत आओर सफलता सेहो नहि भेंटत। हम हुनकर गप सँ सहमत छी जे नकल करब उचित नहि। मुदा एकटा गप हम कहऽ चाहैत छी जे प्रत्येक विधाक एकटा नियम होइत छै आओर जाहि क्षेत्र मे ओहि विधाक उदय भेल रहैत छै ओहि क्षेत्र मे स्थापित भेल नियमक पालन केने बिना कोनो रचना मूल विधा मे कोना भऽ सकैत अछि। जेना मैथिली मे समदाउन आ सोहरक परम्परा छैक आ जँ पंजाबी मे वा गुजराती मे वा की कोनो आन भाषा मे समदाउन आ सोहर गाबऽ चाही तँ नियम कोना बदलि जेतैक। जँ नियम बदलतै तँ ओ दोसर चीज भऽ जेतैक। तहिना गजल अरब क्षेत्र मे जन्म लेलक आ इ स्वाभाविक छै जे एकर नियम (व्याकरण) ओहि क्षेत्रक स्थापित मानदण्डक आधार पर बनल। स्थापित मानदण्डक पालन करब नकल नहि कहल जा सकैत अछि। आ जे नकलक गप करी तँ 'गजल' कहब अरबी-हिन्दीक नकल थीक। एक दिस गजलकार 'गजल' कहबाक लोभ नै छोडि रहल छथि आ दोसर दिस गजलक व्याकरणक नियम पालन केँ नकल कहै छथि, इ उचित नै बुझाएल। गजल स्थापित मानदण्ड पर जँ नै कहल गेल तँ रचना केँ गजलक स्थान पर दोसर नाम देल जा सकैत अछि।

पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए। जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु, इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छैन्हि।

गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधार पर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि। बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै भऽ सकैत अछि।

भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग स्थान राखत।
· · · 22 hours ago
    • Ashish Anchinhar नीक आ संतुलित आलोचना। एहि आलोचना केर दूटा प्लस प्वांइट अछि---

      पहिल जे इ आलोचना पूरा-पूरी कृतिकेँ कएल गेल छै। कृतिकारकेँ नै। मैथिलीमे हलाकिं लोक कृतिकारेकेँ आलोचना करै छथि। एहन परस्थितिमे इ आलोचना मीलक पाथर सिद्ध हएत।
      आ दोसर जे मैथिली गजलमे पूर्णकालिक गजल आलोचक नै छलाह।ओम प्रकाश जी एहि क्षेत्रमे एलाह। स्वागत। आशा अछि जे ओ मैथिलीमे एखन धरि प्रकाशित१४-१५ गजल संग्रह समुचित आलोचना करताह। ओमप्रकाश जीकेँ बधाइ।...
      21 hours ago · · 6
    • Om Prakash Jha Jarur. Hum prayas karab je sab sangrah ke padhi ke appan vichar rakhi.
      21 hours ago · · 3
    • Umesh Mandal एतेक इमानदारीसँ समालोचना केलौं अपने तइ लेल बधाई...। प्रसन्नताक संग गौरव अइ अपनेपर। समीक्षाक क्षेत्रमे थोड़ेक धि‍यान देबाक करबद्ध आग्रह।
      19 hours ago · · 3
    • Gajendra Thakur
      सुन्दर समालोचना।आजाद गजल बिना बहरक होइत अछि मुदा बिना काफियाक नै, आ ओहिना जेना छन्दयुक्त रचना केनिहार बेसी नीक अकविता लिखै छथि तहिना बहरयुक्त गजल लिखिनिहारे नीक आ उत्कृष्ट आजाद गजल लिखि सकै छथि। सामर्थ्यक बाहर रहने आजाद गजल लिखल जाए तँ ओ उत...See more
      19 hours ago · · 5
    • Gajendra Thakur ओना अरविन्द ठाकुरजीकेँ पोथी लेल बधाइ
      19 hours ago · · 4
    • Sanjay Kumar Mandal सुन्‍दर समीक्षा, समीक्षक ओम प्रकाशजी केँ धन्‍यवाद एवं गजलकार अरवि‍न्‍द ठाकुरजी केँ सेहो..
      6 hours ago · · 2

गजल


हाथीक दाँत देखाबैकेँ  आर नुकाबैकेँ छै आर 
नेताकेँ  कहैक गप्प छै आर बनाबैकेँ छै आर

केलक भोज नै दालि बड्ड सुडके इ बूझल
भोज करैक बात आरो छैक देखाबैकेँ छै आर

दोसरकेँ फटलमे टाँग सब कीयो अडाबै छै
फाटल अपन सार्बजनिक कराबैकेँ  छै आर

सासुरकेँ मजा बहुते होइ छै सभकेँ बुझल
कनियाँ सन्ग सासुरमे मजा सुनाबैकेँ छै आर

भाई धनक गौरब तँ गौरबे  आन्हर रहै छै 
मोट रुपैया जखन बाप जे पठाबैकेँ छै आर 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१८)

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

गजल

स्वपन-सुन्नरी हमर सपनाकें ,सपना सँ बाहर आएब कोना ,
हे मृगनयनी स्वर्ग-परी, अहाँ हमर आँखि कें सोझा होएब कोना ,


अहाँ नित सपना में आबि सताबि,केखनो आँखि कें सोझा नै आबै छी ,
सदिखन अहींक सपने में रहि, सपना सँ बाहर जाएब कोना ,

अच्चकें में आबि अहाँ जगाबै छी, आँखी खुजै त किछु नहि पाबए छी ,
हे कमलरुपी जे अहाँ छी, सपना सँ केखन बाहर आएब कोना ,

हम एक्केटक ध्यान लागोने छी ,मोन अछि व्याकुल छाह हसोथै छी ,
अदभुत रचना मोनक हमर ,सपना सँ बाहर लाएब कोना
- - - - - - - - - - - - वर्ण -२५ - - - - - - - - - - - - -
रूबी झा

गीत


बड्ड आस धेने हम एलौं शरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
रहऽ दियौ हमरा अपन चरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

लाल रंग अँचरी, लाले रंग टिकुली, माँ केर आसन लाले-लाल,
सिंहक सवारी शोभै, हाथ मे त्रिशूल, अहाँक चमकैए भाल।
करै छी वन्दना धरती सँ गगन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

आंगन नीपेलौं, अहाँक पीढी धोएलौं, छी फूल लेने ठाढ,
दियौ दरसन माँ, दुख करू संहार, भरू सुख सँ संसार।
अहीं कहू हम करी कोन जतन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

नै चाही अन धन, नै चाही जोबन, खाली शरण माँगै छी,
सुनू हमरो पुकार, भरू ज्ञानक भण्डार, एतबा वचन माँगै छी।
कहिया देबै अहाँ हमरा दर्शन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

जपै छी नाम अहींक, हम सब राति दिन, तकियौ एक बेर,
करू हमर उद्धार, लगाबू बेडा पार, नै ए कोनो कछेर।
अछि नोर भरल "ओम"क नयन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।

पहिल टिकुला

‎मज्जरक दिन सँ पसरल सुगंध ,
हर्षित मोन सुंघि मातल गंध ,
फूसिये कहै छी कोयलक गीत सुन' जाइ छलौ ,
सच कहौँ बढ़ैत टिकुलाक दर्शन कर' जाइ छलौँ ,
डाँढ़ि-पात लुबधल हरियर टिकुला ,
पैघ-छोट ,वाह! केहन रूप दैब रचला ,
पहिल टिकुला सँ चटनी थारी सजल ,
साल भरि के बाद मुँहक स्वाद बदलल ,
एखने सँ मीठ राजा लागि रहल ,
बम्बई मालदह छकि क' खेबै आश लागल ,
धन्य भेल जिनगी देख पहिल टिकुला ,
"अमित" रसालक ध्यान मे बनल बगुला . . . । ।
अमित मिश्र

गजल

टूटिए जेतै संबंध जँ दस लेल एक सँ , इहो स्वीकार अछि ,
भीड़ मे जीबै छी तेँ भीड़ के बचेनाइ हमर अछिकार अछि ,
हम बनियाँ छी सए कमा लेब , दस छुटि गेल कोनो दुख नै ,
सबल त' बढ़बे करतै ओकरा संग दिअ जे लचार अछि ,
माछक लोभ मे सड़ल माछ ल दुषित नै करब समाज के .
एक दाम मे बिकै बला ककरो जिनगी नै मीना बजार अछि ,
सब के सब सँ किछु-ने- किछु चाहत रहै छै छोट बाट पर ,
अहाँ एक बेर आबू हम दस बेर , इ हमर व्यबहार अछि ,
लड़ाइ क' देह जुनि तोड़ै जाउ , प्रेम क' दिल धरि पहुँचु यौ ,
"अमित" गिनती के फेरा मे नै पड़ू , सगरो अपने संसार अछि . . . । ।
वर्ण-23
अमित मिश्र

गजल

धक सं लागल चोट, करेजा हमर तोड़ि देलऊं
एहन भेलऊं अहां कठोर कि हमरा छोड़ि देलऊं ।
दिन हो चाहे राइत अहांके हम ईयाद छलऊं
एहन अहांके कि भ गेल कि हमरा छोड़ि देलऊं ।

सदिखन छलहुं हमर पास संग आब छोड़ि देलऊं
हम देखितॆ रहलऊं बाट अहां मुख मोड़ि लेललऊं ।
टूटल हमर पूर्ण विश्वास, दूख संग जोड़ि गेलऊं
हमरा सं कि गलती भेल कि हमरा छोड़ि गेलऊं ।
- भास्कर झा 22/03/2012