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सोमवार, 30 जुलाई 2012

अपन घर के खोज नहि अन्ना के पुछारि

अपन घर के खोज नहि अन्ना के पुछारि
अपने भ्रष्ट से सोच नहि सभ्यताके बिसारि!

मिथिला राज बनाबय लेल तेलंगाना के वेट
बारीक पटुआ तीत अछि दूरक लगबी रेट!

कौआ कुचरय सांझ के खायब नहि आब गुँह
भिन्सर फेरो बिसरैत अछि दौड़ि मारय मुँह!

मोरक पाँखि पहिरि के नाचि सकय नहि जोर
पाउडर मुँह रगड़ि कतबो बनय केओ कि गोर!

नित्य नया टन्टा झाड़य मारय झटहा तीर
महाबूड़ि कोढिया मनुख बनय हमेशा वीर!

साहित्यक समुद्रमें सुन्दर सनके सम्हारि
हाइकू शेर्न्यू रूबाइ ओ गजलक देखू मारि!

चोर-चोर हल्ला मचबय गाम के भेल जगारि
भेल पुछारि जे चोर कतय चोरहि हल्ला पारि!

देख रे मूढ टेटर अपनहु माथ भरल छौ आगि
प्रवीण भनें गैरखोर बनें चोतमल काजक लागि!
रचना :- प्रवीन नारायण चौधरी

हरिः हरः!

मंगलवार, 20 मार्च 2012

प्रवीन नारायण चौधरी जिक कविता -बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

भले जे हेतै बाद में देखबै - एखन अहाँ विद्यालय जाउ!
शिक्षा के शक्ति जगके जननी - अहुँ अपन अस्मिता बनाउ!
जुनि पिछड़ू कोनो विधामें पाछू - अस्तित्वक रक्षा-किला बनाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

देखू आइ संसार में नारी - अग्रपाँति नेत्री बनि चलैथ!
जतय दहेजक चाप आ मारि - सैह समाज पिछड़ल छैथ!
शिक्षाके पूँजी सभसऽ बड़का - दहेज-दान के त्याग कराउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

भारतमें नारी छथि आगू - मिथिला बेसी पिछड़ल अछि!
बीति गेल देखू कते जमाना - गार्गी - भारती पड़ल अछि!
पुनः प्रीतिके रीति सऽ सभके - अपन दिव्य शक्तिके देखाउ!
बेटी अहाँ विद्यालय जाउ!

हरिः हरः!
प्रवीन नारायण चौधरी