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गुरुवार, 21 अगस्त 2014

माएक भक्त


दिल्लीसँ पटना जएबाक सम्पूर्ण क्रांतिक द्वितीय श्रेणीक स्लीपर किलासक डिब्बा, भीड़सँ खचा-खच भरल। तीन सीटक जगहपर पाँच-पाँचटा लोक बैसल। साँझक साढ़े पाँच बजे ट्रेन अपन नियत समयसँ चलल। दना-दन पूर्ण गतिसँ ट्रेन चलि रहल छल। रातिक लगभग आठ बजे पेंटीगार्ड बला हाथमे एकटा पुर्जी नेने “भोजन, भोजन बाजू।” अबाज दैत, पुर्जीपर सीट नम्बर लिखैत आगू बढ़ि रहल छल।
संतोष, ठीक-ठाक भेष-भूषामे देखै कए समृद्ध घरक लागि रहल छल। जखन पेंटीगार्ड बला संतोष लग गेल तँ संतोषक बगलमे बैसल तीन गोटेक ग्रुपमे सँ एकटा २०-२१ बर्खक युवक चट्टे बाजि उठल, “हम तँ गरीब आदमी छी एतेक महग खाना नहि लेब।”
संतोषक मोन ओहि नवयुवकक उतरसँ आहत भेलै आ तैँ ओ ओहि युवकसँ बाजि उठल, “एहि दुनियाँमे कियो अमीर गरीब नहि छैक, ई सबटा लोकक अपन-अपन मनक भ्रम छैक। आजुक घड़ीमे सभ कियो अमीरे अछि, बस अपनामे बिस्वास आ किछु नम्हर करैक इक्षा होबाक चाही।”
“हम सभ पाँच-सात हजार रुपैया महिना कमाइ बला तँ गरीबे भेलहुँ ने।”
“गरीब कोना भेलहुँ ? अप्पन एकटा हाथ एक लाखमे देबै।”
“नहि।”
“दोसर हाथक एक लाख रुपैया आओर भेटत।”
“नहि।”
आगू संतोष ओकरासँ किछु आओर बुझिते वा किछु गप्प करिते की संतोषक आगूक सीटपर बैसल एकटा बेस पुष्ट, चानन ठोप टिकी रखने भेष भूषासँ नीक विद्वान लागि रहल छला, झटसँ बाजि परला, “हमरा एक लाख रुपैया दिअ हम अप्पन हाथ दै छी।”
“एना नै भए सकै छै, एक लाख रुपैयामे कियो स्वस्थ जबान आदमी अपन हाथ कोना देतै।”
“हम देब ने, लाबू हमरा एक लाख रुपैया।”
दोसरो दोसरो सभ, “नहि ! एना तँ नहि भऽ सकैए, कियो एक लाख रुपैयामे अपन हाथ कोना दए देतै।”
संतोष, “जकरा अपन भगवानपर आ अपनापर विश्वास छै, अपन माए-बाबू धिया-पुतासँ सिनेह छै ओ एक लाखमे कि कड़ोरो रुपैयामे अपन अंग नहि देतै।”
“देतै किएक नहि, दुनियाँमे देखियौ आइ लोक सय-सय रुपैया लेल दोसरक जान लऽ लय छै।“
“हाँ ई गप्प सत छै, सय-सय रुपैयामे लोक लोकक जान लऽ लय छै। एक्सीडेंटमे छन्नमे लोकक जान चलि जाइ छै। हारी बीमारी, दाही रौदीमे परिवारक परिवारक खत्म भऽ जाइ छैक। डिफ्रेशनमे लोक अपने जान अपने लऽ लय छै। ई सभ एकटा भिन्न विषय बस्तु छैक मुदा एक गोट व्यक्ति मात्र एहि द्वारे कि ओ गरीब अछि अपन अंग बेच देतै, हमरा हिसाबे ई तँ नहि हेतै।“
सामने बलाकेँ भरिसक बुझाबैक चेष्टामे संतोष बाजल, मुदा ओ जिद्द आ बहसकेँ आगू रखैक चेष्टामे एकदम तनैत बाजल, “ई सभ रहै दिऔ ने, अहाँ एक लाख रुपैया दिअ हम अपन हाथ दै छी।”
हुनक जिद्द आ तामससँ मिश्रित गप्पसँ संतोष अपनापर काबू नहि राखि सकल आ खिसिया कए बाजल, “उतरु अगिला स्टेशनपर अपन हाथ कोनो चलैत ट्रेनकेँ सोझाँ राखू, हाथ कटैत मांतर हम अहाँकेँ एक लाख रुपैया देब।”
“नहि एना नहि पहिने पाइ राखू।”
“से किएक, पहिने एटीएम मशीनमे कार्ड दै छै तकर बाद ने पाइ अबै छै, तेनाहिते अहाँ अप्पन हाथ ट्रेनक निच्चा राखू हाथ कटैत देरी हम एक नहि दस लाख रुपैया देब।”
“रहए दियौ रहए दियौ, दस लाख रुपैयाक अहाँक ओकाइतो अछि।”
“हमर ओकाइत छोरु, अपन हाथ काटू  हाथ कटैत देरी हम अहाँकेँ दस लाख रुपैया देब।”
‘-------- बस एनाहिते, जे सभ नहि बजबा चाही सेहो सभ दुनूमे होबए लागल करीब आधा घंटाक बहसकेँ बाद दोसर दोसरकेँ हस्तक्षेपक बाद बहस कनीक शांत भेल ख़त्म नहि।
“अहाँ एखन दुनियाँ नहि देखलिऐए लोक पाइ द्वारे की की करै छै, अपन किडनी धरि बेच दैत छै।”
“हाँ बेच दै छै मुदा ओहेन ओहेन लोककेँ किछु विशेष मजबूरी वा परिस्थिति होइत छैक अथवा ओकरा भगवान आ अपनापर तनिको भरोसा नहि हेतै।”
“तँ हमर कि मजबूरी अछि अहाँ बुझै छीऐ ?”
“नहि हम तँ अहाँक मजबूरी किछु नहि बुझै छी।”
“तहन अहाँ कोना कहैत छी जे हम दस लाखमे अपन हाथ नहि देबै।”
“देखयौ अहाँक मजबूरी हमरा ठीके नहि बुझल मुदा रुपैयासँ कतेक दिन चलत आ एहि हाथसँ जीवन भरि कमा खा सकै छी।”
“अहाँक गप्प ठीक अछि मुदा जखन ओहेन परिस्थिति अबैत छैक तँ लोककेँ आगू पाछू ताकैक शामर्थ खत्म भऽ जाइ छै।”
संतोष, “अपना जगह अहूँ ठीके छी, बिचमे हम बहुत कटू बजलहुँ, क्षमा करब  मुदा एतेक काल तक नीक बेजए बहसक बाद हम एतेक तँ जानैक उम्मीद रखै छी जे अहाँ अपन मजबूरी हमरा बताबी।” “हमर माए दू बर्खसँ बहुत दुखीत छथि। दरिभंगासँ पटना, पटनासँ आब दिल्ली एम्सक पाँच माससँ चक्कर काटि रहल छी। कोनो समाधान नहि।”
“एम्समे कि कहैत अछि ?”
“कहैत छैक प्रोस्टेज बढ़ल छनि ओपरेशन हेतैन, पतनोमे इहे कहलक मुदा ओतए ओपरेशनक व्यबस्था नहि। दिल्लीमे चारि माससँ खाली तरह तरहकेँ टेस्ट कएला बाद आब कहैत अछि जे ओपरेशन हेतैन आ ओपरेशनक तारीख आँगा छह मास बाद देने अछि। छह महिनामे हुनका कि हेतैन ....। प्राइवेटसँ ओपरेशन कराबी तँ लाख रुपैयाक खर्चा आ हमरा सभ लग जे किछु छल पहिने बेच-बिचुन कए सबटा लगा देलीऐ।” ई कहैत माएक प्रति सिनेह आ अपन लचारीसँ हुनक आँखि नम भए गेलन्हि।
“आगू दिल्ली कहिया जाएब ?”
“ओपरेशनक तारीख तँ छह महिना बादक भेटलन्हि मुदा दबाइ खाइत महिनामे एक बेर एम्स आबैक लेल कहने अछि।”
“आब कहिया एम्स जा रहल छी ?”
“इहे मासम दिन बाद पन्द्रह तारीख केर टिकट अछि।”
“आब एम्स जाएब तँ हमरा फोन कए लेब, भए सकत तँ हम किछु सहायक होएब।”
“कोना, कोनो डॉक्टरकेँ चिन्है छीयै।”
‘हाँ।”
“तँ हमरा हुनकर फोन नम्बर दए दिअ, नहि तँ हमरा एखने एक बेर गप्प करा दिअ।”
एखन नहि हम गप्प करा सकैत छी आ नहि हम हुनकर नम्बर दए सकै छी किएक तँ केकरो नम्बर देनाइ एलाव नहि छैक। हाँ अहाँ जखन जाएब हमरा फोन करब हमर फोन नम्बर लए लिअ। एकटा मनुक्ख बुते जतेक सहायता भऽ सकैत छै, अहाँकेँ भेटत बांकी माँ भगवतीक हाथमे।”
“रहए दियौ, अहाँ एनाहिते बड़का बड़का फेकै छी, कनिक काल पहिने एक हाथक बदला दस लाख रुपैया दैत छलहुँ आ आब एम्समे अहाँक जान पहचान भए गेल। डॉक्टरक नम्बर मांगै छी तँ एलव नहि छैक। एलव किएक नहि रहतै एखनो हमरा लग चारि-चारिटा डॉक्टरक नम्बर अछि मुदा किनकोसँ कोनो मदत नहि भेटल।”
“अहाँ एहेन बड़का बड़का फेकै बला गप्प कहि कए हमारा उलाहना किएक दैत छी। ई गप्प अहाँ जखन कहितहुँ जखन हम अहाँक किछु गछि कए नहि दैतहुँ आ कि नहि करितहुँ। एहन तँ नहि भेलए। हाथ बला गप्पमे अहाँक हाथ अहाँ लग आ हमर पाइ हमरा लग। रहल एम्स बला गप्प तँ महिने महिने अहाँ जाइते छी, एक बेर हामरोसँ गप्प कए लेब किछु सहायक भेलहुँ तँ ठीक नहि तँ अहाँकेँ नुकसाने की ? हाँ ओकर बादक अप्पन दुनूक भेटमे अहाँ हमरा एहि तरहक अनरगल गप्प कहि सकैत छी।” ई कहि संतोष एकटा पुर्जापर अपन नाम संतोष आ मोबाईल नम्बर लिख हुनका दए देला। सामने बला सेहो अनमोनो मने ओहि पुर्जाकेँ अपन जेबीमे राखि लेला।
एक महिना बाद, दिल्ली एम्समे। ओहे संतोषक सामने बला सबारी, अप्पन माएक संगे। हाथमे मो० फोन रखने आ ओहिमे संतोषक नम्बर शेव कएने एहि गुनधुनमे कि फोन करू की नहि, “झुठ्ठेकेँ ठकि गेल होएत, ठकनेहेँ होएत तँ हमर की लय लेत, एक बेर फोन कइए लै छी।” नम्बर लगेलक चट्टे घंटी बाजल, “ट्रिन ट्रिन .......”
“हेलो” दोसर कातसँ
“के संतोषजी ?”
“जी हाँ, अहाँ के ?”
“जी हम मुरारी, महिना भरि पहिने अपन दुनू दिल्लीसँ पटना जाए काल ट्रेनमे भेट भेल रही। अहाँ हमर एक हाथक बदला दस लाख रुपैया दै लेल तैयार रही।”
“हाँ हाँ मुरारीजी हमरा सबटा इआद आबि गेल, कहू की समाचार, माए केहएन छथि?”
“समाचार की कहू, ओहे माएकेँ लऽ कए दिल्ली आएल छी। सोचलहुँ एक बेर अपनेकेँ कहि दी।”
“हाँ हाँ बड्ड नीक केलहुँ, एम्स कहिया अबै छी ?”
“एखन एम्सेमे छी।”
“अच्छा ! कोन यूनिटमे देखाबैक अछि ?”
“प्रो० एस० चौधरीक यूनिटमे।”
“अच्छा, माता जीक की नाम छनि ?”
“सरोज देवी।”
“ठीक छैक, अहाँ आबू।” उम्हरसँ फोन बंद।
मुरारीजी सोचै लागला, “भेल, सभ गप्प सुनला बाद फोन बंद कए देला। हिनको बुते किछु नहि होएत।”
मोन मसुआ कए आगू बिदा भेला। करीब आधा घंटा पएरे चलला बाद साढ़े दस बजे ओपीडी पुर्जापर तारीखक मोहर लगा कए प्रो० एस० चौधरी यूनिट पहुँचला। पुर्जा डॉक्टर कक्षकेँ द्वारिपर ठार अर्दलीकेँ दऽ बाहर वेटिंग कुर्सीपर माए संगे अपनों बसि रहला। हुनकासँ पहिने करिव ४०-४५ गोते वेटिंग कुर्सीपर बैसल। भीर देखि ओ सोचए लागला, “भेल फोन करक चक्करमे आधा घंटा देरी भए गेल आ ओकर परिणाम आइ दू बजेसँ पहिने नम्बर आबैक कोनो भरोसा नहि।”
मुरारीजी बीतल दू बर्खक दिक्कत आ कष्टक खाका मोने मोन तैयार करैत रहथि। एगारह बजे अर्दली अबाज देलक, “सरोज देवी।”
मुरारीजी हरबरा कऽ उठला, “ई की कतए दू बजे नम्बर आबैक उम्मीद छल आ कतए ११ बजे न० आबि गेल। हमरासँ पहिलुक सभ तँ एखन ओनाहिते बैसल अछि। मुस्किलसँ तीनो गोटा नैँ देखेलकैए।” दिमाग सोचैत मुदा शरीर एतबामे माए सहीत डॉक्टर लग। माए डॉक्टर लग जा पेशेंटक बास्ते बनल टूलपर बसि रहली। मुरारीजी हुनकेँ पांजर लागि ठार। डॉक्टर माएक पुर्जापर हुनक नाम देखते मातर पहिने हुनका दुनू हाथ जोरि प्रणाम कएलनि आ ओकर बाद धियानसँ हुनकर पुरनका पुर्जा सभ देखला बाद अंदर केबिनमे लए जा कए नीकसँ जाँच केलनि। केविनस बाहर आबि आठ दसटा जाँचक पुर्जा बना कए दैत, अर्दलीकेँ अबाज देलन्हि, अर्दलीकेँ लग एला बाद, “माँ जीक संगे जाउ आ सबटा टेस्ट एखने अपने संगे पूरा करा कए हाथो हाथ नेने आबू।”
“जी” कहैत अर्दली डॉक्टरसँ पुर्जा सभ लेला बाद माएसँ, “चलू।”
मुरारीजी आ हुनकर माए अर्दलीक पाँछा पाँछा स्वचालित मसीन जकाँ बिदा भए गेला। जतए जतए अर्दली लए गेलनि ततए ततए जाइत रहला करीब दू घंटा बाद सबटा टेस्ट जेना इसीजी, अल्ट्रासाउन्ड,एक्स-रे, खून पेशाब आदिक जाँच भेला बाद पुनः ओहिठाम डॉक्टर लग आपस एला। डॉक्टर सबटा रिपोर्टकेँ गंभीरतासँ देखला बाद, “हाँ रिपोर्ट सबहक अनुसार प्रोस्टेज बढ़ल छनि आ ओकर जल्दी ओपरेशन नहि भेलासँ किडनी डेमेज भऽ सकैए। एना करू (किछु हुनक पुर्जापर लिखैत) ई ई दबाइ खेला बाद परसु आबि कए माँ जीकेँ भारती करा दियौन। परसु एगारह बजे ओपरेशन हेतनि।”
मुरारीजी हक्का बक्का ई कि भए रहल छैक जाहि ओपरेशनकेँ लेल छह महिना बादक तारीख भेटल छल ओ आइ दू दिन बाद कोना। भारतमे चिकित्सा व्यवस्था एतेक चुस्त दुरुस्त कोना भए गेल ओहो एम्स एहेन सरकारी अस्पतालक। अपन उत्सुकतापर ओ नियन्त्रण नहि राखि पएला आ डॉक्टरसँ पुछिए बैसला, “डॉक्टर साहब माफ करब एकटा गप्प पुछि रहल छी, जाहि ओपरेशन कराबै लेल हम सभ दू बर्खसँ हरान आ निरास छलहुँ, अहूँ लग करीब छह महिनासँ दौर रहल छलहुँ, पिछला महिना अहीँ छह महिना आगूक तारीख देने रहि। आइ दू घंटामे सबटा टेस्टक रिपोर्ट हाथे हाथ आ दू दिन बाद ओपरेशन ई चमत्कार कोना।”
“एहिमे चमत्कार केर कोन गप्प, पहिने हमरा सभकेँ कहाँ बुझल जे अपने प्रोफेसर साहबकेँ सम्बन्धी छियनि।”
“कुन प्रो० साहब।”
“अरे अपन प्रो० साहब जिनक ई यूनिट अछि, प्रो० एस० चौधरी।“
“प्रो० एस० चौधरी आ हमर सम्बन्धी।” मुदा एहि गप्पकेँ मुरारीजी अपन मोनेमे रखने रहला मुँहसँ बाहर नहि निकालला। आगू डॉक्टरसँ, “अपनेसँ कनी निवेदन छल।”
“की कहू ने।”
“कनिक प्रो० साहबसँ भेट भऽ जाइते।”
“किएक नहि, हमरा सबहक दिससँ अपनेक सेवामे कोनो कमी तँ नहि रहल।”
“नै नै, ई कि कहै छी, बस कनी हुनकासँ भेट करक लौलसा छल।”
डॉक्टर साहब अर्दलीकेँ कहैत, “हिनका भीतर प्रोफेसर साहबकेँ केबिनमे नेने जइयौन्ह।”
मुरारीजी आ माए अर्दली संगे बिदा भेला, पाँच मिनट पएरे चलला बाद एकटा लग्जरी एसी केविन, बाहर बोर्डपर लिखल, यूनिट प्रो० डॉ एस चौधरी। अर्दली केबार खोललक तिनु भीतर गेला। भीतर प्रो० एस चौधरी केबारक दिस पीठ कए कऽ एकटा नम्हर लग्जरी कुर्सीपर बैसल आ हुनकर सामने बैसल तीनटा डॉक्टर हुनकासँ परामर्श लैत। केबार खुजलासँ हुनको धियान उम्हर गेलनि। घूरि देखला तँ मुरारीजी आ हुनका बुझैमे देरी नहि लगलनि जे हुनक संगे हुनकर माए छथिन चट्टे गोर लागि आशीर्वाद लेलनि। माएकेँ गोर लागैत देख बांकीकेँ तीनु डॉ सीटसँ उठि ठार भए गेल। डॉ एस चौधरी आन डॉक्टरसँ,  “excuse me, we will meet after five minute later   तीनू डॉक्टर कक्षसँ बाहर चलि गेला। मुरारीजी आश्चर्जसँ, “अहाँ आ एहिठाम, एस चौधरी यानी संतोष चौधरी।” संतोष हुनका दिस देखि मंद मंद मुस्काइत।
मुरारीजी संतोषक पएरपर झुकैक चेष्टामे मुदा ओहिसँ पहिने संतोष हुनका उठा अपन करेजासँ लगा लेलनि। मुरारी, “हमरा क्षमा कए देब, अहाँक बारेमे हम कि कि सोचैत छलहुँ, ओहि दिन ट्रेनमे हम नै जानि कि कि कहि देलहुँ, क्षमा कए दिअ।”
संतोष, “की सभ अनाप सनाप बजै छी। ओहि दिनका गप्प सप्पकेँ बिसरि जाउ। आब ई कहू जे माएक इलाजमे कोनो कमी आ बाधा तँ नहि।”
“कमी, आब कोनो कमी नै, परसु ओपरेशन होबैक निश्चित भेले।”
“हाँ, हमर आइ आ काल्हि केर समय पहिने बुक छल, परसु करीब दू घंटाक समय हमरा लग खाली छल ओहिमे हम माँजीक ओपरेशन करबनि।”
“अहाँक ई उपकार हम जीवन भरि नहि बिसरब, हमरा लेल तँ अपने साक्षात भगवान बनि एलहुँ।”
ई की आब अहाँ हमर दोस्त छी आ दोस्तीमे कोनो उपकार कोना आ ओनाहितो ई अस्पताल हमर तँ नहि सरकारक अछि।”
“अहाँ जे कहू सरकारक हिसाबे तँ ओपरेशनक छह महिना बादक समय भेटल छल।”
“हमहूँ सभ की करबै, एतेक भीड़ भार छैक जे नम्बर लगाबए परैए छैक एक दिनमे सात आठटा ओपरेशन होइत छैक एहि हिसाबे एवरेज निकाइल कए ककरो तारीख देल जाइ छैक। सिस्टमे एहन छैक। एकरा सभकेँ छोरु, ई कहू ठहरल कतए छी, कोनो दिक्कत तँ नहि।”
“नहि, कोनो दिक्कत नहि जे दिक्कत छल अपने दूर कए देलहुँ आब माँ भगवतीक हाथमे।”
“ठीक छै तँ परसु फेर भेट हेतै।”
“ठीक मुदा एकटा प्रश्न पूछब अपनेसँ।”
“की ?”
“एतेक पघि डॉक्टर भए कऽ अहाँ ओहि दिन द्वितीय श्रेणीक स्लीपर किलासमे किएक ?”
संतोष हँसैत हँसैत, “हा हा हा, द्वितीय श्रेणीक स्लीपर किलासमे नहि रहितहुँ तँ अपनेसँ कोना भेट होइते। (गप्पकेँ बदलैत) हम अपने जकाँ माएक एतेक भक्त तँ नहि छी जे अपन हाथ कटवा दि मुदा एतेक सिनेह तँ अपन माएसँ करिते छी जे हुनका लेल द्वितीय श्रेणीक स्लीपर किलासमे एक दिन यात्रा कए सकी।”
“से की नहि बुझलहुँ ?”
“बात ई कि हम सभ मुलतः मधुबनी जिलाक छी मुदा २५-२६ बर्ख पहिने हमर बाबूजी पटना शिप्ट कए गेला। एखन हमर परिवार सभ पटनेमे छथि। ओहि दिन भोरे एकाएक पटनामे हमर माएक मोन बड्ड खराप भए लेल रहनि। आब १०-१२ घंटामे नहि कोनो एयरलाइंसक टिकट आ नहि कोनो ट्रेनक प्रथम वा कोनो एसीक टिकट भेटल मुदा गेनाइ जरूरी छल तहन कोनो दलालसँ एकटा द्वितीय श्रेणीक स्लीपर किलासक टिकट भेटल आ ओहि बिधि अपनेसँ भेट होबैक उपरबलाक कोनो प्रयोजन रहल हेतनि। किएक तँ घर पहुचैत पहुचैत माएओ एकदम ठीक छली। दिनभरि रहि अगिला दिन भोरे हवाई जहाजसँ आपस आबि ड्यूटी केलहुँ।” 

*****जगदानन्द झा 'मनु'

गुरुवार, 12 जून 2014

लघु कथा : ककर दोख


जीबछ बाबूक पन्द्रह वर्खक बेटी ललिया, अति सुन्नर रूप जेना कि भगवान निचैनसँ गढ़ने होएत। पन्द्रहे वर्खक बएसमे साढ़े पाँच फूट नम्हर छरहरा शरीर नम्हर-नम्हर आँखि, कमलक पंखुरी सन ठोर, गोलका मुँहमे छोटगर पातर नाक, डाँर धरि नम्हर केश, सम्पूर्ण देह एक मेलमे। एक-एकटा अंग सुन्दरताक उदाहरण नेने। ताहिपर जखन ललिया अपन मनपसन्द केर जड़ीदार उज्जरा शलवार सूट आ ओहिपर उज्जरा ओढ़नी लए लिए तँ साक्षात सरस्वती जकाँ ओकर रूप निखरि जाइ।
ललियाक रूप सौन्दर्य आ सादगी देखि जीबछ बाबू लग बर्ख भरि पहिनेसँ वरक माए बाबू सबहक निवेदन आबए लागल जे अपन कन्याँ हमरा दऽ दिअ तँ हमरा दऽ दिअ। जीबछ बाबू अपन बेटीक भविष्य आ ओकर शिक्षा-दीक्षाकेँ नहि देखि, कन्याँदानकेँ अपन जिम्मेदारी वा बेटीकेँ बोझ बुझि एकटा नीक ललिये सन सुन्नर लड़का, माए बाबूक एक्केटा बेटा, ओकरो बएस कम्मे, ललियासँ चारि बर्ख बेसी, सभ किछु देखला बाद ओकर ब्याह ठीक कए लेला।
कनियाँ-पुतरा खेलए बला बएसमे आइ ललियाक ब्याह भए रहल छल। घर-आँगन, लोक-वेद सभकियो सजल धजल। दलानपर वर-वराती सभ आएल। मुदा अज्ञानी ललिया खुश, कुदैत खेलाइत। ओहि अज्ञानीकेँ कि बुझल जे ब्याह की है छैक। ब्याहक ललका साड़ीमे तँ ओकर रूप सौन्दर्य आओर निखैर कए कोनो देवी जकाँ लगए लागल।  
ब्याह भेलै। साते दिनमे दुरागमन आ ओकर बाद सासुर। सासुरमे सभ किछु नव-नव। नव-नव लोक, नव-नव घर आँगन, नव-नव समाज। समाजक मर्यादा आ नियम रूपी बन्हनसँ बन्हा कए ओ एकटा आँगनामे कैद भए क रहि गेल। अपन घरमे ओ मात्र खेलाएत छल मुदा एहिठाम सासु ससुरक सेवा, घरक काज। ई सब करैत-करैत ललियाक पैंख जेना उड़नाइ बिसैर गेलै। एहि भावनाक रेगिस्तानक गर्मीमे कएखनो कए ओकरा शीतलताक अनुभूति होए तँ अपन पतिक संगे। दुनू बाल-किसोर मोन एक दोसरकेँ बुझै-समझैक प्रयासमे लागल।
समाज आ नीतिकेँ एतबोसँ संतोख नहि। अपन समाजक गरीबी रूपी दानवसँ बचैक हेतु ललियाक पतिपर आओर एकटा बोझ। माए-बाप अपन स’ख स’खमे बेटाक ब्याह कए क एकटा सुन्नर पुतौह तँ आनि लेलनि मुदा आब अपन बेटापर कतौ बाहर जा कए कमाइकेँ लेल दबाब देबए लगलखीन। ओहो एहि दबाबकेँ बेसी दिन नहि सहि सकला आ ब्याहक छ’ महिना पछाति, सूरत जतए कि हुनक गामक बड़ लोक काज करैत छल, कोनो ग्रामीण संगे चलि गेला।
पन्द्रह दिनक मेहनतिकेँ बाद हुनका एकटा ट्रांसपोर्ट कम्पनीमे मुनीमक नौकरी भेट गेलनि। दरमाहा छह हजार रुपैया महिना। ई समाचार सुनि हुनक माए-बाबू बड़ खुस जे बेटा ६ हजार रुपैया महिना कमेए लागल। एक महिना पछाति ओ दू हजार रुपैया अपन खर्चा हेतु राखि बांकीकेँ चारि हजार रुपैया गाम पठेलनि। रुपैया पाबि हुनक माए-बाबू गद-गद भए गेला। मानु हुनक रोपल गाछ फरए लागल। मुदा ललिया एहि सभसँ अनजान। ओकरा ई बुझएमे नहि एलैजे एहि रेगिस्तानमे ओकरा लेल एकटा पानिक सेतु ओहो कतए आ किएक चलि गेलै। भरि दिन-राति उदास मोनकेँ मारि कोनो ना अपनाकेँ घरक काज आ सासु सासुरक सेवामे लगेने।
नोकरी पकरलाक चारि मास बाद, एक दिन ललियाक ससुर लग सूरतसँ फोन आएल जे हुनक बेटा अर्थात ललियाक पतिकेँ अपने कम्पनीक कोनो ट्रकसँ एक्सीडेंट भए गेलनि आ आब ओ एहि दुनियाँमे नहि रहला। ई सुनैत मातर जेना हुनका उपर बज्र खसि परलैन। आँखिक आगू अन्हार भए गेलनि। फोन एक कात गुरकल तँ अपने दोसर कात गुरैक गेला। जे सुनलक दौरल। आँगनमे भीरक करमान लागि गेलै। सभ कियो कानैत-खिजैत, दुखक सागरमे डूबल। मुदा सभकियो सभटा दोख हारि थाकि कए ललियेपर देबै लागल। जेहन मुँह तेहन-तेहन गप्प होबए लागल।
“अलक्षी”
“खाए गेलै”
“अभागल”
“दसे महिनामे सोदि गेलै”
“देखैमे........ भीतरसँ राक्षसनी”
“घर बलाकेँ तँ खाऐ गेलै आब एहि बुढ़बा-बुढ़ियाक की हेतै”
एहने एहने अनसोहाँत गप्प सभ ललियाक कानमे आबैत। ततबामे कोनो स्त्री आबि ओकर माँगक सेनुर मेटा देलक तँ दोसर कोनो स्त्री ओकर दुनू हाथक चूड़ी फोरि देलक। मुदा असहाय ललिया ई सभ देख ठक-बक, ओकरा किछु बुझहेमे नहि आबि रहल छलै जे की भेलै आ ई सभ की भए रहल छैक। सबहक गप्प मानी तँ ओकर घर बाला मरि गलै। ई मरनाइ कि होइ छैक। मरि गेलै तँ एहिमे ओकर की दोख। आ ओकर सेनूर किएक मेटेएल गेल, ओकर चूड़ी किएक फोड़ल गेल। खेएर समाजक व्यवस्था, ओ अज्ञानी की बुझत ओकर माथपर केहन  पहाड़ खसि परलै। मुदा एहिमे ओकर की दोख ? 
© जगदानन्द झा 'मनु' 

शनिवार, 3 अगस्त 2013

प्रेम : वरदान वा अभिशाप

गर्मीक दिन छल, साँझक समय। ऐहन समयमे डूबैत सूरूजक दृश्ये किछु अजीब होएत अछि ,जेना किछु व्याकुल, किछु उदास-सन, किछु कहैत मुदा चुपे - चाप सूरूज डूबि रहल छल । साउनक मासमे गंगाक कातसँ अथाह पानिक पाछाँ सूरूज डूबबाक चित्रे मोनमे कए तरहक प्रश्न प्रकट कऽ दैत

शुक्रवार, 31 मई 2013

एहनो कतउ भेलइए ?

परूँका साल ३१ मई क' 

भोरे भोर जतेक समाचार सुनबामे आबए सभटा अचम्भिते करै बला । टेलीविजन चालू करिते देखै छी जे सगरो दिल्ली आ देशक आन आन भागमे यत्र-तत्र बाट जामक खबरि, यातायातकेँ  सुविधा बाधित । कारण की ?  कारण ई जे, पेट्रोलक मूल्यमे असामान्य वृद्धिकेँ विरुद्ध जनमोर्चा, आ ताहि जनमोर्चामे अपसियांत लोक । सभ वर्गक मिश्रित आम आदमी जिनक प्रतिनिधित्व करैत किछु नवोदित, किछु परिपक्व आ किछु वरिष्ठ राजनीतिक व्यक्ति लोकनि । ओना हिनका लोकनिक हस्तक्षेप भेनाइ सेहो परमावाश्यके , कारण जे हमरा लोकनिक बीच एहेन जनधारणा अछि जे विपक्षी लोकनि अगुएता तखने सत्ताधारीक आँखि खुजतन्हि, भने ओ स्वयं सत्तामे एलाक बाद जे करथि, आ जँ से नहि होईतै तँ आइ ई दिन कियैक  देखऽ परैइयै । महंगाइकेँ विरोध तँ आदि काल सँ होइत आएल अछि, अंतर एतबे छै जे पहिले सामान्य वृद्धि होइत छल आ आब असामान्य वृद्धि (अनिश्चित अनुपातमे) होइत अछि, आओर इएह अनिश्चितता हमरा लोकनिकेँ बाटपर ठाढ़ करबा लेल बाध्य कऽ दैत अछि । आब एकर नतीज़ा संध्या कालक समाचारमे  देखल जे पूर्ण हास्यास्पदे अर्थात असामान्य वृद्धिकेँ विरोधमे हो-हल्ला भेलाक बाद सामान्य कमी, किएक तँ सरकारकेँ ई आभास तँ रहिते छैक जे हो-हल्ला हेबे करतै तँ चलू कनेक उसास कए देल जेतै आ ठीक तहिना दोसर दिनसँ सभ किछु पूर्ववते अर्थात सरकार महगाई बढ़बैमे एक बेर फेर सफल ।
हड़ताल रहितहु लोक अपन अपन गंतव्य तक जेना तेना पहुँच रहल छलाह, तकर एकटा भुक्तभोगी हमहूँ रही । बसमे बैसल बैसल मोन अकच्छ भगेल रहय कानमे ठप्पी लगाय एफ.एम सुनय लगलहुँ, आहि रे बा ! ई की ? शाहरुख खानकेँ दम्मा कहिया भगेलन्हि, कहियो नै समाचारमे आयल छल, ने अखबारमे छपल छल । ई चैनल आ पेपर बला सभ तँ बड़ दाबा करै छथिन्ह जे हम सभसँ बेसी तेज, सभसँ पहिने, सभसँ आगाँ, मुदा एहिमे तँ सभ गोटे पछुआ गेलाह । ई मीडियाकर्मी लोकनि तँ एहेन-एहेन चर्चित लोकक छींकोकेँ ब्रेकिंग न्यूज़ बना दै छथिन्ह आ एतेक बड़का बीमारीकेँ जानतब सँ वंचित कोना रहि गेलाह ? मुदा औ बाबू ! वंचित ई सभ नै  रहि गेलाह, वंचित तँ हम स्वयं रहि गेलहुँ एहि एफ. एम. बला नकलची लोकक भाषासँ । संयोगवश ओहि दिन तमाकुल निषेध दिवस छल आ एहि अवसरपर शाहरुख़ खानकेँ शुभचिंतक लोकनि हुनका धुम्रपानसँ सम्बंधित विषय वस्तुपर अपन अपन नसीहत दए रहल छलथिन्ह आ ताहि क्रम कियो हुनके आवाज़मे नक़ल करैत एकटा संवादकेँ दम्मा बला अंदाजमे सुना रहल छलाह । एहि तरहे हड़ताल आ तमाकुलक सिट्ठीसँ कन्छिआइत-कन्छिआइत अपन गंतव्य धरि पहुँचलहूँ । भरि दिन काज धंधा कए कऽ संध्या काल जखन अपन मरैयामे एलहुँ आ फेर समाचार देखए लगलहुँ जे, कतौ हमरो युवावस्थाक फोटो आबि जए, मुदा से व्यर्थ सोचल कारण फोटो तँ नहिये ऐल आ उलटे युवावस्था पर पूर्ण विराम लागि चुकल छल ।
युवा मित्र लोकनिक लेल ई अविस्मरणीय दिवस छल, किएक तँ सरकार आइ खुलि कए घोषणा कदेलक जे - जे व्यक्ति १६ सँ ३० बरखक अवस्थाकेँ छथि, हुनके टा युवा वर्गकेँ श्रेणीमे राखल जेतन्हि । आजुक दिन हड़ताल झेलब आ की तमाकुल झेलब ओतेक भारी नै छल जतेक की ई वृद्धावस्था झेलब (सरकारक अनुसारे) मोस्किल छल । नै जानि आइ किएक बाजपेयी जीक बड्ड यादि अबै छल, एहि दुआरे की कमसँ कम अपनाकेँ एखन धरि युवा तँ बुझै छलहुँ किएक की हुनक युवा उमेर निर्धारण सीमा छल १३ सँ ३५ बरख धरि छल । मोने मोने ई सोचि बैसल रही जे एखन विवाहक वैधता पाँच बरख धरि आरो अछि,  मुदा ई की ? ई तँ एकाएक राताराती वैधता समाप्त ।
आब कल्पना करए लगलहुँ जे, काल्हि सँ जे घटक एताह, हुनका आँगुरपर गानि-गानि कऽ जन्म तिथि , मैट्रिक, इंटर, बी.ए. पासकेँ इसवी कहबन्हि आ ताहि गणनामे जँ कतहु चूक भेल तँ बुझू जे ई कलिजुग बिना गृहस्थाश्रमे केँ समाज सेवामे बीति जाएत । मोनेमोन फेर भोला बाबाकेँ गोहराबए लगलहुँ, “हे बाबा ! एहेन अनर्थ किएक केलहुं ? कम सँ  कम हमर वियाह जवानीमे तँ होमय दैतौं।
बड़ बेस! रातिमे सूतल रही, की देखै छी स्वप्नमे साक्षात् त्रिलोकीनाथ, गर्दैनमे फुफकारैत जुआएल गहुँमन साँप, हाथमे त्रिशूल आ डमरू, बाघक चामक ठेहुन धरि गमछा बना नुरियेने, सौंसे  देहमे शमसानक छाउर हसोथने, हमरा सिरमा लग आबि ठाढ़ भऽ गेलाह आ कहए लगलाह, “हौ बौआ! हम दिने तोहर बात सुनै छलहु, मुदा ओतेक लोकक बीचमे कोना भेंट करितौं तैं एखन एकांतमे कहै छियह! तोहर मोन एतेक छोट किएक छह ?”
कहलियैंह, ‘मोन छोट कोना नै हैत बाबा ? ई सरकार दुखी कऽ देने अछि । कहू तँ? वस्तुक दाम बढ़ा कए आकाश ठेका देने छै आ मनुक्खक युवा उमेर निर्धारण सीमामे दिनसँ दिन कोताहिये केने जाइ छै । देखियौ तँ बाजपेयी जी कतेक बढ़िया केने रहथिन्ह,  उमेर सीमा निर्धारण ।
बाबा हमरा हतोत्साहित देखि कहलाह, “सुनअ पढ़ल लिखल छह बात बुझबाक चेष्टा करअ । हौ ! बाजपेयीकेँ समयमे प्रधानमंत्रीसँ लऽ राष्ट्रपति तक केकरो देखलहक जे सोंगर पर ठाढ़ छल ? किएक तँ बेसी अवस्थाक रहितहु सभ अपनाकेँ जवान बुझैत छल, तैं ओ सीमा नमहर छलैक, ओनहियो ई सरकार संतुलन बनबए लेल महगी बढ़ा कऽ उमेर घटा रहल अछि किएक तँ बूझल छैक जे एहेन महगाईमे लोकक गुज़र बसर केनाइ आ जीयब कतेक मोसकिल छ,ै तैं मनुक्ख जतबा दिन जीत तहीमे अवस्थाक वर्गीकरण तालिका बनाओल जए । मोन छोट नहि करअ आ चिंता छोड़अ आ हमरा ई वचन दए जे काल्हि सँ तोँ अपन समयकेँ अनाप सनापमे एक्कहु क्षण व्यर्थ नहि करबह, आ जतबा दिनक ओरदा छह ओतबे दिनमे गृहस्थ जीवनकेँ संग संग सामाजिक दायित्वक निर्वाहमे ततेक बेसी समर्पित भजाऽ  जे दिनानुदिन तोहर कीर्तिसँ ई समाज, देश, कर-कुटुम, परिवार सभ तोरापर गर्व करए  लागअ । एकटा बात आर मोन रखिहजे, जे व्यक्ति कर्मठ अछि ओ सतत जुआने रहैत अछि किएक तँ ओ अपन लक्ष्यकेँ पाबए लेल दृढसंकल्पित रहैत अछि ओकर लक्ष्यकेँ आगाँ वृद्धावस्था सेहो युवावस्था सदृश्य लगैत छैक । अंतमे शुभानि सन्तु !!
कहि कए अन्तर्ध्यान भऽ गेलाह । जखनसँ निन्न खुजल तखनसँ अपनाकेँ एकदमसँ हट्ठा-कट्ठा जवान प्रतीत होमय लागल आ भोला बाबाकेँ ध्यानमे रखैत अपन कर्ममे लागि गेलहुँ ।


मनीष झा "बौआभाइ"
ग्राम+पो.-बड़हारा,भाया-अंधराठाढी(मधुबनी)  
मो.-09717347995 (दिल्ली)
उपलब्धि संग्रह: http://writermanishjha.blogspot.com