वेदरदिया नहि दरदिया जानै हमर
टाका सँ जुल्मी प्रेम केँ गानै हमर
सदिखन जरैए मन विरह केँ आगि में
तैयो पिया नहि किछु दरद जानै हमर
साउन बितल घुरियो कँ नहि एला पिया
नहि खीच हुनका प्रेम ल'कँ आनै हमर
बरखा खुबे बरिसय तँ गरजय बदरबा
छतिया दगध भेलै हिया कानै हमर
बसला पिया 'मनु' दूर बड परदेश में
झरकल हिया कनिको तँ नहि मानै हमर
(बहरे रजज, मात्राक्रम- २२१२)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या-६१
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