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गुरुवार, 26 जुलाई 2012

गजल


नेन्ना हम    मए केँ आँखि जूराएब
मिथिला केँ अपन  सोना सँ चमकाएब

मूरत सभ घरे रामे सिया केँ देखु
एहन आँन  कतए  मेल  देखाएब 

गंगा बसति पावन घर घरे मिथिलाक 
डुबकी मारि कमला घाट नाहाएब

मुठ्ठी भरि बिया भागक अपन हम रोपि
अपने माटि में हँसि हँसि कँ गौराएब 

'मनु' दै सपत घर घुरि आउ काका बाबु  
नेन्ना केँ कखन तक कोँढ ठोराएब 

(बहरे रजज, २२२१) 
जगदानन्द झा 'मनु'  :  गजल संख्या -६५  

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