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शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

गजल


 
गजल नहि लिखतौं तँ हम करितौं की 
गजल बिन जिनगी अपन  जिबतौं की 

शराब  में  निसा  छैक   बुझलहुँ हमहुँ
शराब  नहि पीबितौं तँ हम पीबितौं की 

सभ  कहलक नहि दिमाग हमरा में 
एहि सँ बेसी लए कए हम करितौं की 

दुनियाँ में  सभतरि   भ ' जाइ सोने सोना 
तँ कहु सोना केँ कियो कनिको पूछितौं की 

मन मारने 'मनु'  बैसल छी  नहि   बुझू
एते हल्ला में बजितौं तँ अहाँ सुनितौं की 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण - १५) 
जगदानन्द झा 'मनु'

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