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शनिवार, 31 मई 2025

गजल

बड़ सुनल जस  माइ हे तोहर दुअरिया

जोड़ि कल अनलौं  सिनेहक हम गठरिया

 

सूप डाला कोनिया सभमे अरज छै

थाढ़ दुखलै गोरबा   फेरूँ नजरिया

 

दुख दुखीयाकेँ हरै   परमेश्वरी तूँ

माइ हमरे बेरिया मुनलअ किबरिया

 

दिन छये देने छलौं दर्शन अपन जे

फेर दर्शन दिअ अहाँ हम छी भिखरिया

 

मोन टूटल जाइए  छल देह टूटल

‘मनु’ तकै छै माइकेँ सगरो नगरिया

 

(बहरे रमल, मात्राक्रम 2122-2122-2122)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 

 


गुरुवार, 9 जनवरी 2025

गजल

अनलौं करेजा अपन स्वीकार करु

हमरासँ एना   अहाँ नै   बेपार करु

  

गरदनि उठा कनिक हमरा नहि देखबै

हम आब एतेक कोना सिंगार करु

 

सस्ता महग बाढ़ि रौदी सगरो भरल

सोइच गरीबक अहाँ किछु सरकार करु

 

हरलौं कते युगसँ तन मन धन बनि अपन

ऐ आतमा  पर हमर नहि अधिकार करु

 

झूठक बटोरल अहाँकेँ बहुमत रहल

‘मनु’ नहि सड़ल बाँटि जनता बेमार करु

 

(बहरे सगीर, मात्राक्रम - 2212-2122-2212)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

गजल

प्रेममे हुनकर जहर चिखने जाइ छी 
सब बुझैए  हम निशा केने जाइ छी
 
जे मजूरक पैँख  पेलौं उपहारमे
प्राण बुझि संगे सगर नेने जाइ छी
 
रोशनाई नै कलममे  बड़ अछि कहब
चीर छाती सोणितसँ लिखने जाइ छी
 
मानतै के देख मुँह पर मुस्की हमर
की करेजाकेँ अहाँ खुनने जाइ छी 
 
बहुत लागल जीवनक ठोकर चारुदिस
सुमरि ‘मनु’केँ चोट सब सहने जाइ छी
 
(बहरे जदीद, मात्राक्रम- 2122-2122-2212)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

गजल

तारीमे कतए मद जे चाही जीबै लेल

माहुरमे कुन जीवन चाही जे चीखै लेल 

 

बाँकी नै तारीएटा टूटल मनकेँ लेल

जीवनमे एकर बादो बड़ छै पीबै लेल

  

सिस्टममे फाटल छै मेघसँ धरती धरि कोढ़

एतै कतयसँ दरजी सिस्टम सीबै लेल

 

जीतब हारब सदिखन लगले छै जीवन संग

फेरसँ उठि कोशिश नमहर हेतै जीतै लेल

 

खेती मोनसँ करबै ‘मनु’ जीवनकेँ तैयार

कर्मक बीया सगरो बहुते अछि छीटै लेल

 

(बहरे विदेह, मात्राक्रम- 2222-2222-222-21 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


रविवार, 31 मार्च 2024

गजल

हम बनब चाहै छलौं की  कि बनि गेलौं

प्रेममे प्रियतम अहीँ  केर    सनि गेलौं

 
आश जे परिवारकेँ  आब नहि रहलै

जेब खाली देख सब हीन जनि गेलै

 

सुधि रहल नै बोझ लदने अपन हमरा

प्रेम कनिको भेटते हम तँ कनि गेलौं

          

मोनकेँ भीतर घराड़ी  बसल सदिखन

छल लिखल परदेशके  देश मनि गेलौं                  

 

नेह अप्पन आब नै नेह टा रहलै

मोनमे बसि ‘मनु’ हमर साँस गनि गेलौं

 

(बहरे कलीबमात्राक्रम - 2122-2122-1222 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु

 

शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

गजल

पोथीक तर दबि पढ़ुआ सगर मरि गेल

जे प्रेममे  डूबल जीविते तरि गेल 

 

सदिखन जतय मनमे छल डरक आतंक 

अबिते अहाँके नव फूल फल फरि गेल


धरती तपल छल जे पानि बिन तरसैत

हथियाक हँसिते बरखा निमन परि गेल

   

आनक सुखक चिंता बेस अप्पन दुखसँ

डाहसँ कतेको घर तेल बिन जरि गेल 

      

पाथरसँ मनु शाइर बनि रहल अछि आब

तोरासँ जे  मृगनयनी  नजरि लरि गेल 

(बहरे सलीममात्रा क्रम - 2212-2221-2221)

जगदानन्द झा ‘मनु

 

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

गजल

नीक केहन आइ सगरो रीत भेलै

प्रेम जकरा  देलियै  तीत भेलै

 

जेब खाली साँझ हम बाजार गेलौं

जे कियो  बुझलकै भयभीत भेलै

 

बोल सोहेतै किए ककरो गरीबक

आब धनिकक गाइरो नव गीत भेलै

 

जन्म भरि गिरगिट जकाँ जे रंग बदलै

ओकरे सभके किए  जीत भेलै

 

भाइ भैयारीक मुँह चाटै कुकुर ‘मनु

लाख सोशल मीडिया पर मीत भेलै

 

(बहरे रमलमात्रा क्रम 2122-2122-2122)

जगदानन्द झा ‘मनु