नुका कय मुँह अपन सगरो कनै छी हम
विरहकेँ आगिमे सदिखन जरै छी हम
लगा नेहक किए ई आँच चलि गेलौं
करेजक दर्द सहियो नै सकै छी हम
लगन एतेक सतबै छै बुझल नै छल
विछोहे राति दिन घुटि-घुटि मरै छी हम
नजरिमे हम जगतकेँ छी बताहे टा
बुझत की लोक आनंदे रहै छी हम
पिया ओता हमर ई सोचि जीबै छी
लगोने आश ‘मनु’ रस्ता तकै छी हम
(बहरे हजज, मात्रा क्रम : 1222-1222-1222)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
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