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सोमवार, 10 सितंबर 2012

गजल


पुष्प लता जेना हम लपटाएल छी
व्यथित प्रेम सँ हम त' औनाएल छी

पुष्प सन खिलल छै रूप कांट मुदा
छी अतृप्त भ्रमर तैं भरमाएल छी

फंसेलो माँछ जकां अहाँ चारा खसा के
ओही माँछ क' जाल में ओझराएल छी

गीत कवित सबटा बिसरलहूँ यौ
फुसिए के प्रेम में हम बौराएल छी

भादव माष एहन ऊमसल प्रेम
ऊमसल प्रेम संग अकुलाएल छी

अतिसय किछ नहि होय नीक 'रूबी'
समेटू भाभट व्यर्थ अन्हराएल छी
------------वर्ण -१४ --------------
रूबी झा

गजल



चुपचाप बैसल छी एकातमें
जेना बुनी मेही बरिसातमें

ऐना अहाँ मोनक' नै दाबियो
लागे सुहनगर सभ अनुपातमें

चुपचाप छी ओते बैसल किये
ठोरत' दबौने छी प्रतिघातमें

भोजनक' बेरा में किए रूसय छी
देखू परोसल माँछो पातमें

चुप्पा सँ लागे अछि बेसी त' भय
बर छी अहाँ जेना बरियातमें

२२१२- २२- २२१२ ( सभ पांति में )

रूबी झा

गजल


सुख भरल संसार चाही
जीब' हेतु प्यार चाही.

भीख मांगे बाट निरखे
ओकरो अधिकार चाही

घर घरारी सोन चानी
भरल घर भंडार चाही

नाम चाही काज चाही
संपदा अंबार चाही

दूध बाटी भरल मांगे
स्वागतो सत्कार चाही

२१२२ -२१२२ ( सभ पांति में )

पर्वत एहन दर्द


कोलाहल अछि सागर एहेन ,
लहर एहेन अछि भरल द्वन्द ,

पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहन अछि आनंद l

जिनगी क इ रस देखु त ,
कतेक लगेत नुनगर अछि ,

जीत जाई अछि दुःख दर्द सभ,
एसकर सुखे टा हारल अछि ,

पूष्प सरीखा मांछक ऊपर ,
ओछायल अछि काटंक फंद,

पर्वत एहन दर्द भरल अछि ,
आ ढेपा एहन अछि आनंद l

जतबे ताकि हम शीतलता ,
ओतबे लहरल आइग भेटए,

प्यास त चुप चाप भेल अछि ,
मौनक् मदिरा हम पिलहूँ,

संपन्न भा गेल सबटा गीत ,
शेष बांचल अछि व्यथा केर छंद ,

पर्वत एहन दुःख भरल अछि ,
आ ढेपा एहेन अछि आनंद l

[रूबी झा ]

शनिवार, 1 सितंबर 2012

गजल


कतेक छल टीश कतेक दर्द उमरैत रहल
छल दर्द करेजा में आंखि सँ नोर खसैत रहल

बनि हम माटि क' मूरति ठार बकोर भेल ओत'
सोंझा में हमर घरारि टूटि क' पसरैत रहल

दियाद क' झगरा में बखरा लागल केहन देखू
माँ किनको दीश बाप भेल मनुखो बंटैत रहल

खचा-खच करेज में घोंपी रहल छुरा जेना कियो
आब नै निकालि सकै कियो आर इ धसैत रहल

बिनु बाँट बखरा क' जीबी नै सकै मनुख कहुना
ब्याकुल भेल माई आ बाप सोचि क' मरैत रहल

एहन होश उरल 'रूबी' क' आन्हर भेल छैक ओ
नोर बहल कखनो रक्त जनु बरसैत रहल

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१९
रूबी झा

गजल


बिनु बातक ऐना भs के अपन नै रुसय ककरो
बिनु चोटक सपन नै ऐना कs के टुटय ककरो

राखल आगु में होय लाखे कियेक नै भोग छप्पन
प्रेमक बिहीन आ स्वादक बिनु नै रुचय ककरो

ईर्ष्या जलन में भs गेल छैक सबटा नाश चौपट
मुदा अन्तोकाल में आंखि किएक नै खुजय ककरो

नारी के छै नारी शत्रु छी हम कुरूप छै ओ सुन्नरि
ढारि तेज़ाब खुश ऐना करेजो नै जरय ककरो

व्यर्थहिं जनु अपन मांथ कs खपा रहल छै 'रूबी'
जानि बुझी बनल अज्ञानी बातो नै बुझय ककरो
-----------------------वर्ण १९ -------------------
रूबी झा

गजल


हे यै सुन्नरी कनेक अहाँ त' सम्हारि चलु
ऐना बहकैत नै आँचर सँ बहारि चलु

भरल यौबन अहाँक मादकता अपार
लोक हुलकै नै अहाँ घोघक' उघारि चलु

अल्हर छी एहन बयार पुरबैया जेना
एलो सासुरक' लगीच नै झटकारि चलु

अछि कांचे वयस कनेक पपनी खसाओ
करबै चौपट नै एना आंखि तरारि चलु

हमर इज्जत सम्मानक नै करू भंडूल
हे यै नहु नहु कने पियाक' दुलारि चलु

------------------वर्ण -१६ -------------
रूबी झा

गजल


जीबन धन अहाँ बिनु जीबन कोना कs बचतय यौ
हँसे छी फुसिये अहाँ बिनु मुस्की कोना कs सजतय यौ

छोरि गेलौ झरकैत आगि में कहुना जीबैत रहलौ
मुदा बिनु पानि कs चानन कियो कोना कs घसतय यौ

बीतल बात हम कतेक दिन राखब जोगा जोगा कs
नै जौं हेते नव बात तs पूरना कतेक चलतय यौ

पलक कs पंखुरी में अहिं केर सुधि समाहित अछि
आंखि केर काजर अशोधार भs कतेक बहतय यौ

उलहन आ उपरागक तs पोथी भरने अछि रूबी
शरिपहूँ नै अहाँ एबे तs कतेक दिन जपतय यौ

-----------------वर्ण -२० -----------------
रूबी झा

हजल


देखियो ई बबुआन कs केश बुझू मांथ पर की छत्ते बुझू
छथ सिकीया पहलवान मुदा पेट जनु कोनो खत्ते बुझू

अछि आगु मे चुरा दही कs पुजौर अधक्की जकाँ परसने
फूँक मारू तs ऊरता मनुख बुझू चाहे सुखेल पत्ते बुझू

कार्यक बिहून आ बाजब में छथ कने बेसिए होशियार
मजलिस लगेता सौंसे जा' रोपल जेना गोबरछत्ते बुझू

लाज शर्मक शब्दों नै बुझल ग्लानी हिनका ओतs की हेतेन
हर्ष विषाद हिनका लेल की ईहो पुरुख अलबत्ते बुझू

धोती अंगा कहिये छोरलैन जिन्सक पेन्ट चुबैत रहे छै
शहर कs ओ अंखियो नै देखल रहै मुदा कलकत्ते बुझू

बेगारी बैसल 'रूबी' लिखs चाहलक किछ लिखा गेल किछ
जनु कियो लेब अपना पर एहनो नै सबटा सत्ते बुझू

वर्ण -२२

रूबी झा

गजल


भेटते जौं समय कहियो तs अपनों लेल सोचब हमहूँ
एखन धरि मरलौं दुनियाँ लs अपना लs जियब हमहूँ

भटकि रहल छै कतेक आखर मोने में जतय ततय
कागत पर जोरि जोरि कोनो नामी शाएर बनब हमहूँ

एखन पाप पुन्य क्यो नै बुझे छथ भेलैन सभ भ्रष्ट एत'
भ्रस्टाचारक बहैत गंगा में नै चाहितो तs बहब हमहूँ

जोश में सबटा होश गमेलौं हाथ रहल नै खाको पाथर
भव्य जौं चलन राखब त स्वर्गहि इजोर करब हमहूँ

कथी लs करै छी अनकर अप्पन एता नै छै किछ ककरो
सबटा एते रहते राखल राम नाम कs मरब हमहूँ

-------------------वर्ण-२२ ---------------------
रूबी झा

गजल


मोनमें बसल गमकल हँसी
कोंढ में जा' क' अटकल हँसी

सांझ भिनसर परय मोन ओ
चान बनि ओत' पसरल हँसी

ठोर छल पातरे पान सन
दांत छल गचल चमकल हँसी

आँचरक खूट दाबिक' हँसै
कोन दोगे भ' ससरल हँसी

आश मोनक त' भेलै पुरण
आबि ओ निकट धमकल हँसी

२१२ २१२ २१२ सभ पांति में
रुबी झा

गजल


मानू नहि मानू मुदा सताबू नै यौ
संग में राखु नै राखु पराबू नै यौ

देखै जे छी मुख बरखो में अहाँके
स्वप्न सोझा सँ अप्पन हटाबू नै यौ

हम बूझै छी सबटा मोनक भाषा
बहला फुसियाक त' मनाबू नै यौ

करू नै दाबा झूठौका प्रेमक' एता
दोख कोनो नै हम्मर भूकाबू नै यौ

जोगौने छी अखनो प्रेमक पिहानी
अनका के संग भ' के जराबू नै यौ

जौं बुझै छी रूबी क' सजनी अपन
सभके सोझा में प्रेम जताबू नै यौ

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१३
रूबी झा

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

गजल

आबए छैक  मजा रसिक पर कलम चलाबएसँ
बनि गेल जे गजल हुनक चौअन्नी बिहुँसाबएसँ

प्रेम होबएमे नै  लगैत छैक बरख दस बरख
भ जाए छैक प्रेम बस कनेक नजैर झुकाबएसँ

जँ  प्रेममे  कपट होए   टूटीतौ नहि लागै छैक देर
जेना टूटि जाइ  छैक काँच कनीके हाथ लगाबएसँ

जँ नहि बुझि पेलौं आंखिक कोनो इशारा कहियो अहाँ
आईए  की  बुझब  आँखिसँ हमर नोर  बहाबएसँ

ताग टूटल जोरबासँ परि जाइ  छैक गीरह जेना
रूबी ओझरेब ओहिना  बेर बेर प्रेम लगाबएसँ

(आखर -२०)
रूबी झा

गजल



नव लोकक केहेन नव चलन देखियौ
एक दोसर सँ कतेक छै जरण देखियौ

खोलि क राखने बगल में रमक बोतल
आ मुहं मे रामक केहेन भजन देखियौ

दिने दहार झोंकि रहल छै आंखि मे धूल
बनि रहल छैक कतेक सजन देखियौ

चपर चपर सब तैर बजैत चलै छै
बेर काल मे नाप तौल आ वजन देखियौ

देखि सुनि रुबी क लागि रहल छै अचरज
भ्रष्ट जुग मे भ रहल ये मरण देखियौ

आखर -१६
रूबी झा

गजल

बन्न घरमें भोरमें कानै किए छी
आंखिक नोर सँ सभ सानै किए छी

बुझै छी जनु लगै हमरा सँ भय
प्रिय आन बुझि मोन आनै किए छी

प्रथम भेंट क' अछि आजुक भोर
डॉर होय अहाँ क इ ठानै किए छी

संगे-संग गमायेब सुख आ दुःख
तहन गप अहाँ नै मानै किए छी

लाजे मरै छैक ''रूबी'' यौ प्रियबर
रहस्य एतबो टा नै जानै किए छी

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१३
रूबी झा

गजल

आइ हमरा निन्न भैए ने रहल अछि
कल्पना जनि कोन मोने में गरल अछि

किछ लिखा चाही खुशी सौ छी अहाँ बिन
इंक नै पहिने हमर नोरे खसल अछि

सौन माषक पैन इन्होरे बुझाई
सगर जिनगी में अनल हमरा भरल अछि

पंचमी इ प्रथम केहन  बितल   पिय  बिन
सौंस पख बिरहन बनि क आशे बितल अछि

पहर राइत आध में जागल चिहुक के
मोन वेकल अछि रूबी भाग्ये जरल अछि

२१२२-२१२२ -२१२२ सभ पांति में
रूबी झा

गजल

अछि हाथ में केहेन समय कs खंजर देखियौ
सगरो पसरल अछि जंतर मंतर देखियौ

किनको सँ सत्य आ बिश्वासक हाल जुनि पूछियौ
पसरल सौंसे तs एकर अस्थि पंजर देखियौ

गुणा भाग में लागल ब्यस्त रहै अछि सभ कियो
भूखे ब्याकुल धरती प्यासल समंदर देखियौ

सभ कियो अपना अपनी कs जिवैथ स्वार्थे बस
भ रहल ये सुखार में भावना बंजर देखियौ

कहिया धरि जनम लs सम्भारता धरती राम
घरे घर जखन जन्मल दसकंधर देखियौ

जुनि जाऊ रहस्ये नुकैल जहरी मुस्कान पर
''रूबी'' रक्त पिव सँ भरल घाव अंदर देखियौ

.......................वर्ण १८  .......................
रूबी झा


भक्ति गजल


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर राधा कृष्ण क नोक झोंक क रूप में इ हमर बिनु रदिफक गजल :>


छोट यमुना केर निर्झर राधा गेलि नहाए
बाट पछोरल श्रीकृष्ण रहलि राधा लजाए

कहियो माँगे कान्हा ढूध दधि माखन कहियो
केलेंन हद एक दिन लेलैन चीर चोराए

मटकी फोरलैन छल सँ बाहीं झकझोरल
ओही झकझोरि में त देलैन चुरी ओ गराए

राधा रिसियाओल मनहि मन गरियाओल
कदम बृक्ष तड ओ तैयौ लेलैन अंगराए

छल हाथ चीर राधा क डाँर छल मटकी
पाछुए सँ कृष्ण देलैन मधुर बंसी बजाए

अछि अनुपम प्रेम लीला त राधे कृष्ण केर
नैन बिभोर भेल देवगन पुष्प बरसाए
आखर -१७
रूबी झा

भक्ति गजल

हे यौ कमल नयन किशन कन्हैया शीघ्र पधारू
हे यौ मुरली मनोहर बंशी बजैया शीघ्र पधारू

जहिना मौसी पुतन मारल दूध पीबि क बाला में
हे श्याम सुन्नर बलदाऊ केर भैया शीघ्र पधारू

चीर चोराओल गोपीन सभ क संगे राधा प्यारी क
नंदलाला माखन चोर धेनु चरैया शीघ्र पधारू

संकट में अछि अहाँ क धरती बाट जोहै सेवक
सौंसे सर्प बिष भरलै नाग नथैया शीघ्र पधारू

केलौ सोहावन नन्द यशोदा क आँगन द्वापर में
ऐ युग में बेकल नैन पार लगैया शीघ्र पधारु

कते करू विनय करूणामय लाज बचाबू आबि
हे मोहन द्रोपदि केर लाज बचैया शीघ्र पधारू

देवकी वासुदेव क मुक्त केलौ अहाँ करी बेरी सँ
देवकी नंदन कंसक प्राण हरैया शीघ्र पधारू

बृंदाबन में रास रचाओल सहस्त्र गोपीन संग
हे यउ बृजकिशोर छी रास रचैया शीघ्र पधारू

आखर- १९
रूबी झा

गजल



हमर ठोढ़क चौकैठ पर आबि किए नुकाबए छी
बनि क हमर ठोढ़क मुस्की जानि बूझि सताबए छी


निःशब्द राति में चिहुंकि जगलौं आहट सुनि अहाँके
कहू त अहाँ कतेक निर्दय सूतल सँ जगाबए छी


हम अहाँ बिनु कोना जीयब इहो नै बूझल अखन
क रहल छी प्रयास जे मुश्किल किएक बनाबए छी


कहने छलौ अहाँक करेजक घर में रहै छी हम
सभ के केवार करेजक खोलि किएक देखाबए छी


एतबो बकलेल जुनि बूझू हमरा अहाँ यौ प्रीतम
"रूबी" सबटा बुझै छैक जानि बूझि क खिसयाबए छी

आखर --२०
{रूबी झा }