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शनिवार, 1 सितंबर 2012

गजल


भेटते जौं समय कहियो तs अपनों लेल सोचब हमहूँ
एखन धरि मरलौं दुनियाँ लs अपना लs जियब हमहूँ

भटकि रहल छै कतेक आखर मोने में जतय ततय
कागत पर जोरि जोरि कोनो नामी शाएर बनब हमहूँ

एखन पाप पुन्य क्यो नै बुझे छथ भेलैन सभ भ्रष्ट एत'
भ्रस्टाचारक बहैत गंगा में नै चाहितो तs बहब हमहूँ

जोश में सबटा होश गमेलौं हाथ रहल नै खाको पाथर
भव्य जौं चलन राखब त स्वर्गहि इजोर करब हमहूँ

कथी लs करै छी अनकर अप्पन एता नै छै किछ ककरो
सबटा एते रहते राखल राम नाम कs मरब हमहूँ

-------------------वर्ण-२२ ---------------------
रूबी झा

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