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शनिवार, 1 सितंबर 2012

गजल


मानू नहि मानू मुदा सताबू नै यौ
संग में राखु नै राखु पराबू नै यौ

देखै जे छी मुख बरखो में अहाँके
स्वप्न सोझा सँ अप्पन हटाबू नै यौ

हम बूझै छी सबटा मोनक भाषा
बहला फुसियाक त' मनाबू नै यौ

करू नै दाबा झूठौका प्रेमक' एता
दोख कोनो नै हम्मर भूकाबू नै यौ

जोगौने छी अखनो प्रेमक पिहानी
अनका के संग भ' के जराबू नै यौ

जौं बुझै छी रूबी क' सजनी अपन
सभके सोझा में प्रेम जताबू नै यौ

सरल वार्णिक बहर वर्ण -१३
रूबी झा

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