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सोमवार, 10 सितंबर 2012

गजल


पुष्प लता जेना हम लपटाएल छी
व्यथित प्रेम सँ हम त' औनाएल छी

पुष्प सन खिलल छै रूप कांट मुदा
छी अतृप्त भ्रमर तैं भरमाएल छी

फंसेलो माँछ जकां अहाँ चारा खसा के
ओही माँछ क' जाल में ओझराएल छी

गीत कवित सबटा बिसरलहूँ यौ
फुसिए के प्रेम में हम बौराएल छी

भादव माष एहन ऊमसल प्रेम
ऊमसल प्रेम संग अकुलाएल छी

अतिसय किछ नहि होय नीक 'रूबी'
समेटू भाभट व्यर्थ अन्हराएल छी
------------वर्ण -१४ --------------
रूबी झा

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