दड़ड़िते खेसारी बखाडी बनेलक
बीच तरहत्थीपर दही ओ जमेलक
बिसरि रौदी दाही अपन कष्ट सभटा
कर्म पथपर खेतिहर चलि हर चलेलक
केखनो नहि पढ़ि रहल मड़राति सगरो
बिसरि रौदी दाही अपन कष्ट सभटा
कर्म पथपर खेतिहर चलि हर चलेलक
केखनो नहि पढ़ि रहल मड़राति सगरो
राजमंत्री बनि जीनगी भरी कमेलक
पहिर चश्मा दिन राति जे खूब पढ़लक
घूस दय चपरासी किरानी कहेलक
पहिर चश्मा दिन राति जे खूब पढ़लक
घूस दय चपरासी किरानी कहेलक
देख आगाँ इस्कूलकेँ घुरि परेए
बनि कवी 'मनु' सभकेँ गजल ओ सुनेलक
(बहरे खफीक, मात्राक्रम- २१२२-२२१२-२१२२)
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