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सोमवार, 3 सितंबर 2012

गजल


दड़ड़िते खेसारी     बखाडी बनेलक
बीच तरहत्थीपर दही ओ जमेलक

बिसरि रौदी दाही   अपन कष्ट सभटा
कर्म पथपर खेतिहर चलि हर चलेलक

केखनो नहि पढ़ि रहल मड़राति सगरो 
राजमंत्री बनि    जीनगी भरी कमेलक

पहिर चश्मा दिन राति जे खूब पढ़लक
घूस दय चपरासी      किरानी कहेलक

देख आगाँ इस्कूलकेँ   घुरि परेए
बनि कवी 'मनु' सभकेँ गजल ओ सुनेलक

(बहरे खफीक, मात्राक्रम- २१२२-२२१२-२१२२)

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