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मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

रुबाइ

नेह पजाड़ल अहाँक धधैक रहल अछि

एसगर करेज हमर तड़ैप रहल अछि 

कोन लगने अहाँसँ  मनु नेह लगेलौं

प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

 

रविवार, 25 दिसंबर 2022

रुबाइ

घुमि अहाँ कनखीसँ कनि जे ताकि देलहुँ 

अपन तन मन एहि पर हम हारि देलहुँ

आब नहि बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा 

‘मनु’ अहाँके लेल सगरो बारि देलहुँ 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

बुधवार, 21 दिसंबर 2022

रुबाइ

धाब जे अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ

 सबटा दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ  

मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी

अहाँक खुशी लेल नोरकेँ पी गेलहुँ 

© जगदानन्द झा ‘मनु’

 

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

गजल

जखन सगरो दर्द भेटल 

अपन सीलौं ठोर रेतल 

 

द’बल अपने हाथ गरदनि 

तखन के ई नोर मेटल 

 

घरक बन्हन छोरि दुनिया

सटल जतए नोट गेटल 

 

भरोसा करु आब कोना 

लखन भेषे चोर फेटल 

 

दहेजक ‘मनु’ चारिचक्का  

बियाहक पहिनेसँ सेटल 

(बहरे मजरिअ, मात्राक्रम 1222-2122)

जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हमरा तँ चिन्हते होएब ?

आइ भोरे भोर एकटा अजोध वयोवृद्ध मैथिली साहित्यकार, गीतकार सो कॉल ग़ज़लकारकेँ फ़ोन आएल- “ट्रीन ट्रीन ट्रीन….”
हम- “हेलो”
उम्हरसँ- “के ? मनु।”
हम– “जी”
उम्हरसँ खूब खिसीयाति- “ई की अहाँ सभ फ़ेसबुकपर उल्टासिधा लिखैत रहै छी ? एक दू, एक दू। हम सब तँ भरि ज़िंदगी घास छिललौं।”
हम – “अपने के ?”
उम्हरसँ- “हम सा रे गा मा, हमरा तँ चिन्हते होएब ?”
हम – “हाँ”
उम्हरसँ- “कतेक ?”
हम – “जतेक अहाँ हमरा चिन्है छी।”
की ओ झट फोन राखि देला।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

गजल

जखन मोन कानल गजल कहलौं

रहल कोंढ़ छानल गजल कहलौं 

 

जमाना सुतल छल जखन नींदसँ

तहन राति जानल गजल कहलौं 

 

लगन भेल तीसम बरख धरि नहि

पड़ोसनसँ गानल गजल कहलौं 

 

जुआ छल लदल कांहपर लोकक

पसीनासँ सानल गजल कहलौं 

 

उमर ‘मनु’ बितल आर की करबै 

अपन मोन ठानल गजल कहलौं 

(मात्राक्रम सभ पाँतिमे 122-122-1222)

जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

रुबाइ

देख तोरा सुन्नरी सीटी बजैए 

बन्द धरकन ई कतेकोकेँ करैए 

फालतू परमाणु बम दुनिया बनेलक

तोर कनखीपर मनुख लाखो मरैए 

© जगदानन्द झा ‘मनु’