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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

सिहरी गेल मोन

सिहरी गेल मोन,
चौंकि गेलहूँ हम,
चेहा उठल स्मृति,
मेज पर राखल टेबुललैंप,
बेजान सन,
भुकभुकाईत रहल,
आ हम,
एही भुकभुकी में,
ताकि लेलहूँ,
अपन जिनगी,
आ जिनगीक सब रंग के,
अबधाईर लेलहूँ,
हमहूँ आब मशीन जकाँ,
स्विच स’ ओन आ ऑफ,
होइत रहैत छी,
जखन तखन,

बीती जो रे जिनगी,
नहीं अछि सहाज,
आब बस ......
  

बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

गजल


कत्ते सोहाओन राति छै आयल,
सुख , सपना सब संगे लायल ....

कोना ने कियो मस्त भ’ झहरत,
नैन आहाँके अछि कजरायल,...

नैन करय नेह केर सिंचन,
ठोरक भाफ में सब उस्नायल,....

आगुक रूप के कोना हम बाजू,
बस पर्वत छै जेना समाओल,.....

‘गुंजन’ के दिन छिनी-झपटिक’
भाग्यो छैथ अहींक संग लागल,....

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब





किछु दिन भेल,
दिल्लीसँ पटना लौटैत रही,
गुंजन श्री 
मोनहीं मोन एकटा बात सोचैत रही,
ताबेत एकता अर्धनग्न बच्चा सोझामे आयल,
आ कोरामे अपनोसँ छोटके लेने,
चट्ट दसोझामे औंघरायल,
हम सोचिते रही  जे आब की करी  ,
बच्चा बाजल,-
सैहेब अहाँ की सोचि रहल छी  ?
हम तआब अपनों सोचनाय छोड़ि देने छी ,
जौ मोन हुए त दान करू,
हमरा हालैतीपर सोच कनै हमर अपमान करू,
बात सुनि ओकर, 
अपन जेबीमे हाथ देलहुं,
आ ओकर तरहत्थीपर किछु पाइ गाइन देलहुं,
डेरा पहूँची कसोचलहूँ की हम ई नीक केलहुं,
या एकटा निरीह नेन्नाकेँ भिखमंगीकेँ रास्ता पर आगू बढ़ा देलहुं,
प्रण केलहूँ अछि जे आब ककरो भीख नहि  देब,
भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब,
जा हम त अपने भीख माँगि रहल छी भगवान सँ,
जो रे भिखमंगा,....छिह.......

बुधवार, 29 अगस्त 2012

गजल

सिह्कैत हवा पर सिसकैत अछि मोन
हम छी पाथरआ ओ पाथर,से भेल सोन

कनैत रही छी असगर एकात बैसल
हँसब से ऐहन बाते अछि बचल कोन

चली गेल ओ संग लs मुइर-सुईद सब
देलहुं हम जकरा अपन स्नेहक लोन

खोले चाहै छी रंग-रभसक बात सब
मुदा कोना खोलियैकमोने भेल अछि मौन

'गुंजन' छै लोढ़ैत,गजल बहार बैसल
आहां रहू अहिना ऐकातकानि करू होम

गुंजन श्री