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सोमवार, 28 नवंबर 2011

मायक भूमि बजा रहल अछि


जुनि हमरा जकरु महामाया, मायक भूमि बजा रहल अछि
जाहि माटिकेँ  देह बनल हमर, ओमाटि  बजा रहल अछि

रुन-झुन संगी-साथीक हमरा, इआद बहुत सता  रहल अछि
काका-ककिक मधुर वोल, कानमे घंटी बजा रहल अछि

जुनि हमरा जकरु महामाया, मायक भूमि बजा रहल अछि
सोंधी-सोंधी मुरहीक खुशबू, गामक हमरा खीच रहल अछि

कनियाँ-काकीक कडकड कचड़ी, मोनकेँ  डोला रहल अछि
लहलह झुमैत खेतक धान, शीश हिला कए  बजा रहल अछि

चौरचन, छठिक सनेसक स्वाद, हमरा कचोति रहल अछि
हुक्का-लोलिक उक जे फेकल, सुमैर हमरा कना रहल अछि 

नहि  सहिसकैत छी दुरी एतेक आब, ह्रदय-बांध टूट रहल अछि
जुनि हमरा जकरु महामाया, मायक भूमि बजा रहल अछि

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 जगदानन्द झा 'मनु'


कविता-एक दिन हमहूँ मरब


एक दिन हमहूँ मरब
दुनियाँ कए सुख-दुख छोइर कए
निश्चिन्त हेवा हेतु
देखै हेतु दुनियाँ में अपन प्रतिमिम्ब
कए ख़ुशी होइए कए दुखी होइए
एक दिन हमहूँ मरब
देखै लेल समाज में
हमर की स्थान छल
देखै लेल किनका ह्रदय में
हमर की स्थान छल

एक दिन हमहूँ मरब
करए लेल अपन पापक हिसाब
हमर पाप सँ कए कुपित छल
कए क्रोधित छल
कए द्रविल-चिंतित छल
कए खुसी छल
कए दुखी-व्यथित छल

एक दिन हमहूँ मरब
परखै हेतु अपन ह्रदय
अपन स्नेही-स्वजनक ह्रदय
अपन मितक ह्रदय
अपन अमितक ह्रदय
*** जगदानंद झा 'मनु'
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कविता-पाई


आई पाई सँ प्यार
खरीदल जाएत छैक
सम्मान खरीदल जाएत छैक
वस् ! जेबी में हेबाक चाहि
पाई
हमरा नहि चाहि
ई पाईयक दुनियाँ
हमरा नहि चाहि
ई भाराकए दुनियाँ

हम तs वसायव्
अपन एक नव आशियाँ
जाहिठाम प्यार कए अहमियत होई
सम्मान कए पूजा होई
जाहिठाम
ठोड पर हँसी लावैक लेल
ह्रदय सँ आह! नहि निकलै
शब्द बजैक सँ पाहिले
लाबा में नहि बदलै
जाहिठाम
अर्थ कए अर्थ समझल जाए
सबके भीतर
एक प्यारक आशियाँ
बसायल जाई |
*** जगदानंद झा 'मनु'
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गजल (१), जगदानन्द झा 'मनु'


सुगँध सँ सराबोर सुगन्धित सुंदर सजनी सुगँधा
आबि हमर ह्रदय बसली अदभुत सुंदरी  सुगँधा 

जिनक सुगँध चहुदिस नभ-थल कए कण-कण में 
हमर रोम-रोम में  वसल छथि प्राणेश्वरी  सुगँधा 

सुर केँ श्याम जएना  राधाक नटवर मुरली वजैया
ओ छथि समाएल हमर श्वाँस-श्वाँस मे सगरी सुगँधा

जिनक निसाँ   में रचलहुँ हम सुर-सुगन्धित  सुगँधा 
ओ छथि हमर ह्रदय केँ रानी प्राण में बसली सुगँधा 

ध्यानमें मानमें जिनकर आनमें अर्पित अछि 'सुगँधा'
भूल हुए तँ मानियों  जाएब 'मनु' कए  सजनी सुगँधा

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२१) 
जगदानन्द झा 'मनु'

शनिवार, 26 नवंबर 2011

हमरा मिथिला राज चाही


भीख नहि अधिकार चाहीहमरा मिथिला राज चाही 
जे हमर अछि खूनमे  खूनक अधिकार चाही 

जनक वाचस्पतिकेँ पुत्र हमहमर चुप्पीकेँ नै किछु आओर बुझू
शांतचित्त हम समुद्र सनहमर क्रोधकेँ सोनित चाही 

सिंह सन हम बलवान रहितोमेघ सन हम शांत छी 
 जुनि बिसरी ऊधियाइत मेघकेँमुठ्ठीमे संसार चाही

जाहि कोखिसँ सीता छथि जनमलओहि कोखिक संतान छी 
बाँहिमे प्रज्वलित अछि अग्णिबस एकटा संकेत चाही 

भूखसँ व्याकुल छी,   मुदा उठाएब नहि फेकल टुकड़ी 
कर्ण बनि जे नहि भेटल ममता केर अधिकार चाही

माए मैथिली रहती किएक,  निसहाय एना एतेक दिन 
होम करे जे तन मन अप्पन 'मनु' लव कुश सन संतान चाही
जगदानन्द झा 'मनु'