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शनिवार, 10 दिसंबर 2022

हमरा तँ चिन्हते होएब ?

आइ भोरे भोर एकटा अजोध वयोवृद्ध मैथिली साहित्यकार, गीतकार सो कॉल ग़ज़लकारकेँ फ़ोन आएल- “ट्रीन ट्रीन ट्रीन….”
हम- “हेलो”
उम्हरसँ- “के ? मनु।”
हम– “जी”
उम्हरसँ खूब खिसीयाति- “ई की अहाँ सभ फ़ेसबुकपर उल्टासिधा लिखैत रहै छी ? एक दू, एक दू। हम सब तँ भरि ज़िंदगी घास छिललौं।”
हम – “अपने के ?”
उम्हरसँ- “हम सा रे गा मा, हमरा तँ चिन्हते होएब ?”
हम – “हाँ”
उम्हरसँ- “कतेक ?”
हम – “जतेक अहाँ हमरा चिन्है छी।”
की ओ झट फोन राखि देला।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शनिवार, 3 सितंबर 2022

सरकारी नौकरी

"गै दाई ! लाल कक्का, ई करीक्का वऽर कतएसँ  लअ अनलनि ?"
"रहअ दहक ! सुनलह नै जे काम पियारा की चाम पियारा, ई करीक्का सरकारी नौकरी करै छै।"
✒ जगदानन्द झा 'मनु' 


शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

बेटाक बाप


        "ई जे भरि दिन नेतागिरीमे लागल रहै छी कि एहिसँ पेट भरत? चलू अप्पन पेटक आगि तँ जेना तेना मिझा लेब कनिक बेटीक ब्याहो केर चिंतासँ तँ डरू । भेल तँ ३-४ वर्खमे ओकरो ब्याह करए परत, ओहु लेल १०-१५ लाख रूपैया चाही ।"
         "केहेन गप्प करै छी ? आब ओ ज़माना नहि रहलै । बेटा आ बेटीमे फराके की? जेना बेटाक पढ़ाइ-लिखाइ लालन पालनमे ख़र्चा तेँनाहिते बेटीमे । बेटी बेटासँ कतौ कम नहि । आ हम्मर बेटी तँ लाखोमे एक अछि ।"
         "ई अहाँ बुझै छीयै मुदा समाजमे दहेज लोभी बेटाक बाप नहि ।"
© जगदानंद झा 'मनु' 

रभसल

"धूर भौजी ! अहुँ बड़ रभसल जकाँ किनादन करैत रहै छी ।"
"यौ लाल बाबु रहै दियौ, जँ हम एना रभसल जकाँ नहि करितौँ तँ, ई जे कोरामे भतिजाकेँ लदने रहै छी से मनोरथ अहाँक भैया बुते तँ रहिए गेल रहिते ।"
© जगदानंद झा 'मनु' 

मामासार (बीहनि कथा)


मामा आ सार पर केखनो विश्वास नहि करी । इतिहास गबाह अछि । नहि कोनो मामा भगिना के भेलै आ नहि कोनो सार बहिनोइ के भेलै । कंस, शकुनि, बंगाल रियासत केर बादशाह सिराजुदौल्लाक सार(मिर कासीम आ मिर साकी) , जायचन्द आ एहेन एहेन कतेको मामा आ सार घर-घरमे नुकेएल अछि । 
एकटा पूरान फकरा छै, जखन गिदड़के मौत अबै छै तँ ओ शहर दिस भागैत अछि । एहि फकराके आब एना बूझल जेए, जखन कोनो मनुखके बिपैत आबै बला होइ तँ ओ सासुर क भगैए वा सारके पोसैए । सार आ गहुमन साँपमे कोनो फराक नहि । ई दुनू कखन डैस लेत बिधने बुझता । आ जूएस गहुमन भेला मामा । (ई खालि हमर मंतव्य अछि जरूरि नहि जे अहुँ एकरा मानी । मामा अहाँके सार अहाँके जीवन अहाँके मर्ज़ी अहाँकेँ । हम तँ मात्र इतिहास आ अपन मंतव्य शेयर केलहुँ । 😊😊😊)
© जगदानंद झा 'मनु' 

मंगलवार, 21 जून 2016

सोहागिन

हल्द्वानी, हम आ सा । क़ब्रिस्तान पार कय क' हम दुनू पहाड़क उपर चढ़ैत, समतल जगह ताकि पार्ककेँ एकटा वेंचपर बैसि, देहक गर्मीकेँ कम करैक हेतु बर्फमलाइ (आइस्क्रीम) कीन खेनाइ शुरू केलौंहँ ।
दुनू गोटा अप्पन अप्पन आधा बर्फमलाइ खेने होएब कि, सा "जँ हम अहाँक सामने मरि गेलौं तँ हमर सारापर चबूतरा बना देब ।"
मेघ धरि उँच उँच पहाड़, चारू कात प्राकृतिक सौंदर्य, मखमल सन घास, स्वर्गसन वातावरण, बर्फमलाइ केर आनन्दक बिच अचानक एहेन गप्प सुनि, बर्फमलाइ हमर मुँहसँ छूटि हाथमे ठिठैक गेल । कनिक काल सा केर मुँह पढ़ैक असफल प्रयास केलाक बाद; "अवस्य एकटा नीक चबूतरा । जँ हम पहिने मरि गेलौं तँ एतेक व्यवस्था ज़रूर कय जाएब जे एकटा नीक चबू.... "
बिच्चेमे सा हमर मुँहकेँ अप्पन हाथसँ दाबैत, "नीक नहि साधारणे चबूतरा मुदा अहाँक हाथे आ ओहिपर लिखल हुए "सोहागिन सा" ।
@ जगदानन्द झा 'मनु'

प्रेम

गुदड़ी बाजारक भीड़ भाड़सँ निकलैत, एकटा दुकानक आँगा टीवीक आबाज सुनि डेग रूकि गेल । टीवीसँ अबैत ओकर अबाजे टा सुनाइ द' रहल छल । ओकर देह नहि देखा रहल छल मुदा अबाजेसँ ओकरा चिन्हनाइ कतेक आसान छै ।
आइसँ तीस वर्ष पहिने, हमरे संगे संग नमी वर्ग धरि पढ़ै बाली, सुन्दर, चंचल मात्र मूठ्ठी भरि डाँड़ बाली सु.....
"कि प्रेम इहे छैक की मात्र देहक प्रजनन अंगपर एकाधिकार बना कय राखैमे सफल भेनाइ?"
@ जगदानन्द झा 'मनु

बेगरता

दोसर मुँहेेँ करोटिया दय सुतल मकेँ अपना दिस घुमाबैत - "धूर जाउ ! कोना मुँह घूमेने सुतल छी, दस मिनट पहिने अप्पन बेगरता काल बिसरि गेलियै कोना जोँक जकाँ सटल छलौं।"

अगिला जनम

“डाँड़ टूटल जाइए भरि राति सूतलहुँ नहि बड़ तंग करै छी, अगिला जन्ममे अहाँ हिजड़ा होएब जे कोनो आओर मौगीकेँ एना तंग नहि कए सकब।”
“ठीक छै ! अगिला जन्म अगिला जन्ममे देखल जेतै, एहि जन्मक आनन्द तँ लए लिअ। आ अगिला जन्ममे ओहि हिजड़ाक ब्याह जँ अहिँक संगे भए गेलहि तँ ।"
© जगदानन्द झा 'मनु' 

मुँहझौँसा

“गै दैया ! एतेक आँखि किएक फूलल छौ ? लगैए राति भरि पहुना सुतए नहि देलकौ।”
“छोर, मुँह झौँसा किएक नहि सुतए देत, अपने तँ ओ बिछानपर परैत मातर कुम्भकरन जकाँ सुति रहल आ हम भरि राति कोरो गनैत बितेलहुँ।”

एसगर - प्रेम बीहनि कथा

बासोपत्ती बस अड्डा। बाउकेँ दिल्ली जेए बला ट्रेन दरभंगासँ पकरैक छलै । बासोपत्तीसँ दरभंगाक धरिक यात्रा बससँ । बसक इन्तजारमे बाउ एकटा लगेज हाथमे नेने ठाड़ । ततबामे सुधा अफसीयाँत भागि कय आबि बाउ लग ठाड़ होति, टूकुर टूकुर ओकर मुँह तकैत । दुनू आँखिसँ नोर निकलि सुधाकेँ गाल होति गरदनि धरि टघरि गेल ।
बाउ - "तु एतेक कनै किएक छेँ?"
सुधा बाउ केर दुनू हाथ खीच, ओकर हाथपर अपन मुँह रखैत, "हम कहाँ कनि रहल छी।"
ओकरा उदास आ कनैत देखि बाउ दूटा बस छोरि देलकै ।
"हमरो ल' चलू, अहाँ बिनु हम एहिठाम नहि जी सकब । ओहीठाम हम सबकेँ कहबै जे हम अहाँक नोकरानी छी । अहाँक नेनाकेँ खेलाएब, घरमे पोछा लगाएब, बर्तन धोब ।"
ई कथन छल एकटा बिधबा माएक जेकर बेटा दिल्ली बाली संगे ब्याह कय दिल्लीए बसि गेल छल आ माए एसगर गाममे ।
@ जगदानन्द झा 'मनु'

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

नेनाक छवि

दिनानाथ बाबूक बहरीया बेटा पुतहु अपन १२ बरखक पोती संगे बहुत बरखक बाद कोनो विशेष अबसरपर  गाम एलाह दलानपर, अपन पारम्परिक पोषाकमे  दिनानाथजी हुनक बेटा जीन्स पेंट टीशर्ट पहीर बैशल। ताबतेमे  एकटा बयोवृद्ध, गामक सम्बन्धमे दिनानाथ जीक काकाक आगमन भेलनि हुनका बैसक उचित स्थान देला बाद दिनानाथ जीक पुत्र हुनक पएर छूबैत,  "गोर लगै छी बाबा।"
" खूब नीके रहू।"
"कतए रहै छी?"
"दिल्लीमे "
"हमरा तँ अहाँ सभकेँ देखलो कतेको बरख भए गेल।" कनीक काल चूप रहला बाद, "ब्याह  भए गेल की ?"
प्रश्न बाबा हुनक वस्त्र कि  हुनक नहि बुझाइत बएसकेँ कारण पुछलखिन। अपन चॉकलेटी शरीर ड्रेससँ एखनो २५ बरखसँ बेसीक नहि बुझाई छला।
"सृष्टी, सृष्टी……" बाबाक प्रश्न सुनिते, कोनो उत्तर देबैक  जगह   सृष्टी, सृष्टी केर अबाज दिनानाथजी देलनि। अबाज सुनि आँगनसँ हुनक १२ बरखक चंचल पोती 'सृष्टीदौरते आएल।
दिनानाथजी   सृष्टीसँ बाबा दिस इसरा कए, "बाबाकेँ  गोर लगियौन्ह।"
सृष्टी चट्टे झुकि, बाबाकेँ गोर लागि आशीर्वाद लेलनि। दिनानाथजी, बाबासँ, " हिनक बेटी भेलखीन।"
बाबा, सभ गाममे रहथि तहन ने, हमर नजरिमे तँ एखनो ओहे १८-२० बर्ख पहिने देखल नेनाक छवि बसल अछि। केखन समयक संग जबान भेल, ब्याह भेलै, बेटी सेहो एतेकटा भए गेलै। मुदा हमर सबहक आँखिक छवि……"
कहैत बाबा मौन भ’ गेला। 
*****

जगदानन्द झा ‘मनु’ 

गाछो सभ गाम जाइ छै


लगभग ८०-८५ किमीकेँ  गतिसँ चलैत ट्रेनकेँ बॉगीमे बैसल एकटा पूर्ण परिवार।   ओहिमे सँ एकटा तीन बरखक नेना जेकी शाइद पहिल बेर अपन ज्ञानमे ट्रेनक  यात्रा कए रहल छल   खिड़कीसँ बाहर देखते देरी खुशीसँ चहैक बाजल, "पापा यौ पापा, देखियौ गाछो सभ गाम जाइ छै "    

शनिवार, 14 सितंबर 2013

भगवानकेँ जे नीक लगनि


बाबा भोलेनाथक विशाल मन्दिर। मुख्य शिवलिंग आ समस्त शिव परिवारक भव्य आ सुन्दर मूर्ति। साँझक समय एक-एक कए भक्त सब अबैत आ बाबाक स्तुति वन्दना करैत जाएत। एकटा चारि बर्खक नेना आबि बाबा दिस धियानसँ देखैत। ताबएतमे एकटा भक्त आबि बाबाक सोंझाँ श्लोक, कर्पुर गौरं करुणाव

बुधवार, 4 सितंबर 2013

आँच

जिला अस्पताल। डा० श्रीमती देवी सिंह। पेशेंटकेँ शुक्ष्म परिक्षण कएला बाद परिक्षण कक्षसँ बाहर आबि कुर्सीपर बैसैत, सामने अपन कॉलेजक संगी सुधासँ, ई कि अहाँ तँ कहलहुँ सुटीयाक वर दू वर्ख पहिने मरि गेल छै मुदा ओ तँ तीन महिनाक गर्भसँ अछि।
से कोना ! हमरा तँ ओ कहलक ब्लडींग बेसी भए रहल छै, तेँ हम ओकरा लए कऽ अहाँ लग आबि गेलहुँ नहि तँ हमरा कोन काज छल एहि पापक मोटरीकेँ लए कऽ एतए आबैकेँ
से कोनो नहि, कएखनो-कएखनो कए एना हैत छैक। गर्भ रहला उतरो संजम नहि कएलासँ ब्लडींग बेसी होइत छैक परञ्च पतिकें मुइला बादो ई गर्भ कतएसँ।
से की पता ई पाप कतएसँ पोइस लेलक मुदा ओकरो कि दोख बएसे की भेलैए मात्र बीस वर्खक बएसमे ओकर घरबला छोरि कए परलोक चलि गेलै। एहिठाम पच्चपन वर्खक पुरुखकेँ ब्याहक अधिकार छै मुदा ओहि समाजक लोक बीस वर्खक विधवाकेँ एहि अधिकारसँ बंचित केने अछि आ जखन आँच पजरतै तँ किछु नहि किछु पकबे करतै ओ चाहे रोटी होइ वा हाथ।

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

सेल्समेन


गामक दलानपर नून तेलक दुकान चलेनाहर, साहजी अपन मुस्काइत मुँह आ शांत स्वभावकेँ कारण गाम भरिमे सभक सिनेहगर बनल मुदा किछु गोटे हुनकर एहि स्वभाबकेँ कारणे हुनका हँसीक पात्र बनोने। आइ साहजी अपने किछु काजसँ बाध दिस गेल। दुकानपर हुनकर १४ बर्खक बेटा समान दैत-लैत। एकटा बिस्कुट चकलेटक सेल्समेन साइकिल ठार करैत साहजीक बेटासँ, की रौ बौआ तोहर पगला बाबू कतए गेलखुन्ह।

बुधवार, 7 अगस्त 2013

माँछक महिमा

साँझक छह बजे पशीनासँ तरबतर सात कोस साईकिल चला कए अ०बाबू अपन बेटीक ओहिठाम पहुँचला हुनक साईकिल केर घंटीक अबाज सुनि नाना-नाना करैत हुनक सात बर्खक नैत हुनका लग दौरल आएल अपन पोताक किलोल सुनि अ०बाबूक समधि सेहो आँगनसँ निकैल दलानपर एला दुनू समधि आमने सामने-
“नमस्कार समधि।”

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

बीमारी




आइ साँझू पहर सा०केँ हुनक भाए संगे गामक लेल बिदा कएला बाद हम सिगरेट खरीदक इक्षासँ अप्पन घर प्रथम तलसँ निच्चाँ उतरलहुँ किएक तँ राति भरि लेल जे सिगरेट बचा कए रखने छलहुँ आजुक राति पर्याप्त नहि होएत।
“शराब ! अओर.... नहि, सिगरेटसँ काज चलबअ परत।”
हमर शरीर एहिठाम परञ्च मोनक चिड़ै सा०केँ पाछू पाछू। हमर मोन कनिको नहि लागि रहल अछि। राति भरि आँखिमे नीन्न नहि। बर्खाक पट-पटकेँ स्वर कानमे बम जकाँ फाति रहल अछि। दूर सड़कपर चलैत गाड़ीक अबाज ओनाहिते सुनाइ दए रहल अछि। केखनो केखनो मच्छरक संगीत संगे बाहर नालीसँ फतिंगाक गाबैक अबाज, जे शाइद झींगुर हुए अथवा कोनो अओर। कीट फतिंगाक अबाज चिन्हैमे हम बड्ड नीक नहि। भोरे आठ बजे उठै बला आइ पाँचे बजे उठि कए धियापुताकेँ इस्कूल जेए लेल जगाबैए लगलहुँ। धियापुता नित्य क्रियामे लागि गेल आ हम सोचए लगलहुँ, “एसगर एना कतेक दिन, ई तँ बीमारी छी, सा०केँ बिन नहि रहैक बीमारी।”    

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

नजरि मिलाबए जोगरक



भोरे भोर मोबाइल फोनक घंटी, “ट्रिन ट्रिन.....!
दीनानाथजी फोनक स्क्रीनपर देखलनि, हुनकर छोटकी भाबौक फोन, आमने सामने एक दोसरसँ गप्प नहि होइ छनि मुदा फोनपर जरूरी गप्प आ समादसँ परहेज नहि।
हेलो।
भाइजी, नास्ता करैक लेल आबि जाऊ।
नास्ता तँ हम कए लेलहुँ।
की सब केलहुँ।
रातिक तरकारी बचल छलै, दूटा रोटी आ चाह बना नेने रही।

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

अन्तिम प्रेम

                                                                                     
कनाट प्लेस। कॉफी हॉउसक आँगन कएकरो इंतजारमे टाइम पास करैत कॉफीक चुस्कीक आनन्द लैत। हमर सामनेक खाली कुर्सीपर करीब १५ बर्खक कन्याँ आबि बैसैत, “अहाँकेँ खराप नहि लगे तँ हम बैस रही।”
“किएक नहि।”
ओ बातूनी कन्याँ एकपर एक सबाल दागैत, “लगैए अहाँ कोनो MLM बिजनेसमे छी।”
“हाँ।”
“ओ माइ गॉड, MLM हमर फेबरेट विषय अछि। हम बारहवीँमे पढ़ै छी, हमरो इक्षा अछि जे ग्रेजुएशनकेँ संगे MLM बिजनेस कए कऽ टाइम फ्रीडम आ मनी फ्रीडम पाबी।” पता नहि अओर की की बतियाइत ओ बातूनी अंतमे हमरा थेंक्स कहि ओहिठामसँ चलि गेल।

ओकर गेलाक बाद हमर भीतरक शैतान जागल, “हमर अंतिम अवस्थामे, हमर अंतिम प्रेमक अंतिम नाइका कोनो एहने १५-१६ बर्खक बातूनी हेबाक चाही।”