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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

कृष्ण कन्हैया

Bal kavita_231
कृष्ण कन्हैया

कृष्ण कन्हैया रास रचैया
माखन-मिश्री लाउ कने
खेल करै लए गोपी संगे
हमरो आंगन आउ कने
मारि गुलेंती फोरब मटकी
टोली अपन बनाउ कने
गाय चरेबै भोरे-साँझे
वंशी फेर बजाउ कने
ता थइ ता थइ नाच करब
ग्वाल-बाल संग आउ कने
पोखरिमे जा खूब नहाएब
छुट्टी सरसँ दिआउ कने

सोमवार, 26 मई 2014

बाल कविता : होली एलै

होली एलै होली एलै
सबहक मोनमे खुशी जगेलै
रंग बिरंगक सपना अछि अनने
वसन्तक हबा संग झूमि एलै।

सीरक तोसक दूर भगा कए
डारि पातकेँ हरियर केलक
अँगना दौढ़ीमे फूल फुला कए
चाहुदिस हँसैत होली एलै।

धिया किनलनि फुचुक्का
नेना रंग आओर गुलाल
हाट बाजारमे हल्ला भेल छै
सबतरि भरल अबीर लाल गुलाब।

केकरो माथमे अबीर भरल अछि
केकरो मुँह मलल अछि रंग
केकरो हाथ मलपुआ भरल
कियो पिबैत भरि लोटा भंग।
©जगदानन्द झा ‘मनु’

गुरुवार, 22 मई 2014

हमर अभिलाषा

हम तँ बनब किसान देशकेँ
अथवा बनब जवान देशकेँ।


माएक भूमिपर मऽरै बला
सत्य कर्म हिम्मत बला
दुश्मनकेँ हम मारि भगाएब
हिम्मत अपन सभकेँ देखाएब
सोचल नै केखनो अनकर होएत
जखन हम देशक जवान होएब।

तनपर वर्दी होएत जखन हमर
मृत्युओ जीवन होएत हमर
अन्तिमो छनमे प्राण दए कऽ
देशकेँ नै हारब हम जी कऽ
छुल-छुल दुश्मन मूतत देख कऽ
जखन हम चलब सीना तानि कऽ।

हम तँ बनब किसान देशकेँ
अथवा बनब जवान देशकेँ।


घर-घर दाना पहुँचाएब अन्नकेँ
पुत्र बनि कए हम माएक भूमिकेँ
खून पसीनासँ धरतीकेँ पटाएब
कखनो नै मोनमे आलस लाएब
अन्न करब उपजा हम मनसँ
सजाएब सभटा सपना हम तनसँ।


प्रकृतिकेँ आगू नै हम झूकब
कर्म अपन हम निरन्तर करब
माँथ अपन ऊँच उठा कऽ
कहबै सभकेँ शान देखा कऽ
हम तँ छी किसान देशकेँ
कर्म जएकर सेवा खेतकेँ।


हम तँ बनब किसान देशकेँ
अथवा बनब जवान देशकेँ।
©जगदानन्द झा ‘मनु’

बुधवार, 21 मई 2014

बाल कविता : छुट्टी भऽ गेलै

टन टन टन टन घंटी बजलै
धिया पुताकेँ मनमा दोललै
मौलाएल मुँह झट हँसि गेलै
हजारो कमल जेना संग फूलि गेलै
हाथमे झोड़ा लए कऽ दौड़ल
खुशीसँ मोनमे दही पौड़ल
नै छै चिंता काल्हि की हेतै
नै छै चिंता आइ की हेतै
सबहक मोनमे खुशी छै ऐकेँ
छुट्टी भऽ गेलै आइ इस्कूलकेँ
छुट्टी भऽ गेलै छुट्टी भऽ गेलै
आइ इस्कूलकेँ छुट्टी भऽ गेलै
@ जगदानन्द झा ‘मनु’

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

प्रकृति


प्रकृति अहाँक कोरामे
की-की नुकाएल अछि नै जानि
देखी नजरि उठा कए जतए
नव-नव रंग-विरंगकेँ पानि

नुकाएल अनन्त ब्रम्हान्ड अहाँमे
कोटी-कोटी ग्रह नक्षत्र धेने छी
हमर मोनकेँ अछि जे हरखैत
एहन जीव चौरासी लाख धेने छी

श्यामल सुन्नर साँझक रूप
रौद्ररूप धारण अधपहरमे कएने
नव यौवन केर सभटा सुन्नरता
भोरक छविमे अहाँकेँ पएने

जाड़ गर्मी बरखा वसन्त
चारि अवश्था वरखक अहाँकेँ
माए जकाँ हमरा लोड़ी सुनबैत अछि
अन्न-धन दैत सभकेँ ई रूप अहाँकेँ
*****
जगदानन्द झा 'मनु'

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

मेघ राजा जल्दी आ

बाल कविता-86
मेघ राजा जल्दी आ

मेघक राजा जल्दी आ
बाल्टी भरि भरि पानि ला
सुखलै आम, मौलाएल लताम
मरल जन्तुकेँ आबि जिया
मेघक राजा जल्दी आ

मंगलवार, 14 मई 2013

चोर

गाममे एलै एकटा चोर
किओ नै देखै ओकर गोर*
हवा बनि कऽ आबै छल
सबहक घरमे घूसै छल
दिन देखै नै राति आ भोर
चोरबै छल ओ सबहक नोर
सबकें खूब हँसेने जाए
तामस दूर भगेने जाए
नाम छल ओकर हँसी-खुशी
बचल नै गाममे किओ दुखी

*गोर = पएर
अमित मिश्र

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

बाल कविता-परी रानी

हे परी रानी, परी रानी
चोकलेट खूब पठा दिअ
दू पाँखि, उजरा कपड़ा दऽ
अपने सन हमरो बना दिअ

सपनामे आब एनाइ छोड़ू
सदेह कोनो ठाम देखा दिअ
चान-तरेगण वा निज नगरी
उड़नखटोलापर संगे घुमा दिअ

जादू कए किछु खेल देखा कऽ
मोनक उपवन गमका दिअ
धरतीपर एक बेर आबि कऽ
दुखक सागर सुखा दिअ

अमित मिश्र
*फोटो हमर छात्रा प्रीती झा(ज्ञान भारती पब्लिक स्कूल, दरभंगा ,वर्ग-5)क अछि ।हमरा नीक लागल, आशा अछि अहूँकें नीक लागत ।

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

सब लागल काजमे


सुक्खल झट्टा, कोकनल लकड़ी
झट्टा खा गेल उजरी बकरी
लकड़ीपर दौड़ै छै मकरी
एखन बिएलै बाछी सुनरी
पीबै मोन भरि पियर गदरी
कौआ भागल देख कऽ बदरी
सोझराबै खोंताक सब ओझरी
सुग्गा लऽ राम-नामक मोटरी
भोरे-भेर खोलै छै गठरी
अन्हारक घेंट लगेने फँसरी
सूरज दादा घुमथि सब नगरी
सब लागल काजमे एबरी
हमहूँ उठाएब पोथीक मोटरी
मुदा भूखसँ गुड़गुड़ करै अँतरी
तें पहिने खा लै छी कचरी

अमित मिश्र

सोमवार, 18 मार्च 2013

हमहूँ जेबै बरियाती

बाल कविता-19

हमहूँ जेबौ बरियाती

मामाक विआह छै, एथिन मामी
आनी-मूनी हम किछु नै जानी
नै गुड़िया लेबौ, नै लेबौ हाथी
बनि लोकनियाँ हमहूँ जेबौ बरियाती

चानन-ठोप लगा कऽ हमरो सजा दे
चुरीदार पैजामा, उजरा कुर्ता सिया दे
हमरो चुमा दे, आबि कऽ नानी
किछु भऽ जाए, जेबौ बरियाती


http://navanshu.blogspot.com/2013/03/blog-post_18.html

अरिछन-परिछन हमरो सब करतै
बड दुलारसँ रसगुल्ला, खीर खुएतै
कोरामे बैसा दुलार करतै मामी
आइ नै मानबौ, जेबौ बरियाती

नै आगू हेतौ तँ पाछुए बैसबौ
मिसियो नै आब बदमाशी करबौ
नै मानबें तँ रूसि बैसबौ बाड़ी
गाड़ियोपर लटकि, जेबौ बरियाती

अमित मिश्र

बिल्लो मौसी बड खुरलुच्ची (बाल कविता)

बिल्लो मौसी छै बड खुरलुच्ची
पी गेल दूध, खा गेल लुच्ची
फोड़ि देलक पैसा बला चुक्की
आतंक मचेलक घरमे बुच्ची

चारि-पाँच मोछ ठाढ़ सुइया सन
मूस राजासँ रहै छै अनबन
अटकि-पटकि दै बर्तन-बासन
जियान केलक भरि मासक राशन

चमकै आँखि चमचम चमचम
म्याँऊ-म्याँऊ केर सदिखन सरगम
तोड़ि दै नीन्न खसि-खसि धम्म
बड़का खुरलुच्ची छै बिल्लो बम

अमित मिश्र

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

बाल कविता : कोना टूटतै जामुन ?


कारी तोहर रूप छौ जमुनी तैयौ लागें बहुते मीठ
ई चिड़ैयाँ नै जामुन खसबै सतमे ई छै बहुते ढीठ
कतबो ढेला फेकै छी तैयौ ठीक ठाढ़ि धरि पहुँचै नै
कोनो ठाढ़िपर जा कऽ लटकल, घूरि कऽ ढेला आबै नै
लग्गी लटकल, ठेंगा लटकल, लटकल बहुते चप्पल
मोन हकमल, घामे-पसिने, तैयो जामुन नै भेटल
कोना टूटतै गाछसँ जामुन ? भारी सबाल बनल अछि
तखने एकटा छौड़ा बाजल, ई तँ बहुत सरल छै
आश लगेने बैसै जाइ जो, बिछा कऽ चट्टी बोरा
जखने सिकहत अदृश्य हवा, तँ खसतै झोराक झोरा

अमित मिश्र

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

होएत जँ



हाथक मुरली हमर खुरपी बनल
गोबरधन बनल अछि ढाकी,
प्रजा हमर सभ हराए गेल
माए बनल अछि बूढ़ीया काकी।

एखनो हम गाए चरबै छी
प्रिय नहि लम्पट कहबै छी,
इस्कूलक फीस दए नहि सकलहुँ
तैँ हम चरवाहा कहबै छी।

हमर गीतक स्वर महीसे बुझैत अछि
वा खेतक हरियर मज्जर, सुनि झुमैत अछि
 हमर बालिंग नही  लोक देखने अछि
भरि गामक बासनपर  लिखल अछि।

के लऽ गेल यमुनाकेँ दूर एतेक
जँ कनिको नाम हुनक हम जनितहुँ
हाथ जोड़ि दुनू विनती करितहुँ
यमुनाकेँ हुनकासँ हम माँगितहुँ।

हमरो गाममे जँ यमुना बहैत
विषधर कलियाकेँ हम नथितहुँ,
मुरली बजा कए गैया चरबितहुँ
यमुना कातमे हम नचितहुँ।

होएत जँ  हमरो माए यशोदा
सभक प्रिय हम बनितहुँ
होएत जँ दाऊ भाइ हमर
कतेक बलशाली हम रहितहुँ।
*****

जगदानन्द झा 'मनु'