गर्मीक दिन छल, साँझक समय। ऐहन
समयमे डूबैत सूरूजक दृश्ये किछु अजीब होएत अछि ,जेना किछु व्याकुल, किछु
उदास-सन,
किछु कहैत मुदा चुपे -
चाप सूरूज डूबि रहल छल । साउनक मासमे गंगाक कातसँ अथाह पानिक पाछाँ सूरूज डूबबाक
चित्रे मोनमे कए तरहक प्रश्न प्रकट कऽ दैत
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शनिवार, 3 अगस्त 2013
प्रेम : वरदान वा अभिशाप
सोमवार, 24 जून 2013
गजल
गजल
हम हाल की कहौँ आब बेहाल अछि
बड्ड कठिनसँ बीतल ई साल अछि
जानि नै मृत्यु हाएत केहन हमर
जीबैत जिनगी बनल जंजाल अछि
भ्रष्ट्राचारक गप्प जुनि करु भाइ यौ
नेता अफसर घूसलऽ नेहाल अछि
खूब मजा करु जा धरि अछि जिनगी
काल्हि लऽ जेबाले बैसल उ काल अछि
साँच बाजनिहार नै अछि कोनो ठाम
यौ फूसिक व्यापारमे बड्ड माल अछि
कलपै कानै भीतरे भीतर 'मुकुन्द'
प्रेममे सभक होएत ई हाल अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 14
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
हम हाल की कहौँ आब बेहाल अछि
बड्ड कठिनसँ बीतल ई साल अछि
जानि नै मृत्यु हाएत केहन हमर
जीबैत जिनगी बनल जंजाल अछि
भ्रष्ट्राचारक गप्प जुनि करु भाइ यौ
नेता अफसर घूसलऽ नेहाल अछि
खूब मजा करु जा धरि अछि जिनगी
काल्हि लऽ जेबाले बैसल उ काल अछि
साँच बाजनिहार नै अछि कोनो ठाम
यौ फूसिक व्यापारमे बड्ड माल अछि
कलपै कानै भीतरे भीतर 'मुकुन्द'
प्रेममे सभक होएत ई हाल अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 14
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
जहियासँ अपन घर नाहि अछि
तहियासँ केकरो डर नाहि अछि
मोनक बात केकरा कहब आब
ऐहि ठाम कियौ हमर नाहि अछि
वियोगे हमतऽ कलपौँ असगर
अहाँ पर कोनो असर नाहि अछि
सास-पूतोहमे कलह मचल छै
बाँकी ऐहिसँ कोनो घर नाहि अछि
माँग बढ़ल दहेजक चहुँ दिस
आदर्श वियाहक वर नाहि अछि
सभ ठाम दंगा पसरल 'मुकुन्द'
शीश सहित कोनो धड़ नाहि अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
गुरुवार, 16 मई 2013
गजल
रौद आ बिहाड़िसँ जे लड़ल अछि एहि ठाम
ओतबे गाछ पैघ भऽ बचल अछि एहि ठाम
भूखल छथि राति दिन जाहि लेल गरीब यौ
किनको खरिहानमे सड़ल अछि एहि ठाम
एहि टेक्निकल युगमे बी ए केने होएत की
एम ए कऽ गाम गाम पड़ल अछि एहि ठाम
जे विपत्तिमे धैर्य राखि लागल अछि काजमे
ओ नभमे चान बनि सजल अछि एहि ठाम
भ्रष्टाचारी शासनमेँ बीकल सरकारी सीट
चुप्पी मारि लोक घरे सूतल अछि एहि ठाम
गेल युग श्रवणकेँ माँ बापक कोनो मोले नै
बूढ़ पूराण पूतसँ डरल अछि एहि ठाम
(सरल वार्णिक बहर ,आखर -१७)
© "बाल मुकुन्द" ।।
गजल
मिललौँ अपन चानसँ भेल पुलकित मोन
बीतल पहर विरहक भेल हर्षित मोन
छल आँखि सागर ताहिसँ सुनामी उठल
बहलौँ तकर वेगसँ भेल विचलित मोन
बाजल तँ जेना बुझु फूल झहरल मुखसँ
ठोरक मधुर गानसँ भेल शोभित मोन
ओकर बढ़ल डेगसँ दर्द हरिया उठल
पायलक सुनते स्वर भेल जीबित मोन
प्रीतक तराजू पर तौललौँ धन अपन
विरहक दिया जड़ते भेल पीड़ित मोन
(बहरे सलीम, मात्रा क्रम २२१२-२२२१-२२२१)
© बाल मुकुन्द पाठक
शनिवार, 2 फ़रवरी 2013
गजल
गजल
पिया बिन ऐहि घर रहिये कऽ की करबै
विरह सन आगिमे जड़िये कऽ की करबै
अपन कनियाँ जखन कहि नै सकब हमरा
पिया करमे अपन धरिये कऽ की करबै
निवाला जखन नै भेटत तँ बुझबै दुख
गरीबक दुख अहाँ सुनिये कऽ की करबै
उड़ाबै देखि खिल्ली लोक हमरा यौ
समाजक बनि हँसी रहिये कऽ की करबै
जखन दर्दक इलाजेँ नै अहाँ लग यौ
तखन बेथा हमर सुनिये कऽ की करबै
बहरे हजज ,मात्रा क्रम १२२२ तीन बेर
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
पिया बिन ऐहि घर रहिये कऽ की करबै
विरह सन आगिमे जड़िये कऽ की करबै
अपन कनियाँ जखन कहि नै सकब हमरा
पिया करमे अपन धरिये कऽ की करबै
निवाला जखन नै भेटत तँ बुझबै दुख
गरीबक दुख अहाँ सुनिये कऽ की करबै
उड़ाबै देखि खिल्ली लोक हमरा यौ
समाजक बनि हँसी रहिये कऽ की करबै
जखन दर्दक इलाजेँ नै अहाँ लग यौ
तखन बेथा हमर सुनिये कऽ की करबै
बहरे हजज ,मात्रा क्रम १२२२ तीन बेर
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
गजल @ बाल मुकुन्द पाठक
आँखि सूतल छै मोन जागल कियै छै
गाछ सूखल छै पात लागल कियै छै
भटकि रहलौँ हम नौकरी लेल जुग मेँ
भाग भूटल छै आस लागल कियै छै
प्रेम मेँ हुनकर टूटि गेलै करेजा
शांत मन तैयोँ आगि लागल कियै छै
गाम रहि रहि केँ याद आबैत रहतै
मोन विचलित छै फेर भागल कियै छै
अपन पीड़ा बेसी बुझाएत तैयोँ
शीश काटल छै देह लागल कियै छै
राति दिन ई सोचैत बाजै मुकुन्दा
नाम ई ओकर आब पागल कियै छै
(बहरे खफीफ, मात्रा क्रम-२१२२-२२१२-२१२२)
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
साहीक कांट घटैत गेलै रुप सोहागक बरहैत गेलै
तेल आ बाती सठैत गेलै भूख प्रकाशक बरहैत गेलै
लूट काट दंगा फसादसँ समाज एतोँऽ बनल कुलषित
लोक जतै कटैत गेलै समाज सुधारक बरहैत गेलै
धर्मक व्यापार करै लोक एतोँऽ ठगै निज भेष बदलि कऽ
लोकक आस्था घटैत गेलै काज पंडितक बरहैत गेलै
छैन मातृभूमिक नै कोनो चिँता धन लेल ई नेता बनथि
आ मुद्रास्थिति खसैत गेलै गरीबी देशक बरहैत गेलै
लोक एतोँऽ अछि बनल हत्यारा बेटी जानि भूर्ण हत्या करै
स्त्रीक संख्या घटैत गेलै आ राशि दहेजक बरहैत गेलै
देखि सिनेमा बढ़ल फैसन देखूँ मिथिला यूरोप बनल
संस्कार कियै घटैत गेलै नग्नता देहक बरहैत गेलै
सरल वार्णिक बहर, वर्ण 22
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
जिनगीक सुख दुख कहैत अछि गजल
जगक सभ कोण मेँ रहैत अछि गजल
सुखी होए किओ वा चाहे होए दुखी भऽ गेल
प्रेमक सरस जेना बहैत अछि गजल
बेदर्द जिनगीमेँ बहैए नोरक सागर
दर्दक दबाइ ओतै बनैत अछि गजल
देखूँ अपन मिथिलाकेँ लोक समाज सभ
मैथलीयोँ मेँ तँ नीक बनैत अछि गजल
बेपर्द जिनगीके देखाबैत आछि अंग ई
आन्हरोँ के आँखि बनि रहैत अछि गजल
मोनक बात कहै बुढ़ कहै जुआन कहै
ओहि बात के धुन मेँ गढ़ैत अछि गजल
सरल वर्णिक बहर, वर्ण 16
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
गजल
दिल्लीँ मेँ भेल हिंसा आ बलात्कार पीड़िता के फोटो देख के मोनसँ अनायास निकलल किछु पाँति -
गजल
बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह
कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह
रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह
बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह
हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह
बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह
कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह
रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह
बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह
हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह
बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै
प्रेम मेँ जान जाएत चलि
तड़पि के मरब ई जहर छै
नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै
नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै
ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै
*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दी र्ध चारि बेर ।
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै
प्रेम मेँ जान जाएत चलि
तड़पि के मरब ई जहर छै
नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै
नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै
ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै
*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दी र्ध चारि बेर ।
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
हजल
हजल
देखियौ देखियौ जुग केहन भऽ गेलै कक्का यौ
टोपी चश्मा पहिर कऽ चलै छै छौड़ा उचक्का यौ
छमकि कऽ चलैए संगे नटुआ सन केश छै
जीँस टीशर्ट पहिर कऽ अंग्रेज भेल पक्का यौ
चौक पर घूमैत छै बोतल चढ़ा कऽ भोरेसँ
सिगरेटक दिन भरि ई उड़ाबै छोहक्का यौ
अपनाकेँ बड़का ई बुझैत अछि हीरो छौड़ा
मुहँ नै लगाबूँ एकरासँ अछि ई लड़क्का यौ
स्त्री जकाँ श्रृंगार करै छै लगाबैये ठोररंगा
भोरेसँ कटाके दाढ़ी मोछ लागे जेना छक्का यौ
छौड़ी पाछाँ पागल भेल छै काज धाज छोड़िकेँ
हुलिया एकर देखि कऽ मुकुन्द हक्काबक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण17
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
देखियौ देखियौ जुग केहन भऽ गेलै कक्का यौ
टोपी चश्मा पहिर कऽ चलै छै छौड़ा उचक्का यौ
छमकि कऽ चलैए संगे नटुआ सन केश छै
जीँस टीशर्ट पहिर कऽ अंग्रेज भेल पक्का यौ
चौक पर घूमैत छै बोतल चढ़ा कऽ भोरेसँ
सिगरेटक दिन भरि ई उड़ाबै छोहक्का यौ
अपनाकेँ बड़का ई बुझैत अछि हीरो छौड़ा
मुहँ नै लगाबूँ एकरासँ अछि ई लड़क्का यौ
स्त्री जकाँ श्रृंगार करै छै लगाबैये ठोररंगा
भोरेसँ कटाके दाढ़ी मोछ लागे जेना छक्का यौ
छौड़ी पाछाँ पागल भेल छै काज धाज छोड़िकेँ
हुलिया एकर देखि कऽ मुकुन्द हक्काबक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण17
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ
सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ
खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ
किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ
बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ
हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ
सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ
खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ
किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ
बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ
हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै
रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै
मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै
पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै
मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै
रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै
मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै
पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै
मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
आइ हमर मोन बड्ड खनहन अछि
ककरोसँ हमरा तँ नै अनबन अछि
तरुआ तरकारी आ पापड बनि गेल
देखूँ चूल्हा पर भातो ले अदहन अछि
आसिन एलै बजरखसुआँ गर्मी गेलै
ठंढा ठंढा पुरबा बहै सनसन अछि
फेर दुर्गा मेला हेतै नाच आ लीला हेतै
देखूँ खुदरा पैसा बाजै झनझन अछि
घर परिवार मे तिहार के दिन एलै
अंगना मे चलैत नेना ढ़नमन अछि
कनिये दिनके तँ छै ई पावैनक मजा
कातिकक बाद तँ ऊहे अगहन अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
€€बाल मुकुंद पाठक
आइ हमर मोन बड्ड खनहन अछि
ककरोसँ हमरा तँ नै अनबन अछि
तरुआ तरकारी आ पापड बनि गेल
देखूँ चूल्हा पर भातो ले अदहन अछि
आसिन एलै बजरखसुआँ गर्मी गेलै
ठंढा ठंढा पुरबा बहै सनसन अछि
फेर दुर्गा मेला हेतै नाच आ लीला हेतै
देखूँ खुदरा पैसा बाजै झनझन अछि
घर परिवार मे तिहार के दिन एलै
अंगना मे चलैत नेना ढ़नमन अछि
कनिये दिनके तँ छै ई पावैनक मजा
कातिकक बाद तँ ऊहे अगहन अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
€€बाल मुकुंद पाठक
गजल
गजल
अहाँ बैसला पर कि पाएब एतौ
रहब काजके
बिन कि खाएब एतौ
कतोऽ दुख कतोऽ सुख लिखल अछि तँ सबटा
कियै
हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत
हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव
विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ
मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~
~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
कियै हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
अहाँ हमरा बिसरि रहलौँ
वियोगे हम तँ
मरि रहलौँ
घुसिकँ कोनाकँ देहेमेँ
अहाँ हमरा पसरि
रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ
छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन'
(मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
अहाँ हमरा पसरि रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन' (मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
बाल गजल
बाल गजल
मेला चलब हमहुँ कक्का यौ
पहिरब आइ सूट पक्का यौ
खेबै जिलेबी आ झूलब झूला
संगे संग किनब फटक्का यौ
बैट किनब क्रिकेट खेलै ले
आबि कऽ खूब मारब छक्का यौ
साझेसँ अखारामे कुश्ती हेतै
पहलवानोँ तँ छै लडक्का यौ
अन्तिम बेर छी एतौ हम तँ
जाएब बाबू लऽग फरक्का यौ
कोरा मे कने लिअ ने हमरा
ई भीड़ मेँ मारि देत धक्का यौ
चलू ने जल्दी किनै ले जिलेबी
नै तँ उड़ि जाएत छोहक्का यौ
बाबूओसँ बेसी अहीँ मानै छी
छी बड्ड नीक हमर कक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
~ ~बाल मुकुन्द पाठक ।।
मेला चलब हमहुँ कक्का यौ
पहिरब आइ सूट पक्का यौ
खेबै जिलेबी आ झूलब झूला
संगे संग किनब फटक्का यौ
बैट किनब क्रिकेट खेलै ले
आबि कऽ खूब मारब छक्का यौ
साझेसँ अखारामे कुश्ती हेतै
पहलवानोँ तँ छै लडक्का यौ
अन्तिम बेर छी एतौ हम तँ
जाएब बाबू लऽग फरक्का यौ
कोरा मे कने लिअ ने हमरा
ई भीड़ मेँ मारि देत धक्का यौ
चलू ने जल्दी किनै ले जिलेबी
नै तँ उड़ि जाएत छोहक्का यौ
बाबूओसँ बेसी अहीँ मानै छी
छी बड्ड नीक हमर कक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
~ ~बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
आँखिसँ खसैत नोर रुकत की नै
नोरक सरस
आबो सुखत की नै
सुखिकऽ ठोर आब गेल अछि फाटि
फाटल ठोर
फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता
मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो
खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत
की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद
पाठक ।।
फाटल ठोर फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद पाठक ।।
बाल गजल
बाल गजल
हाएत दिवाली जड़तै दीप
आँगने
आँगन बड़तै दीप
घर दुआरि आँगन सँभमेँ
डेगे डेऽग पर जड़तै
दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप
चुक्का
डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ
द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
.................................................
डेगे डेऽग पर जड़तै दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप
चुक्का डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
..............बाल मुकुंद पाठक ।।
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