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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

गजल


जिनगीक सुख दुख कहैत अछि गजल
जगक सभ कोण मेँ रहैत अछि गजल

सुखी होए किओ वा चाहे होए दुखी भऽ गेल
प्रेमक सरस जेना बहैत अछि गजल

बेदर्द जिनगीमेँ बहैए नोरक सागर
दर्दक दबाइ ओतै बनैत अछि गजल

देखूँ अपन मिथिलाकेँ लोक समाज सभ
मैथलीयोँ मेँ तँ नीक बनैत अछि गजल

बेपर्द जिनगीके देखाबैत आछि अंग ई
आन्हरोँ के आँखि बनि रहैत अछि गजल

मोनक बात कहै बुढ़ कहै जुआन कहै
ओहि बात के धुन मेँ गढ़ैत अछि गजल

सरल वर्णिक बहर, वर्ण 16
©बाल मुकुन्द पाठक ।।

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