जिनगीक सुख दुख कहैत अछि गजल
जगक सभ कोण मेँ रहैत अछि गजल
सुखी होए किओ वा चाहे होए दुखी भऽ गेल
प्रेमक सरस जेना बहैत अछि गजल
बेदर्द जिनगीमेँ बहैए नोरक सागर
दर्दक दबाइ ओतै बनैत अछि गजल
देखूँ अपन मिथिलाकेँ लोक समाज सभ
मैथलीयोँ मेँ तँ नीक बनैत अछि गजल
बेपर्द जिनगीके देखाबैत आछि अंग ई
आन्हरोँ के आँखि बनि रहैत अछि गजल
मोनक बात कहै बुढ़ कहै जुआन कहै
ओहि बात के धुन मेँ गढ़ैत अछि गजल
सरल वर्णिक बहर, वर्ण 16
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
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