आँखि सूतल छै मोन जागल कियै छै
गाछ सूखल छै पात लागल कियै छै
भटकि रहलौँ हम नौकरी लेल जुग मेँ
भाग भूटल छै आस लागल कियै छै
प्रेम मेँ हुनकर टूटि गेलै करेजा
शांत मन तैयोँ आगि लागल कियै छै
गाम रहि रहि केँ याद आबैत रहतै
मोन विचलित छै फेर भागल कियै छै
अपन पीड़ा बेसी बुझाएत तैयोँ
शीश काटल छै देह लागल कियै छै
राति दिन ई सोचैत बाजै मुकुन्दा
नाम ई ओकर आब पागल कियै छै
(बहरे खफीफ, मात्रा क्रम-२१२२-२२१२-२१२२)
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
नीक गजल लागल।धन्यवाद
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