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बुधवार, 23 जनवरी 2013

गजल



चलि अहाँ कतए किए गेलहुँ मुरारी
एहि दुखियाकेँ हरत के कष्ट भारी

तान ओ मुरलीक फेरसँ आबि टारू
बिकल भेलहुँ एतए एसगर नारी

द्रोपतीकेँ लाज बचबै लेल एलहुँ
नित्य सय सय बहिनकेँ कोना बिसारी

बनि कऽ फेरसँ सारथी भारत बचाबू
सभक रक्षक हे मधुसुदन चक्रधारी  

वचन जे रक्षाक देलहुँ ओ निभाबू
कहत कोना ‘मनु’ अहाँकेँ हे बिहारी

जगदानन्द झा ‘मनु’
(बहरे रमल, वज्न – २१२२-२१२२-२१२२)   

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