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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

वासंती गीत



कोइली कुहू -कुहू कुहुके हो रामा वन उपवन में 
नव किसलय सँ गाछ लागल अछि
मंजरि गम -गम गमकि रहल अछि
रंग बिरंगक फुल गाछ में 
प्रकृति कयल श्रृंगार हो रामा वन उपवन में ........
टिकुला सँ अछि झुकि गेल मंजरि 
नेना सब हर्षित अछि घर -घर 
गाछ -गाछ  पर विरहिणी कोइली 
कुहू -कुहू पिया कय बजाबै हो रामा वन उपवन में ....
श्वेतवसन कचनार पहिरी कय 
भ्रमर आंखि केर काजर बनि कय 
कामदेव क लजा रहल अछि
बढ़वय रूप हज़ार हो रामा वन उपवन में .....
महुआ  गम -गम गमकि रहल अछि
नेना चहुँदिसि दौरि रहल अछि
डाली -झोरी मं अछि महुआ 
गाबय चैत बहार हो रामा वन उपवन में ......

प्रजा आ तंत्र


लोहा सँ लोहा कटे अछि
विष काटै अछि विष कें,
मुदा भ्रष्ट सँ कहाँ उखड़े अछि
भ्रष्टाचारक ओइद ...?
निज स्वार्थ हेतु आश्वासन सँ
सागर में सेतु बना दै अछि,
रामक दूत स्वयं बनि सब
मर्यादा कें दर्शाबे अछि,
जनमत केर हार पहिर क ओ
रावणदरबार सजाबे अछि,
जौं करब विरोध त शंकर बनि
ओ तेसर नेत्र देखाबे अछि,
थिक प्रजातंत्र तें रावणों क
भेटल अछि समता केर अधिकार,
हमरे सबहिक शोणितपोषित
थिक प्रजातंत्रक सरकार.....

-अंजनी कुमार वर्मा "दाऊजी"

कोसी




हिमगिरी के आँचर सँ ससैर,
मिथिला केर माटि म पसैर
दुहु कूल बनल सिकटाक ढेर,
पसरल अछी झौआ कास पटेर
मरू प्रान्त बनल कोसी कछार,
निस्सिम बनल महिमा अपार
सावन भादो केर विकराल रूप,
पाबि अहाँ यौवन अनूप
उन्मत्त मन ,मदमस्त चालि,
भयभीत भेल मानव बेहाल
कि गाम-घर,कि फसल-खेत,
कि बंजर भू ,लय छि समेट
प्रलयलीन छि अविराम,
मानव बुद्धि नहीं करय काम
कतय कखन टूटे पहाड़,
भीषण गर्जन अछी आर-पार
तहियो हम सब संतोष राखि,
कर्तव्यलीन भेल दिन-राति
वर्षा बीतल हर्षित किसान,
खेती म लागल गाम-गाम
लहलहाइत खेत देखै किसान,
कोसी मैया कए शत-शत प्रणाम .......
- अंजनी कुमार वर्मा