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शनिवार, 2 अगस्त 2014

मैथिलीमे एकरूपताक अभाब


“कोस-कोसपर बदले पानी, तीन कोसपर बदले वाणी।” ई कथ्य किनकर अछि, हम नहि जानि मुदा अछि जग जाहिर। कोनो एहन सुधी मनुख नहि जे एहि पाँति सँ अनभिक होथि। आ ई कथ्य सोलह आना सत्य अछि। एक गामसँ दोसर गामक इनार पोखरिक पानिमे अन्तर आबि जाइ छैक। ओना आब इनारक जमाना तँ रहल नहि। गामक घरे-घर चापा कऽल चलि गेलै आ शहरक घरे-घर टंकी। टंकीक पानिमे तँ कनिक समानता देखलो जा सकैत अछि मुदा एक आँगनक चापा कऽलक पानिक   स्वाद दोसर आँगनक चापा कऽलसँ भिन्न होएत। परञ्च हम एहिठाम पानिक संदर्भमे गप्प नहि कहि कऽ भाषाक पक्षक मादे कहै चाहैत छी। पानि जकाँ भाषाक मिजाद सेहो सगरो तीन चारि कोसपर बदलल देखाइत छैक। ई असमानता मिथिले-मैथिलीमे नहि भऽ कँ कमबेसी सम्पूर्ण भारतीय वा अभारतीय भाषामे देखार भऽ चुकल अछि आ ओ गुण कोनो भाषाक विकास आ ओकर उन्नतिक पक्षक धियान राखि ठीके अछि। पानिक मादे जेना कोनो नदी हेतु ओहिमे बहाब भेनाइ स्वभाविक छैक नहि तँ ओ नदीसँ डबरा भऽ जेतैक। तेनाहिते कोनो भाषाक चहुमुखी विकास लेल ओहिमे निरन्तर बहाब, अर्थात नव-नव शव्दक वृद्धि, आन-आन भाषाक सटीक आ प्रचलित शव्दकेँ स्वीकार केनाइ आवश्यक छैक। आ दुनियाँक ओ कोनो भाषा जे अपना आपके एकटा बहुत पैघ रुपे स्थापित केलक, ओकर विकासक इहे अबधारना वा गुणक कारने संभब भेल अछि। हमरा इआद अछि जखन अंग्रेगीक प्रथम शव्दकोष बनल रहैक तँ ओहिमे मात्र एक हजार शव्दकेँ जगह भेटल रहैक आ आइ..... ?

मुदा मैथिलीक संगे, ई गुण किछु बेसीए अछि। किएक तँ मैथिल किछु बेसीए बुद्धिजीवी, शिक्षित आ चलएमान छथि। जतए-जतए गेला अपना भाषाकेँ अपना संगे नेने गेला आ ओतुका भाषाक शव्दकेँ अपना संगे जोड़ने गेला। ओनाहितो अपन मिथिलांचलक प्रतेक दू तीन कोसक बादक भाषामे भिन्नता अछि। पछिमाहा मैथिली पुरबाहा मैथिली, दछिनाहा मैथिली उत्तर भरक मैथिली, कमला कातक मैथिली, कोसी कातक मैथिली। एक्के गाममे बड्डकाक मैथिली, छोटकाक मैथिली। नीक गामक मैथिली तँ बेजए गामक मैथिली। शिक्षित मैथिली तँ अशिक्षित मैथिली। आमिरक मैथिली तँ गरीबक मैथिली। एक्के बेर एतेक बेसी असमानता भऽ गेल अछि जे कतेक ठाम तँ मैथिली नहि कहि कऽ दोसर नामसँ संबोधन भँ रहल अछि।

अपन जाहि गुणक कारण दुनियाँक कोनो दोसर भाषा विकासक रस्तापर चलि रहल अछि, ओतए हमर सबहक मैथिली एहि क्रममे पछुआ रहल अछि। एकर की कारण ? तँ उत्तरमे हमरा मैथिलीक एकटा लोकोक्ति इआद आबि रहल अछि। “जे बड्ड होशियार से तीन ठाम गूँह मखे।” एहि लोकोक्तिकेँ कनी फरिछादी; एकटा पढ़ल लिखल विद्वान् गूँह मँखि गेला, आब ओ एहि गप्पक खोजमे लागि गेला जे, जे मखलौं से गूँहे अछि वा किछु आरो। एहि क्रममे ओ पएरक गूँहकेँ अपन हाथक आंगुरसँ छुला बाद नाकसँ सुंघला। लगलनि ने तीन ठाम, पएरमे, हाथक आंगुरमे, अन्तोगत्बा नाकमे। ओतए एकटा दोसर व्यक्ति बेसी खोज बिन नहि पैर कऽ मखला बाद पानिसँ धो लेलक। “अति सर्वत्र वर्जिते,” इहे रोग मैथिली भाषाक विकासमे लागि गेल अछि। जाहि गुणक कारणे हम आगू बढ़ि सकैत छलहुँ, अपन ओहि गुणकेँ कारण ठमैक गेल छी।

एहि गुण, अतिसय गुण वा कही तँ अबगुनकेँ हम समान्य लोककेँ लेल जेनाकेँ तेना छोरिदी, विकास क्रममे समयक संगमे मानिली जे ओ अपने ठीक भए जेतैक। मुदा जे अपनाकेँ बुद्धिजीवी कहैत छथि, शिक्षित आ मैथिली विकासक ठेकेदार अपनाकेँ मानैत छथि तिनका सभकेँ तँ कदापि नहि छोरल जए आ हुनके सबहक एकरूपताक अभाबे मैथिलीक गति अबरुद्ध भेल अछि। एकटा समान्य लोक ककरा देखत, पढ़त ? एकगोट बुद्धिजीवीकेँ, साहित्यकारकेँ, पत्र-पत्रिकाकेँ, ऑडियो-विडिओ मिडियाकेँ मुदा एखुनका समयमे मैथिली भाषाक एकरूपतामे कतौ समानता नहि अछि। एहिठाम हम समान्य लोकक गप्प नै कहि रहल छी, पढ़ल-लिखल, मैथिलीमे ऑनर्स, एमए०, पिएचडी करै बलाक गप्प कए रहल छी। जिनक सबहक कतेको मैथिली पोथी छपा कऽ समान्य लोकक हाथमे आबि गेल अछि, मैथिलीक पत्र-पत्रिकाक सम्पादक आ सम्पादक मण्डलीक गप्प कए रहल छी। कतेको मैथिलीक पुस्तक छापि चुकल प्रकाशकक गप्प कए रहल छी। ऑडियो-विडिओ बेच कऽ अपन कमाइ करै बला चैनल आ म्यूजिक विडिओज कम्पनीक गप्प कए रहल छी।

सदति भाषाक एकरुपताक अभाब अछि। कनिक काल लेल किनको अज्ञान मानि कए क्षमा कएल जा सकैत अछि मुदा ओहि खन कि कएल जे जखन कियो गोटा अपनाकेँ मुख्य सम्पादक, सम्पादक, मैथिलीक ऑनर्स, एमए पिएचडीक चश्मा पहिरने, ओहि घोड़ा जकाँ लगैत अछि, जेकरा आँखिपर हरियर पट्टी बान्हल छैक आ ओकरा सगरो दुनियाँमे हरियरे-हरियर नजरि अबैत छैक। ई बिडम्बना मैथिलीए संगे किएक ? जीवन भरि अपन घर-परिवारमे मैथिली नहि बजै बला मैथिलीक ठीकेदार बनि जाइत छैक किएक ? एहिठाम हम विदेह ग्रुपक प्रसंशा करैत छी जे ओ अन्तर्जाल आ प्रिन्ट दुनू रूपे मैथिली भाषाक समृधि आ एकरूपता लेल भागीरथी प्रयासमे लागल छथि।

कतेको प्रकाशकक पोथी, कतेको लेखक आ साहित्यकारक कृति, कतेको पत्र-पत्रिका, फलाँ फलाँ मैथिली एकादमीक पोथी आ पत्रिका हमरा लग अछि जाहिमे विभक्ति केर प्रयोग हिन्दीक तर्जपर कएल गेल अछि। कतेक मैथिलीक महान-महान विभूतिसँ हम व्यक्तिगत रुपे संपर्क कए हुनका सभसँ निवेदन केलहुँ जे, मैथिलीमे विभक्तिकेँ सटा कए लिखबा चाही मुदा नहि, ओहे आँखिपर पट्टी बान्हल घोड़ा बला हिसाब। एकटा मुख्य-सम्पादक, सम्पादक, ऑनर्स, एमए, पिएचडी, केनहार अपनाकेँ मैथिलीक ठीकेदार बुझनाहर, दोसर लोकक गप्प कोना मानि लेता। लागल छथि सभकेँ सभ मैथिलीकेँ हिंदी टच देबैमे। जीवन होए वा साहित्य ई गप्प मानै बला छैक जे लोक गल्तीए कए कऽ आगू बढ़ैत छैक। मुदा ओइ लोक आ संस्थाक कि जे गल्तीओ करत, गल्तीकेँ मानबो नहि करत, आ बाजु तँ लड़बो करत, ई तँ ओहे गप्प भेल जकर लाठी तकरे भैंस मुदा एहिठाम गप्प भैंसक नहि छैक, एहिठाम गप्प एकटा प्राचीन, समृद्ध आ श्रेष्ठ भाषाक भविष्य आ एकरूपताक छैक।

दुनियाँक सभ समृद्ध भाषामे एना देखल गेलैए जे आम बोलचाल आ साहित्य, शिक्षा वा सार्वजनिक भाषामे भेद पाएल जाइत छैक। आम बोलचाल आ प्रचलनमे बहुत सगरो छूट छैक वा बन्हँन केर आभाव छैक मुदा साहित्य, शिक्षा आ सार्वजानिक मंच हेतु ओहि भाषाक एकटा मानक रूपक प्रयोग कएल जाइत छैक। एहि तरहक अभाब मैथिलीक संगे किएक ? मैथिली साहित्यकार, सम्पादक, प्रकाशक मैथिलीक मानक रूपक प्रयोग किएक नहि करैत छथि। कतेको जन्मान्हर(ज्ञान रुपे) तँ सिखैक डरे एक्के बेर कहता, “चलू चलू अहाँ फलाँ-फलाँ ग्रुपसँ जुड़ल छी ई ओकर सबहक चर्च छै।“ यौ महराज ई चर्च अहाँ लगकेँ अनलक ई नहि देखि, ई देखू जे की अनलक। कनिक देखैक अपन नजरि बदलि लिअ तँ अहूँक विकास आ संगे संग भाषाक विकासक सेहो सम्भावना मुदा नहि हमर एकटा आँखि फूटेए तँ फूटेए तोहर दुनू फोरबौ। आ एहि फोरा फोरीमे ई किनको चिंता नहि जे ओहि माए बाबूक कि हाल जिनक करेजाक टुकरा अपन दुनू छी।

मैथिलीमे एकरूपताक अभाब, इस्थीति, कारण आ निदानपर चर्चा करी तँ एकटा बेस मोटगर किताब बनि जाएत मुदा मैथिलीक अबरुद्ध विकास हेतु हमरा सभकेँ अपन अपन आँखि नै मुनि एहि चर्चाकेँ आगू बढ़ाबए परत। आ अति शीर्घ मैथिलीक वर्तमान पत्र-पत्रिकाक सम्पादक, प्रकाशक, साहित्यकार, लेखक आर कोनो सार्वजानिक मंचकेँ देखनिहार लोकनि सभकेँ मानक मैथिलीकेँ स्वीकार कए ओकरा आगू आनए परत नहि तँ ओ दिन दूर नहि जहिया हमर सबहक धिया पूरा एकरा इतिहासक पोथीमे पढ़त।
© जगदानन्द झा ‘मनु’

सोमवार, 3 मार्च 2014

मिथिलाक माटिसँ सिनेह राखू


सबरंगी बात, आलेख - डा० कैलाश कुमार मिश्र 
नेना जखन रही तँ माए सदिखन कहथि: "बंटि चुटि खाइ राजा घर जाइ , असगर खाइ डोमा घर जाइ" । ई  गप्प तखन कहथि जखन घरमे कोनो खेबाक किंवा खेलबाक बस्तु कम होइत छल आ हम सभ भाइ बहिन बेसीसँ बेसी लेबाक लेल झगड़ा करए लगैत रही। माए केर आज्ञा मुदा वात्सल्यसँ भरल ई होइत छल जे जतबे वस्तु अछि ओकरा अपनामे सामंजस्यक संग बांटि लिअ' । फेर की,जे कियोक भाइ बहिन बटैैत छलहुँ से पूर्ण निष्ठाक संग। सबहक मुँहपर प्रसन्नताक भाव। कमो  समानमे परिपूर्ण होबाक संतोष। हृदयसँ तिरपीत भेल मोन आ मस्तिष्क ।  ओहि समानपर सबहक अधिकार आ ओहि समानसँ सभकेँ सिनेह। जखन ई बात स्मरण करैत छी तँ बुझना जाइत अछि जे इहे बात मैथिली भाषाक प्रति समस्त मिथिलामे आ मिथिलासँ बाहर रहनिहार सभ वर्ग,सम्प्रदाय, जाति, धर्म आदि केर मैथिली समुदायमे किएक नहि होइत छन्हि?  कहीँ मैथिली भाषाक रस आ स्वरक बट्बारामे हमरा लोकनि छोट-पैघ, ऊँच-नीच, जाति-वर्ग क्षेत्र आदिक नामपर कुकरौझ तँ नहि करए लगैत छी?  ई बड़का प्रश्न अछि जकर तहमे जेनाइ आवश्यक। 
मैथिली भाषा आ साहित्यक तुलना कंसार वालीसँ कएल जा सकैत अछि। जखन नेना रही तँ बीचमे एक अधिबेसु महिला साँझ कए कंसार लगबैत छली। आमक गाछक छाहरिमे एकटा फुसही घर आ घरमे एकटा चुल्हा। चुल्हा जरेबाक लेल पात, बाँसक करची आ आन आन तरहक अनेरुआ जारनि। दूटा फुटलाहा तौलाकेँ खपड़ि चुल्हामे चढ़ल। एकटामे बालु आ दोसरमे अन्न भुजबाक प्रयास। गामक घर सभसँ बच्चा एवं आन आन लोक सभ अनाज जेना चाउर, गहुम,बदाम केराउ आदि कंसार वाली लग लए कऽ अबैत छल। कनसार वाली ओहि अन्न सभकेँ दक्षताक संग भुजि दैत छलैक आ बदलामे एक दू मुठ्ठी अन्न अपन मेहनतानाक तौरपर राखि लैत छली। ओहि कंसारपर भुजा भुजेबाक अधिकार सबहक छलैक। सभकेँ ओहि महिलापर विश्वास छलैक। 
हमरा जनैत मैथिलीकें ओहिना सभ वर्ग, जाति आ क्षेत्र (मिथिलाक क्षेत्र )क पिआर आ सिनेह भेटबाक चाही  मुदा एहेन स्थिति अछि नहि। हमरा लोकनि छोट-छोट गप्पपर लड़ैत छी। हालहिँमे जगदीश प्रसाद मंडलकेँ गुवाहाटीक समारोहमे मुख्य अतिथि नहि बनए देल गेलन्हि। नचिकेता जीकेँ पोथीपर हमरा लोकनि उचित धियान नहि देलहुँ। कियोक बजलाह जे विद्यापति हजाम छलाह तँ बहुतो रास लोक आमील पी लेलन्हि। नारा देमय लगलाह जे विद्यापति ब्राह्मण छलाह।  मुख्य गप्प ई अछि जे विद्यापति मिथिलाक गौरव छथि। एक घरीकेँ लेल मानि लिअ' जे विद्यापति हजाम छलाह तँ की ओ महान नहि छथि? महानताकेँ जाति धर्मसँ की मतलब ? विद्यापति जे छथि वा जे छलाह से अपूर्व छलाह। जखन ई विवाद पढ़लहुँ आ पक्ष आ विपक्ष दुनूक वार्तालाप देखल तँ मोन घोर भ गेल। इहे थिक मैथिलीक दशा। हमरा लोकनि मैथिलीक नामपर जाति-पांतिक संकीर्णतामे डूबल छी। धिक्कार अछि!
एखन एक नीक परम्पराक विकास भए रहल अछि। तथाकथित छोट जातिमे मैथिली भाषा, साहित्यक प्रति रुझान बढ़ल अछि। नव-नव कवि , लेखक साहित्यकार, सृजनशीलतामे उत्साहित छथि। नव बिम्ब नब भावनाक जन्म भए रहल अछि। हलांकी किछु लोक जे पहिनेसँ बिना जनने मैथिलीपर धाक जमेने छथि से लोकनि एहि नव रचनाकार लोकनिकेँ अस्तित्वकेँ स्वीकार करबाक लेल तैयार नहि छथि। होइत छन्हि जेना हुनकर बपौती सम्पतिपर दोसरो लोक आक्रमण कए रहल होन्हि। 
ऐना किएक ? मैथिली लोक भाषा अछि। लोकभाषा ओ भेल जकरा लोक व्यवहारमे प्रयोग कएल जाइत होइ। लोकभाषा किसान,खेतिहर, बोनिहर,आ विद्यार्धि-विद्वान, महिला-पुरुष, आ कार्यालय सभकेँ जोड़य बला भाषा थिक। लोकभाषा ज्ञान आ शिक्षाकेँ सम्हारै बला भाषा थिक। लोकभाषा सृजनताक भाषा थिक। लोकभाषा सबहक भाषा थिक । एहि भाषामे अगर अनेरे अतिक्रमण करबैक, एकर आत्माकेँ खंडित कए संस्कृत एवं आन भाषाक कठिन शव्द घुसेरि एकरा जटिल बनेबैक तँँ ई किछु फंतासि लोकक भाषा भ' जाएत। राजनीतिकरण करबैक तँ भाषा अपन साँस तोरए लागत। निष्प्राण होबए लागत।
हमरा लोकनि विद्यापति केर माला जपैत छी मुदा बिसरी जइत छी जे विद्यापति  देसी भाषाक पक्षधर छला। हुनकर गीत आ लोक रचनाकेँ  खेतक हरवाहासँ मंदिरक पुजारी धरि सभ पसीन करैत छल। मिथिलाक महिला लोकनि एक कंठसँ दोसरक कंठक मध्य पीढ़ी दर पीढ़ी विद्यापति पदावलीकेँ जीअने रहलीह।  नहि कोनो पाण्डुलिपि आ नहिए  कोनो पुस्तकालयकेँ  जरुरत परलनि  हुनका लोकनिकेँ । एतवे नहि कतेको
महिला आओर  पुरुष तँ  विद्यापति केर पदावली परमपरामे अबै बला कतेको  रचनाकेँ  विद्यापति नामे जोड़ि देलनि।
बादमे मैथिलीकेँ आवसकतासँ बेसी संस्कृतीकरण होबअ  लागल। लोक सब संस्कृतक शब्दावलीसँ  मैथिलीकेँ  अनेरे जनमानससँ  दूर करबाक प्रकृतिमे लागि  गेलाह । इमहर खाँटी  शब्दावलीक प्रयोग करय वालाकेँ  उपेक्षा  होबअ लागल। खाँटी  शब्दक उपयोग केनाइ  अशिक्षा  आ अज्ञानताक परिचापक होमय लागल। फेर की छल मैथिली छोटसँ छोट होइत गेलीह  अतवे नहि, नहीं मैथिली भाषाकेँ क्षेत्रीयताक आधारपर सेहो बांटी देल गेल।
उँच -नीच कए  देल गेल। पछिमाहा-दछिनाहा, पुबहा कहि ओहि क्षेत्रक लोकक उपहास केलक।  खांटी  मैथिली विलुप्त भेल जा रहिल छली आ संस्कृत  निष्टमैथिली किछु वर्ग आ समुह  केर बंदनी भऽ गेल छली। भाषाकेँ  वर्ग विशेषसँ जोड़ने विधवंसकारी भऽ  सकैत अछि।  एकर जीवंत उदहारण थिक उर्दू भाषा। उर्दूक अर्थ भेल बजार  एकर विकास सैनिक केन्तेनोमेंट एरियामे सैनिक सब जे विभिन्न प्रान्तसँ होएत छल ओ सब स्थानीय लोक सभसँ आपसमे  वार्तालाप करबाक हेतु सम्प्रेषण केर भाषा अथवा बोली विकसित केलन्हि।  बोलीमे कतेको  तरहक भाषाक कतेको  तरहक शव्दक प्रयोग भेलैक सहजताक संग धीरे धीरे उर्दू विकसित होमय लागल। उर्दू  हिन्दवी परम्परामे आगा बढअ लागल। समस्त उत्तर भारत पंजाब आजुक पाकिस्तान पूर्वी भारत अर्थात बिहार आ पूर्वी उत्तर प्रदेश  धरि  ई  प्राणवान भ गेल। ई जनमानस केर भाषा भ  गेल। प्रेमचंदसँ  ल क आगाँ  सब कियोक उर्दूमे लिखय लगलाह। पूरा पंजाब
हरयाणा आ कश्मीरक हिस्सा  उर्दूमय भ गेल। एहि भाषामे रचनाक ढेर लागि  गेल। बिभाजनक बाद भारत आ पाकिस्तान दू भाग भ गेल। जे मुसलमान भारतमे बचल रहि  गेलाह कहि नहि किएक उर्दूकेँ मुसलमानक अस्तित्वसँ जोड़ि कए देखए लगलाह। राजनीतिसँ प्रेरित भए नेतासभ उर्दूकेँ मुसलमान वर्गक भाषासँ जोड़ि कए देखए लगलाह। रचना-धर्मितामे मंदी आबए लागल। हिन्दू लोकनि अपनाकेँ हिंदीसँ जोड़लनि। फिराक गोरखपुरी, गोपीचंद नारंग, गुलजार सब कियो उर्दूमे लिख एहि भाषाकेँ समृद्ध केलनि। मुदा उर्दुक गध्य साहित्यमे इजाफा नहि भेल। लोकक मोन टूटि गेलैक। पध्य तँ किछु प्राणवान रहबो केएल मुदा साहित्यक पतन सहजहि  परिलक्षित होइत छैक। जँ मैथिलीकेँ सेहो अहिना रखलहुँ तँ मैथिलीक अस्तित्व डामाडोल  भए जाएत।
मैथिलीमेँ सर्वहारा विचारधाराक विकास केनाइ, नव शव्दकोष आ नव शव्दावलीक विकास, लोक  परम्पराकेँ जोड़नाइ सब वर्गक भाषा आ मनोदशा बुझनाइ आवश्यक अछि।  आबू सब गोटे मिल कए मैथिली भाषा आ साहित्यक विकास करी। तखने एकटा ठोस  मैथिली भाषा आ साहित्यक विकास संभव अछि।   
।।जयति मिथिला, जयति मैथिली ।।
(सभार : मिथिलांचल टुडे पत्रिका) 

शुक्रवार, 31 मई 2013

एहनो कतउ भेलइए ?

परूँका साल ३१ मई क' 

भोरे भोर जतेक समाचार सुनबामे आबए सभटा अचम्भिते करै बला । टेलीविजन चालू करिते देखै छी जे सगरो दिल्ली आ देशक आन आन भागमे यत्र-तत्र बाट जामक खबरि, यातायातकेँ  सुविधा बाधित । कारण की ?  कारण ई जे, पेट्रोलक मूल्यमे असामान्य वृद्धिकेँ विरुद्ध जनमोर्चा, आ ताहि जनमोर्चामे अपसियांत लोक । सभ वर्गक मिश्रित आम आदमी जिनक प्रतिनिधित्व करैत किछु नवोदित, किछु परिपक्व आ किछु वरिष्ठ राजनीतिक व्यक्ति लोकनि । ओना हिनका लोकनिक हस्तक्षेप भेनाइ सेहो परमावाश्यके , कारण जे हमरा लोकनिक बीच एहेन जनधारणा अछि जे विपक्षी लोकनि अगुएता तखने सत्ताधारीक आँखि खुजतन्हि, भने ओ स्वयं सत्तामे एलाक बाद जे करथि, आ जँ से नहि होईतै तँ आइ ई दिन कियैक  देखऽ परैइयै । महंगाइकेँ विरोध तँ आदि काल सँ होइत आएल अछि, अंतर एतबे छै जे पहिले सामान्य वृद्धि होइत छल आ आब असामान्य वृद्धि (अनिश्चित अनुपातमे) होइत अछि, आओर इएह अनिश्चितता हमरा लोकनिकेँ बाटपर ठाढ़ करबा लेल बाध्य कऽ दैत अछि । आब एकर नतीज़ा संध्या कालक समाचारमे  देखल जे पूर्ण हास्यास्पदे अर्थात असामान्य वृद्धिकेँ विरोधमे हो-हल्ला भेलाक बाद सामान्य कमी, किएक तँ सरकारकेँ ई आभास तँ रहिते छैक जे हो-हल्ला हेबे करतै तँ चलू कनेक उसास कए देल जेतै आ ठीक तहिना दोसर दिनसँ सभ किछु पूर्ववते अर्थात सरकार महगाई बढ़बैमे एक बेर फेर सफल ।
हड़ताल रहितहु लोक अपन अपन गंतव्य तक जेना तेना पहुँच रहल छलाह, तकर एकटा भुक्तभोगी हमहूँ रही । बसमे बैसल बैसल मोन अकच्छ भगेल रहय कानमे ठप्पी लगाय एफ.एम सुनय लगलहुँ, आहि रे बा ! ई की ? शाहरुख खानकेँ दम्मा कहिया भगेलन्हि, कहियो नै समाचारमे आयल छल, ने अखबारमे छपल छल । ई चैनल आ पेपर बला सभ तँ बड़ दाबा करै छथिन्ह जे हम सभसँ बेसी तेज, सभसँ पहिने, सभसँ आगाँ, मुदा एहिमे तँ सभ गोटे पछुआ गेलाह । ई मीडियाकर्मी लोकनि तँ एहेन-एहेन चर्चित लोकक छींकोकेँ ब्रेकिंग न्यूज़ बना दै छथिन्ह आ एतेक बड़का बीमारीकेँ जानतब सँ वंचित कोना रहि गेलाह ? मुदा औ बाबू ! वंचित ई सभ नै  रहि गेलाह, वंचित तँ हम स्वयं रहि गेलहुँ एहि एफ. एम. बला नकलची लोकक भाषासँ । संयोगवश ओहि दिन तमाकुल निषेध दिवस छल आ एहि अवसरपर शाहरुख़ खानकेँ शुभचिंतक लोकनि हुनका धुम्रपानसँ सम्बंधित विषय वस्तुपर अपन अपन नसीहत दए रहल छलथिन्ह आ ताहि क्रम कियो हुनके आवाज़मे नक़ल करैत एकटा संवादकेँ दम्मा बला अंदाजमे सुना रहल छलाह । एहि तरहे हड़ताल आ तमाकुलक सिट्ठीसँ कन्छिआइत-कन्छिआइत अपन गंतव्य धरि पहुँचलहूँ । भरि दिन काज धंधा कए कऽ संध्या काल जखन अपन मरैयामे एलहुँ आ फेर समाचार देखए लगलहुँ जे, कतौ हमरो युवावस्थाक फोटो आबि जए, मुदा से व्यर्थ सोचल कारण फोटो तँ नहिये ऐल आ उलटे युवावस्था पर पूर्ण विराम लागि चुकल छल ।
युवा मित्र लोकनिक लेल ई अविस्मरणीय दिवस छल, किएक तँ सरकार आइ खुलि कए घोषणा कदेलक जे - जे व्यक्ति १६ सँ ३० बरखक अवस्थाकेँ छथि, हुनके टा युवा वर्गकेँ श्रेणीमे राखल जेतन्हि । आजुक दिन हड़ताल झेलब आ की तमाकुल झेलब ओतेक भारी नै छल जतेक की ई वृद्धावस्था झेलब (सरकारक अनुसारे) मोस्किल छल । नै जानि आइ किएक बाजपेयी जीक बड्ड यादि अबै छल, एहि दुआरे की कमसँ कम अपनाकेँ एखन धरि युवा तँ बुझै छलहुँ किएक की हुनक युवा उमेर निर्धारण सीमा छल १३ सँ ३५ बरख धरि छल । मोने मोने ई सोचि बैसल रही जे एखन विवाहक वैधता पाँच बरख धरि आरो अछि,  मुदा ई की ? ई तँ एकाएक राताराती वैधता समाप्त ।
आब कल्पना करए लगलहुँ जे, काल्हि सँ जे घटक एताह, हुनका आँगुरपर गानि-गानि कऽ जन्म तिथि , मैट्रिक, इंटर, बी.ए. पासकेँ इसवी कहबन्हि आ ताहि गणनामे जँ कतहु चूक भेल तँ बुझू जे ई कलिजुग बिना गृहस्थाश्रमे केँ समाज सेवामे बीति जाएत । मोनेमोन फेर भोला बाबाकेँ गोहराबए लगलहुँ, “हे बाबा ! एहेन अनर्थ किएक केलहुं ? कम सँ  कम हमर वियाह जवानीमे तँ होमय दैतौं।
बड़ बेस! रातिमे सूतल रही, की देखै छी स्वप्नमे साक्षात् त्रिलोकीनाथ, गर्दैनमे फुफकारैत जुआएल गहुँमन साँप, हाथमे त्रिशूल आ डमरू, बाघक चामक ठेहुन धरि गमछा बना नुरियेने, सौंसे  देहमे शमसानक छाउर हसोथने, हमरा सिरमा लग आबि ठाढ़ भऽ गेलाह आ कहए लगलाह, “हौ बौआ! हम दिने तोहर बात सुनै छलहु, मुदा ओतेक लोकक बीचमे कोना भेंट करितौं तैं एखन एकांतमे कहै छियह! तोहर मोन एतेक छोट किएक छह ?”
कहलियैंह, ‘मोन छोट कोना नै हैत बाबा ? ई सरकार दुखी कऽ देने अछि । कहू तँ? वस्तुक दाम बढ़ा कए आकाश ठेका देने छै आ मनुक्खक युवा उमेर निर्धारण सीमामे दिनसँ दिन कोताहिये केने जाइ छै । देखियौ तँ बाजपेयी जी कतेक बढ़िया केने रहथिन्ह,  उमेर सीमा निर्धारण ।
बाबा हमरा हतोत्साहित देखि कहलाह, “सुनअ पढ़ल लिखल छह बात बुझबाक चेष्टा करअ । हौ ! बाजपेयीकेँ समयमे प्रधानमंत्रीसँ लऽ राष्ट्रपति तक केकरो देखलहक जे सोंगर पर ठाढ़ छल ? किएक तँ बेसी अवस्थाक रहितहु सभ अपनाकेँ जवान बुझैत छल, तैं ओ सीमा नमहर छलैक, ओनहियो ई सरकार संतुलन बनबए लेल महगी बढ़ा कऽ उमेर घटा रहल अछि किएक तँ बूझल छैक जे एहेन महगाईमे लोकक गुज़र बसर केनाइ आ जीयब कतेक मोसकिल छ,ै तैं मनुक्ख जतबा दिन जीत तहीमे अवस्थाक वर्गीकरण तालिका बनाओल जए । मोन छोट नहि करअ आ चिंता छोड़अ आ हमरा ई वचन दए जे काल्हि सँ तोँ अपन समयकेँ अनाप सनापमे एक्कहु क्षण व्यर्थ नहि करबह, आ जतबा दिनक ओरदा छह ओतबे दिनमे गृहस्थ जीवनकेँ संग संग सामाजिक दायित्वक निर्वाहमे ततेक बेसी समर्पित भजाऽ  जे दिनानुदिन तोहर कीर्तिसँ ई समाज, देश, कर-कुटुम, परिवार सभ तोरापर गर्व करए  लागअ । एकटा बात आर मोन रखिहजे, जे व्यक्ति कर्मठ अछि ओ सतत जुआने रहैत अछि किएक तँ ओ अपन लक्ष्यकेँ पाबए लेल दृढसंकल्पित रहैत अछि ओकर लक्ष्यकेँ आगाँ वृद्धावस्था सेहो युवावस्था सदृश्य लगैत छैक । अंतमे शुभानि सन्तु !!
कहि कए अन्तर्ध्यान भऽ गेलाह । जखनसँ निन्न खुजल तखनसँ अपनाकेँ एकदमसँ हट्ठा-कट्ठा जवान प्रतीत होमय लागल आ भोला बाबाकेँ ध्यानमे रखैत अपन कर्ममे लागि गेलहुँ ।


मनीष झा "बौआभाइ"
ग्राम+पो.-बड़हारा,भाया-अंधराठाढी(मधुबनी)  
मो.-09717347995 (दिल्ली)
उपलब्धि संग्रह: http://writermanishjha.blogspot.com

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

मिथिलामे जाति-पाति



ई मात्र विडंबना कहु वा कोनो अभिशाप, जे राजनैतिक आजादी भेटलाक ६६ वर्ख बादो हम मिथिलाबासी अपन सोचकेँ जाति-पातिसँ ऊपर नहि  उठा पाबि रहल छी |
मात्र राजनैतिक आजादी ऐ कारणे जे राजनैतिक रूपसँ हम स्वतन्त्र छी परञ्च आर्थिक रूपसँ हम एखनो पराधीन छी | आर्थिक पराधीनता | अर्थात हम अपन इच्छानुसार खर्च नहि कए  सकै छी, मने धनक अभाब | हमरो मोन होइए अपन बच्चाकेँ  कॉन्वेंट स्कूलमे पढ़ाबी मुदा नहि पढ़ा सकै छी,   थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए नीक मकानमे रही मुदा नहि किन सकैत  छी,   थिक आर्थिक पराधीनता | हमर मोन होइए हमरो लग मोटर साईकिल, कार हुए, हमरो कनियाँ-बच्चा नीक कपड़ा पहिरथि मुदा नहि,   थिक आर्थिक पराधीनता |
स्वाधीनता कए ६६  वर्ख  बादो आर्थिक पराधीनता किएक ?
की हमरा लग बिद्या कम अछि ?
की हम कोनो राजनेता नहि बनेलहुँ ?
की हम प्राकृतिक रूपेण उपेक्षित छी ?
उपरोक्त सभ  बात गलती अछि | विद्यामे हम केकरोसँ कम नहि छी | राजनीतीकेँ  खेती अपने खेतमे होइए | प्राकृतिक कृपा अपन धरती पर पूर्ण रूपेण अछि |
तखन किएक ? किएक हम स्वाधीनता कए ६६ वर्ख  बादो, आर्थिक पराधीनताक जीवन जिबैक लेल बेबस छी |
एखनो बच्चाकेँ  चोकलेट नहि आनि हम कहैत छीयै, दाँत खराप भए  जेतौ | कमी चोकलेटमे नहि, कमी हमर जेबीमे अछि |
आ ई  आर्थिक पराधीनताक एक मात्र कारन अछि, हम मिथिला बासिक सोचब तरीका | आजुक युगमे जहिखन मनुख चान-तारा पर अपन पएर  राखि चूकल अछि, हम मिथिलाबासी एखन धरि  जाति-पातिकेँ  सोचिसँ ऊपर उठै हेतु तैयार नहि छी |
बाभन-सोलकन्हकेँ  नामपर बिबाद | अगरा-पिछराकेँ  नामपर बिबाद | ऊँच-नीचकेँ  नामपर बिबाद |
कोनो काजकेँ  लए  कऽ  आगू  बढ़ू, जेकरा नापशन्द भेल, जाति-पातिकेँ  नामपर बखेड़ा  ठार  कए  दएत | आ ई  कोनो अशिक्षित नहि बहुत पढ़ल-लिखल वर्गोंसँ नहि दूर भए  रहल अछि | शिक्षित माननीयव्यक्ति सभ  चाहे कोनो जातिक हुअए, अपन-अपन जाति कए झंडा लए  कऽ आगू  आबि जाइत छथि |
यदि हम स्वयं व अपन मिथिला समाजकेँ  विकसित व विकासशील देखए चाहै छी तँ  जाति-पातिक झंझटसँ निकलि कए  एक जुट भए आगू  बढ़य परत |
एक संगे चलैमे मतभेद स्वभाबिक छै आ ओकरा दूर केनाइ  निदान्त आबश्यक छै | मुदा ओहि  मतभेदमे जातिकेँ  बिचमे नहि आनि कए  व्यक्तिगत आलोचना, समालोचना करबा चाही  |
की कोनो गोट सफल व्यक्तिकेँ  ओकर जातिक नामसँ जानल जाइ  छैक  ?  नै, तँ  सफलताक सीढ़ीपर चलै लेल जाति-पातिक सहारा किएक |
ई जाति-पातिक रस्ता किछु मुठी भरि राजनेताक चालि छन्हि  | हुनकर बात मानी  तँ  हम सभ  अपन विकास छोरि जाति-पातिमे लड़ैत  रहि आ ओ दुस्त राज करैत हमरा सभकेँ  सोधैत रहत |

आलेख - जगदानन्द झा 'मनु'