बरका बरका बात करइ सब ,छोटका के के पुछतयी
सब परेलई छोरी छारी क ,मिथिला ले के सोचतयी
सुन रऊ बुआ सुन गे बुच्ची ,करही किछ विचैर क
हिला दही सौंसे दुनियां के, उखरल खुट्टा गैर क
हिला दही सौंसे दुनियां के.................
अपने पेट भरई के खातिर , नगरी नगरी भटकई छें
मात्री भूमि के काज नै एलें, तहि दुआरे तरसय छें
अप्पन मिथिला राज्य बना ले, मिलतौ छप्पर फाड़ी क
हिला दही सौंसे ..........................
अपने भाय के टांग जं घिचबें, कोना क आगा बढ्बें रऊ
अनका खातिर खैधि खुनई छें, ओही खैधि में खसबें रऊ
कदम बढा तों हाथ मिला क चल ने फेर सम्हारी क
हिला दही सौंसे ............................
मिथला में जं जनम लेलौं आ , काज एकर जं नै एलौं
जीवन सुख पिपासा में, नै जानि कत हम फसी गेलौं
देख इ दुनियां कोना बैसल छौ मिथिला के उजारी क
हिला दही सौंसे ...........................
जनक भूमि सीता के धरती , कनई छौ कोना तरपी तरपी
तू बैसल छे रइ बौरह्बा दोसर लेलकौ संस्कार हरपी
जाग युवा आ जागय बहिना , सोच नै तों उचारी क
हिला दही सौसे .............................
एम्हर उम्हर नै तों तकई बस मिथिला के बात करइ
अप्पन भाषा मैथिलि भाषा जत जायी छें ओतय बजय
एक दिन "आनंद" के पेंबे मिथिला में तो जाय क
हिला दही सौंसे .........................
आनंद झा
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इ रचना आनंद झा द्वारा लिखल गेल अछि यदि अपने एकर कोनो ता अंश या पूरा कविता के उपयोग कराय चाही त बिना हरा स पूछने नै करी :
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