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सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

कविता-हम एहन किएक छी ?

हम एहन किएक छी ?
माटि-पानि छोरि कए  
जाति-पाति पर लडैत किएक छी ?
हम एहन किएक छी ?

आएल कियो हाँकि लेलक
जाति-पाति पर बँटि देलक 
ऊँच-निचकेँ  झगरा में 
अपन विकास छोरि देलहुँ 
हम एहन किएक छी ?

के  छी अगरा
के छी पछरा 
सभ  मिथिलाक संतान छी 
फोरि कपार देखु  तँ   
सबहक सोनित एके छी 
हम एहन किएक छी ?

मुठ्ठी भरि लोक 
अपन स्वारथक कारणे
अपना सभकेँ 
तोर रहल अछि 
मोर रहल अछि 
जाति पातिमे ओझरा कए  
मिथिलाक विकाश  रोकि रहल अछि 

धरतिकेँ  कोनो जाति है छैक ?
मएक  कोनो जाति है छैक ?
तँ    हम सब सन्तान
बटेलौंह कोना ?
हम एहन किएक छी ?

आबो हम सँकल्प करी 
जाति-पाति पर नहि लरी 
अपन मिथला हमहि संभारब 
सप्पत मात्र एतबे करी  
हम एहन किएक छी ?
***जगदानन्द झा 'मनु'  

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