की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

गजल-२१

जरि-जरि झाम बनलहुँ हम
सोना नहि बनि पएलहुँ हम

कतेक अभागल हमर भाग
अपन सोभाग हरेलहुँ हम

अपन जीबन अपने लेलहुँ
किएक लगन लगेलहुँ हम

सुगँधा अहाँ के विरह में देखु
की की जरलाहा बनलहुँ हम

अहाँ विरह के माहुर पिबैत
मरनासन आब भेलहुँ हम

जतेक हमर मनोरथ छल
संगे सारा में ल अनलहुँ हम

मातल प्रेमक जडित आगि में
खकसिआह मनु भेलहुँ हम
***जगदानंद झा 'मनु'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें