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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

गजल-२५

कहलन्हि ओ मंदीर में, नहि पिबू एतए शराब
कोनठाम घर हुनक नहि, पिबू जतए शराब

इ नहि अछि खराप, बदनाम एकरा केने अछि
ओ की बुझत, भेटलै नहि जेकरा कतए शराब

मरलाबादो हम नहि पियासल जाएब स्वर्ग में
जाएब जतए सदिखन भेटए ओतए शराब

मारा-मारि भs रहल अछि जाति-पातिक नाम पर
मेल देखक हुए तs देखू भेटए जतए शराब

सब गोटे कए निमंत्रण सस्नेह मनु दैत अछि
आबि जाए-जाउ सबमिल पियब एतए शराब
*** जगदानन्द झा 'मनु'

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