की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

गजल



जखन खगता सभसँ बेसी तखन ओ मुँह मोड़ि लेलनि 
जानि आफत छोरि हमरा सुखसँ नाता जोड़ि लेलनि 

देखि चकमक रंग सभतरि ओहिमे बहि ओ तँ गेली 
जानि खखड़ी ओ हमर हँसिते करेजा कोड़ि लेलनि 

बन्द केने हम मनोरथ अप्पन सदिखन चूप रहलहुँ 
पाञ्च बरखे आबि देख फेर सपना तोड़ि लेलनि 

दुखसँ अप्पन अधिक दोसरकेँ सुखक चिन्ता कएने 
आँखि जे फूटै दुनू तैँ एक अप्पन फोड़ि लेलनि 

चलक सप्पत संग लेलहुँ जीवनक जतराक पथपर 
मेघ दुखकेँ देखते ओ संग 'मनु'केँ छोड़ि लेलनि 

(बहरे - रमल, मात्राक्रम- 2122 चारि-चारि बेर सभ पांतिमे)     

विदेह मैथिली लघुकथा

सोमवार, 26 नवंबर 2012

गजल


किए तीर नजरिसँ अहाँकेँ चलैए 
हँसी ई तँ घाएल हमरा करैए 

मधुर बाजि खन-खन पएरक पजनियाँ 
हमर मोन रहि रहि कए डोलबैए   

छ्लकए हबामे अहाँकेँ खुजल लट 
कतेको तँ  दाँतेसँ   आङुर कटैए

ससरि जे जए जखन आँचर अहाँकेँ 
जिला भरि  करेजाक धड़कन रुकैए 

अहीँकेँ तँ मुँह देखि जीबैत 'मनु' अछि 
बिना संग नै साँस मिसियो चलैए 

(बहरे - मुतकारिब, मात्राक्रम -122-122-122-122)

रुबाइ


मैथिली साहित्यक आँच सुनगैत अछि 
सगरो नव विधाक ज्वला पजरैत अछि 
कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि 
विदेहक बारल आगि 'मनु' लहकैत अछि 

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

दुर्गाक अर्थ


शक्तिक अवतारिणी, पापी सभहक़ संहारिणी, महाविद्या, महामाया, महामेधा, महामायास्वरूप, कालरात्रि, महारात्रि, मोहरात्रि, अम्बे, अम्बिका जगतमाता अधिष्ठात्री माँ भगवती तीनु लोकक माता माँ भगवती सम्पूर्ण संसार के रचयिता आ पापीक संहारक छथि | माँ भगवती सम्पूर्ण संसारकें स्फूर्ति प्रदान करैत छथि आ सम्पूर्ण संसार ओहि सँ उत्पन्न भए ओहिमे पुनः प्रवेश कए जाइत छैक |
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेणसंस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
संस्कृत में दुर्गाक अर्थ होइत छैक --- वो जे कि बुझैसँ अथवा ओतय जाहि ठाम पंहुचय में असंभव होय | माँ भगवती शक्तिक अवतारिणी के संगे-संगे नारी शक्तिक के पर्याय सेहो मानल जाइत रहलखिन अछि | वस्तुतः माँ भगवतीक कृपामयी आओर वरदायिनी महिमा सदिखनसँ, कहल जाय अनादिकालसँ एक टा रहस्ये रहल अछि | एहि कारणसँ हिनका कतेक रास नामसँ जानल जाइत छन्हि-- हिनका काली, तारा पार्वती, अम्बिका, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, कमला आदि विभिन्न आस्थाक नाम छैन्हि | माँ दुर्गाक अवतार के कतेक कथा प्रचलित अछि मुदा शिवपूराणक एक कथाकें अनुसारे एहन मानल जाइत छैक प्राचीन समयमे एक दुर्गम नामक असुर बड्ड शक्तिशाली छल जेकरा ब्रह्माक अजेय वरदान प्राप्त छलैक | कथा अनुसारे दुर्गमासुर आ माँ भगवती के बीच भयंकर युद्ध भेल | एहि युद्धमे माँ भगवतींक देहसँ काली, तारा, भुवनेश्वरी आदि दशो महाविद्या प्रगट भेलखिन आ एहिसभ महाविद्याक पराक्रमसँ दुर्गमासुर के वध भेल | आ ओहि समयसँ माँ भगवतीके दुर्गा के रूप में जानय जा लागल |`कथा तs ओना आर छय जेकर चर्चा बाद में कायल जैतक |

गजल



जेना जेना राति बीतल जाइए 
तेना तेना देह धीपल जाइए 

जुल्मी संगे संग रहितो हे सखी 
नहिए हुनकर मोन जीतल जाइए 

योवनमे पुरबा बसातक जोड़ छै 
साबरिया बिनु नै त' जीबल जाइए    

डूबल निनमे सगर दुनिया छै जखन 
बीया प्रेमक एत' छीटल जाइए 

भोरे उठिते प्रेम बोरल 'मनु' छलौं 
लाजे मरि मुह आब तीतल जाइए  

(मात्राक्रम -222-2212-2212) 

सोमवार, 19 नवंबर 2012

घोटालाबला पाइ (हास्य कविता)


घोटालाला पा
                         (हास्य कविता)


ई पोटरी त हमरा सँ 
उठने नहि उठि रहल अछि 
कनेक अहूँ जोड़ लगा दिय भाई 
ई छी घोटालावला पाई।

हम पूछलियन ई की छी 
ओ हमरा कान में कहलनि
कोयला बेचलाहा सभटा रुपैया 
हम एही पुत्री में रखने छि .

हमरा सात पुस्त लोकक गुजर
एही रुप्पैया स चली जायत
हम धरती में पैर नहीं रोपाब आई 
इ छि घोटालावला पाई।

चुपेचाप थोड़ेक अहूँ लिय 
मुदा केकरो सँ कहबई नहि भाई 
सरकारी संपित हम केलियई राई-छाई 
इ छि घोटालावला पाई।

कोयला भूखंडक बाँट-बखरा दुआरे
मंत्रिमंडल के सर्जरी भेल 
लोक हो-हल्ला केलक मुदा 
कोयला दलाली के नफ्फा हमरे ता भेल।

फेर मंत्री पद भेटैत की नहि?
ताहि दुआरे चुपेचाप पोटरी बनेलौहं 
सभटा अपने नाम केने छि भाई 
ई छी घोटालावला पाई।

देखावटी दुआरे सरकारी खजाना  पर 
बड़का-बड़का ताला लटकने छि 
मुदा राति होएते देरी हमीह 
भेष बदली खजाना लूटि लैत छी।

मंत्रीजी के कहल के नहि मानत?
सरकारी मामला में कियक किछु बाजत?
चुपेचाप सभटा काज होयत छैक औ भाई 
 ई छी घोटालावला पाई।

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

गजल

चलै चुनमुन चलै गुनगुन तमासा घुमि कए आबी 
जिलेबी ओतए छानैत तोहर भेटतौ बाबी 

पढ़ैकेँ छुटल झंझट भेल इसकूलक शुरू छुट्टी 
दसो दिन राति मेला घुमि कए नव वस्तु सभ पाबी 

करीया बनरिया कुदि कुदि कए ढोलक बजाबै छै  
चलै चल ओकरा संगे हमहुँ नेन्ना कनी गाबी 

बनल मेनजन अछि बकड़ी पबति बैसल अचारे छै 
बरद सन बौक दिनभरि चूप्प रहए पहिरने जाबी    

बुझलकौ आब तोरो होसयारी 'मनु' तँ बुढ़िया गै 
लगोने ध्यान वक कतएसँ सम्पति नीकगर दाबी    

(बहरे हजज, 1222 चारि-चारि बेर सभ पांतिमे)

शनिवार, 10 नवंबर 2012

गजल


तेल बिनु जेना निशठ टेमी धएने
बिनु पिया जीवन बितत कोना अएने

बरख बरखसँ हम तुसारी पूजने छी
बुझब की सुख साँझ पाबनि बिनु कएने

छै धिया सुख की बुझब कोना धिया बिनु
भ्रूण हत्यारा बुझत की बिनु पएने

मोल जीवनमे हमर बाबूक की अछि
मोन बुझलक छन्नमे हुनका गएने

रंग बदलति देखलौं  सभकेँ हँसीमे
देखि 'मनु' दुनियाँक रहलौं मुँह बएने

(बहरे रमल, २१२२-२१२२-२१२२)    
जगदानन्द झा 'मनु'

बुधवार, 7 नवंबर 2012

गजल @ ओम प्रकाश


करेजक बात नै कहियो बनल एतय
कियो सुनलक कहाँ मोनक कहल एतय

सुखायल गाछकेँ पटबैसँ की हेतै
फरत कोना जखन गाछे जरल एतय

हँसी कीनैत रहलौं सदिखने ऐठाँ
लए छी हम नुका आत्मा मरल एतय

लिखलकै भाग्य बिधि सबहक अलग कलमसँ
कपारक गप कियो नै पढि सकल एतय

गडै पर शूल "ओम"क आह नै निकलै
भऽ गेलौं सुन्न काँटे टा गडल एतय
बहरे-हजज
मफाईलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ) - ३ बेर प्रत्येक पाँतिमे

गीत

भईया क त अहाँ जगेलिये हमरो भाग्य जगबियो नै
अपना सन सुरतिया भऊजी हमरो लेल तकियौं नै
चान सनक नहिं चाही हमरा , चाही अहीं सन गोर यै
सुगा सनके नहिं चाही , लाल अहीं सन ठोर यै
अहाँ गाम होय जौं भऊजी बात बढ़बियो नै
अपना सन सुरतिया भऊजी हमरो लेल तकियौं नै
गाल पर तिलवा बेषक नहिं होय , होय अहीं सन दिल यै
अहाँ जौं कनिको ध्यान देबय त हेतै नहिं मुष्किल यै
छोट दियर मनक आषा अहाँ पूरबियो नै
अपना सन सुरतिया भऊजी हमरो लेल तकियौं नै
जिनगी भरि हम पैरि दबायब , रहब अहसानमन्द यै
अपने सन दियादिनी भऊजी करयौ नहिं पसन्द यै
एहि लगन में आशिक के भऊजी बिआह करबियौ नै
अपना सन सुरतिया भऊजी हमरो लेल तकियौं नै
भईया क त अहाँ जगेलिये हमरो भाग्य जगबियो नै
अपना सन सुरतिया भऊजी हमरो लेल तकियौं नै

आशिक ’राज’

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक/ ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस

-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/

-२ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक

 - ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस -बहसमे भाग लेलनि उदय नारायण सिंह नचिकेता, देवशंकर नवीन, विभा रानी आ गजेन्द्र ठाकुर; आ मोडेरेटर रहथि अरविन्द दास -आकाशवाणी दरभंगा, हिन्दी अखबार सभक दरभंगा संस्करण, सी.आइ.आइ.एल. , साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट आ अंतिका- मिथिला दर्शन, जखन-तखन, विद्यापतिकेँ पाग पहिरा कऽ विद्यापति पर्व केनिहार चेतना समितिक पत्रिका घर बाहर, झारखण्ड सनेस आदिक मैथिली साहित्यकेँ ब्राह्मणवादी बनेबाक प्रयासक विरुद्ध गएर ब्राह्मणवादी समानान्तर धाराक चर्च गजेन्द्र ठाकुर द्वारा भेल भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण विद्यापति आ ज्योतिरीश्वरक पश्चात बला कट्टर संस्कृत-अवहट्ठ बला विद्यापतिक बीच अन्तर गजेन्द्र ठाकुर रेखांकित केलन्हि ऐ सँ पहिने हिनी आ मणुपुरीक कार्यक्रम सेहो भेल

_MAITHILI -LOVE's OWN LANGUAGE03 NOVEMBER 2012
-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/
UGNA RE BY SHOBHNA NARAYAN 02 NOVEMBER 2012
-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल

शनिवार, 3 नवंबर 2012

रुबाई

जतय सॅ नहिं कियो आबेति अछि  ओतह चलि गेलीह
जतय चिटिठयो नहिं जा सकय अछि तेतह चलि गेलीह
कियैक चुप छी अहाँ सभ , कियैक नहिं बाजेति छी
हमरा छोडि़ के हमर प्राण कतह चलि गेलीह

आशिक ’राज’

गजल

अखनो अहीं के आस में जीब रहल छी हम    
विरह के जहर आब पीब रहल छी हम

बिसरला के पछातियो मोन पड़ेति होयत
मोन पारु कि कतेक करीब रहल छी हम

सबकिछु होयतो किछुूओ नहिं अछि हमरा
अहाँ के बाद एतेक गरीब रहल छी हम

कतहु रही खुष रही और हमरा की चाही
साँस चलेति अछि और जीब रहल छी हम

कियो नहिं पतियेते और अहुँ नहिं मानब
कोना एक दोसर के नसीब रहल छी हम

सरल वार्णिक बहर
वर्ण - 17
आशिक ’राज’

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

गीत

शेर -
पोसि पालि के जकरा कएलौं हम जवान
समाज के ई रीत केहेन भ गेल ओ आन

द्विरांगमन गीत

आई सॅ माई बाप भएलौं तोहर सासु ससुर
बेटी जा रहल सासुर  बेटी जा रहल सासुर 
माई कानय अछि सुगा सुगा बाबु ल माथ पर हाथ गे
भउज कानेति अछि गरदनि पकडि़ के भईया जाइछौ साथ गे
सिसकि सिसकि क धीया कानेति
पूछेति कोन कसूर
बेटी जा रहल सासुर  बेटी जा रहल सासुर 
कियो कानय अछि गुलाब गुलाब कियो पान कियो भईया
सभ मिल पूछत माई सॅ सबदिन बहिना के अनबे कहिया
संगी बहिनपा छूटल सबटा
भ रहल अछि सबसॅ दूर
बेटी जा रहल सासुर  बेटी जा रहल सासुर 
सासुर जा के रखियँ बेटी बाबा माथक पाग गे
ननदि दियादिनी सॅ घुलिमिलि जईयँ आबो नहिं नईहर याद गे
अखंड भगवान राखौ तोहर
माथक सिनूर
बेटी जा रहल सासुर  बेटी जा रहल सासुर 
आई सॅ माई बाप भएलौं तोहर सासु ससुर
बेटी जा रहल सासुर  बेटी जा रहल सासुर 

नोट - जौं कियो गाबय चाहेति छी त हरेक पाँति दू बेर आ जे पँाति अंडरलाईन अछि ओ आरोह में बाकी अवरोह में गाबी ओना आगाँ अहाँ सबहक इच्छा । धन्यवाद


आशिक ’राज’