शनिवार, 10 नवंबर 2012
गजल
तेल बिनु जेना निशठ टेमी धएने
बिनु पिया जीवन बितत कोना अएने
बरख बरखसँ हम तुसारी पूजने छी
बुझब की सुख साँझ पाबनि बिनु कएने
छै धिया सुख की बुझब कोना धिया बिनु
भ्रूण हत्यारा बुझत की बिनु पएने
मोल जीवनमे हमर बाबूक की अछि
मोन बुझलक छन्नमे हुनका गएने
रंग बदलति देखलौं सभकेँ हँसीमे
देखि 'मनु' दुनियाँक रहलौं मुँह बएने
(बहरे रमल, २१२२-२१२२-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु'
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें