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मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

गाम बदलि रहल अछि



गाम बदलि रहल अछि
समाँग बदलि रहल अछि
छ्नीक सुखक खातीर
लोक चाम बदलि रहल अछि।

गामक फूसक घर
पक्कामे बदलि रहल अछि
शहरक पक्का मकान
टावरमे बदलि रहल अछि।

टीभी रेडिओ
मोबाईलमे बदलि रहल अछि
ब्याहक पबित्र बंधन
लिव इन रिलेशनशिपमे बदलि रहल अछि।
अख़बार आबि गेल नेटपर
चूल्हा गेएशमे बदलि रहल अछि।

पाइ पाइकेँ फरिछोँटमे
भाइ भाइकेँ बदलि रहल अछि
रुपैया नहि आब चौब्बनी अठ्ठनीमे
सिनेह बदलि रहल अछि।

परिभाषा आब सम्बन्धकेँ
खर्चामे बदलि रहल अछि
पिता पुत्रक प्रेम सबहक सोँझा
सराधमे बदलि रहल अछि।

मुखिया बदलि रहल अछि
सरपन्च बदलि रहल अछि
नहि कोनो गामक
समस्या बदलि रहल अछि।

माए कनै छथि एखनो
आँचर तर मुँह नुका कए
अछैते बेटा पुतहु बिनु
नहि हुनक हाथ झरकेनाइ बदलि रहल अछि।

बापक आँखिक नोर
एखनो ताकि रहल अछि
आबि बनेए कियो लाठी
नहि हुनक सपना बदलि रहल अछि।

@जगदानन्द झा ‘मनु’    

रविवार, 22 दिसंबर 2013

गजल

सौंसे सिरा हाटपर  खा तीमन घरक तीत लगलै
सुलबाइ बाबूक गप्पसँ ससुरक वचन हीत लगलै

अप्पन घरक खेत आँगनमे खटब बुड़िबक सनककेँ
परदेशमे नाक अप्पन रगड़ैत नव रीत लगलै

आदर्श काजक चलब गामे-गाम झंडा लऽ आगू
माँगेत घर भरि तिलक बेटा बेरमे जीत लगलै

प्रेम तँ बदलै सभक बुझि धन बल अमीरी गरीबी
निर्धन अछूते रहल धनिकाहा कते मीत  लगलै

माए बहिन केर बोलसँ सभकेँ लगै कानमे झ’र
सरहोजि साइरक गप ‘मनु’केँ मधुरगर गीत लगलै

(बहरे मुजस्सम वा मुजास, मात्रा क्रम – २२१२-२१२२/२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’ 

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

गजल

डूबने बिनु बुझब कोना निशा की छै
प्रेम बिनु केने कि जानब सजा की छै

बसि क’ धारक कात हेलब सिखब कोना
आउ देखी कूदि एकर मजा की छै

नोकरी कय नै कियो धन कमेलक बड़
अपन मालिक बनु तँ एहिसँ भला की छै

आइ अप्पन बलसँ पीएम बनतै ओ
हारि झूठ्ठे ढोल पीटब हबा की छै

रोडपर कोनो करेजक परल टुकड़ा
ओहि छनमे ‘मनु’सँ पुछबै दया की छै 

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम, २१२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

गजल

आब चाही बस अहाँ केर मुस्कीटा
नै मरब पीने बिनु प्रेम चुस्कीटा

जे अहाँ बजलौं करू ओकरो पूरा
की अहूँ भेलौं खली बम्म फुस्कीटा

नै कटाबू नाक आबू सभक सोंझाँ
की तरे-तर रहब मारैत भुस्कीटा

डर लगैए भीड़मे नै निकलु बाहर
देख टीभी बसि घरे करब टुस्कीटा

मनु दखेलौं सभक अपनो कनी देखू
बिसरि अप्पन काज नै बनब घुस्कीटा

(बहरे कलीब, मात्रा क्रम – २१२२-२१२२-१२२२)

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

जन्तर-मन्तरपर ५ दिसम्बर अयबाक अपील सन्दर्भमे:   




मिथिला लेल प्राइवेट मेम्बरकेर बिल - संसदमे!

जाहि लेल ५ दिसम्बर बेसी संख्यामे जुटबाक अनुरोध कैल जा रहल अछि तेकर भूमिका स्पष्ट करब जरुरी बुझाइछ। 

सरकार द्वारा कानून बनेबाक लेल जे विधेयक बहस करबा लेल संसदमे राखल जाइछ तेकरा गवर्नमेन्ट बिल कहल जाइछ (वेस्टमिन्स्टर सिस्टम - जेकरा भारतीय संविधानसेहो अनुसरण करैछ) आ जे कैबिनेटसँ इतर सरकारक सहयोगी वा विरोधी पक्षक सदस्य द्वारा राखल जाइछ तेकरा प्राइवेट मेम्बर बिल मानल जाइछ। १९४७ केर तुरन्त बाद जखन मिथिला राज्यक माँग भारतीय संसदमे पास नहि भेल आ फेर राज्य गठन आयोग द्वारा सेहो १९५६ मे आरो-आरो नव राज्य गठन होयबा समय सेहो एकरा नकारल गेल तेकर बादसँ आधिकारिक बहस भारतीय संसदमे एहिपर नहि भेल अछि। ताहि लेल दरभंगासँ भाजपा संसद कीर्ति झा आजाद एहि विषयपर गंभीरतापूर्ण संज्ञान लैत बौद्धिकतासँ भरल ऐतिहासिकता आ उपलब्ध दस्तावेज सबकेँ समेटने अपना दिशिसँ मिथिलाक अस्मिताक रक्षा लेल डेग उठौलनि आ एहि क्रममे हुनका द्वारा प्रस्तुत बिल "बिहार झारखंड पुनर्संयोजन विधेयक २०१३" (The Bihar Jharkhand Reorganization Bill, 2013) संसदमे बहस लेल प्रस्तावित कैल गेल अछि। विधान अनुरूप कोनो बिलपर बहस लेल राष्ट्रपतिक मंजूरी आवश्यक रहनाय आ फेर समुचित तारीख दैत एहिपर बहस केनाय आ यदि सदन एकरा मंजूर करैत अछि तँ संविधानमे प्रविष्टि केनाय - यैह होइछ प्राइवेट मेम्बर बिल।

जेना ई बुझल अछि जे मिथिला राज्यक माँग भारतक स्वतंत्रता व ताहू सँ पूर्वहिसँ कैल जा रहल अछि - कारण बस एकटा जे "मिथिला अपना-आपमे परिपूर्ण इतिहास, भूगोल, संस्कृति, भाषा, साहित्य, संसाधन, समाजिकता आ सब आधारपर राज्य बनबाक लेल औचित्यपूर्ण अछि" आ भारतीय गणतंत्रमे राज्य बनबाक जे आधार छैक तेकरा पूरा करैत अछि.... दुर्भाग्यवश अंग्रेजक समयमे प्रान्त गठन करबा समय मिथिला लेल पूरा अध्ययनक बावजूद बस किछेक खयाली कल्पनासँ एकरा मिश्रितरूपमे 'बिहार' राज्य संग राखि देल गेल छल, मुदा बिहारसँ पहिले उडीसाक मुक्ति (१९३६) आ फेर झारखंडक मुक्ति (२०००) मे कैल गेल यद्यपि मिथिलाक माँग ताहू सबसँ पुरान रहितो एहिठामक लोकसंस्कृतिक संपन्नता आ लोकमानसक सहिष्णुताकेँ कमजोरी मानि बस सब दिन संग रहबाक लेल अनुशंसा कैल गेल... परञ्च जे विकास करबाक चाही से नहि कैल गेल, जे पोषण करबाक चाही सेहो नहि कैल गेल... उल्टा जेहो पूर्वाधार एहिठाम विकसित छल तेकरो धीरे-धीरे मटियामेट कय देल गेल। बिहारक शासनमे सब दिन मिथिला क्षेत्र उपेक्षित रहि गेल। एक तऽ प्रकृतिक प्रकोप जे बाढिक संग-संग सूखाक दंश, ऊपरसँ कोनो वैज्ञानिक वा विकसित प्रबंधन नहि कय बस दमन आ उपेक्षाक चाप थोपि मिथिलाक लोकमानसकेँ आन-आन राज्य जाय सस्ता मजदूरी आ चाकरीसँ जीवन-यापन करबाक लेल बाध्य कैल गेल। परिणामस्वरूप एहि ठामक विकसित आ सुसभ्य परंपरा सब सेहो ध्वस्त भेल, लोकसंस्कृतिक मृत्यु होमय लागल आ आब मिथिला मात्र रामायणक पन्नामे नहि रहि जाय से डर बौद्धिक स्तरपर स्पष्ट होमय लागल। तखन तऽ जे विधायक (जनप्रतिनिधि) एहिठामसँ चुनाइत छथि आ केन्द्र व राज्यमे जाइत छथि हुनकहि पर भार रहल जे मिथिलाकेँ कोना संरक्षित राखि सकता - लेकिन जाहि तरहक नीतिसँ मिथिलाकेँ विकास लेल सोचल गेल ताहिसँ उपेक्षा आ पिछडापण नित्यदिन बढिते गेल। हालत बेकाबू अछि, लोकपलायन चरमपर अछि, शिक्षा, उद्योग, कृषि, प्रशासन सब किछु चौपट देखाइत अछि। बिना राज्य बनने कोनो तरहक सुधारक गुंजाइश न्यून बुझाइछ।

हलाँकि भारतमे लगभग ३०० सँ ऊपर प्राइवेट मेम्बर बिल आइ धरि आयल, ताहिमे सँ बिना बहस केने कतेक रास गट्टरमे फेका गेल तऽ लगभग १४ टा विधानक रूपमे सेहो स्वीकृति पौलक। एहि बिलक भविष्य जे किछु होउ से फलदाता बुझैथ, लेकिन एक सशक्त-जागरुक चेतनशील मैथिलक ई कर्तब्य बुझापछ जे अपन राजनैतिक अधिकार लेल एना हाथ-पर-हाथ धेने नहि बैसैथ आ अपन अधिकार लेल आवाज धरि जरुर उठबैथ। यदि भारतीय गणतंत्रमे मिथिलाक मृत्यु तय छैक तऽ भारतक भविष्यनिर्माता सब जानैथ, लेकिन एक "मैथिल" लेल अपन भागक कर्तब्य निर्वाह करबाक जरुरत देखैत अपील कैल जा रहल अछि जे जरुर बेसी सऽ बेसी संख्यामे जन्तर-मन्तरपर ओहि बिलकेर समर्थन लेल राजनैतिक समर्थन जुटेबाक उद्देश्यसँ आ मिथिला राज्य संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा राखल गेल धरनामे सद्भाव-सौहार्द्रसंग सहभागिता लेल सेहो हम सब पहुँची। अपन अधिकार लेल संघर्ष करहे टा पडैत छैक, बैसल कतहु सँ कोनो सम्मान वा स्वाभिमान प्राप्त नहि भऽ सकैत छैक, ई आत्मसात करैत हम सब एकजुटता प्रदर्शन करी।

याद रहय - ५ दिसम्बर, २०१३, स्थान जन्तर-मन्तर, समय दिनक १० बजेसँ।

रविवार, 1 दिसंबर 2013

गजल


करेजामे अपन हम की बसेने छी
अहाँकेँ नामटा लिख-लिख नुकेने छी

बितैए राति नै  कनिको कटैए दिन
अहाँकेँ बाटमे     पपनी सजेने छी

हमर ठोरक हँसीकेँ    देख नै हँसियौ
अहाँ हँसि लिअ दरद तेँ हम दबेने छी

हमर जीवन अहाँ बिनु नै छलै जीवन
मनुक्खसँ देवता     हमरा बनेने छी

निसा ई गजलमे आँखिक अहीँकेँ ‘मनु’
बुझू नै हम  महग   ताड़ी चढ़ेने छी

(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’