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रविवार, 22 दिसंबर 2013

गजल

सौंसे सिरा हाटपर  खा तीमन घरक तीत लगलै
सुलबाइ बाबूक गप्पसँ ससुरक वचन हीत लगलै

अप्पन घरक खेत आँगनमे खटब बुड़िबक सनककेँ
परदेशमे नाक अप्पन रगड़ैत नव रीत लगलै

आदर्श काजक चलब गामे-गाम झंडा लऽ आगू
माँगेत घर भरि तिलक बेटा बेरमे जीत लगलै

प्रेम तँ बदलै सभक बुझि धन बल अमीरी गरीबी
निर्धन अछूते रहल धनिकाहा कते मीत  लगलै

माए बहिन केर बोलसँ सभकेँ लगै कानमे झ’र
सरहोजि साइरक गप ‘मनु’केँ मधुरगर गीत लगलै

(बहरे मुजस्सम वा मुजास, मात्रा क्रम – २२१२-२१२२/२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’ 

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