की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

रविवार, 1 दिसंबर 2013

गजल


करेजामे अपन हम की बसेने छी
अहाँकेँ नामटा लिख-लिख नुकेने छी

बितैए राति नै  कनिको कटैए दिन
अहाँकेँ बाटमे     पपनी सजेने छी

हमर ठोरक हँसीकेँ    देख नै हँसियौ
अहाँ हँसि लिअ दरद तेँ हम दबेने छी

हमर जीवन अहाँ बिनु नै छलै जीवन
मनुक्खसँ देवता     हमरा बनेने छी

निसा ई गजलमे आँखिक अहीँकेँ ‘मनु’
बुझू नै हम  महग   ताड़ी चढ़ेने छी

(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’                   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें